May 27, 2019

त्यागमुर्ति माता रमाबाई आंबेड्कर

परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महापुरुष,युग प्रवर्तक बनाने वाली,परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका राष्ट्रमाता रमाई अंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि !!

परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल माता रमाई अंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर उनके संघर्षो,त्याग को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि !!

आवो जाने ऐसी नारी शक्ति को जिनके त्याग समर्पण समाज के प्रति निष्ठा की बदौलत बहुजन समाज, सर्व समाज की नारी शक्ति को भारत वर्ष में सम्मान से जीने का अधिकार मिला वो है परमपूज्यनीय त्याग भावना की मूर्ति माता रमाई अंबेडकर जी.. 

परमपूज्य बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाई का ही साथ था ! साथियों आज हमारी महिलाओ (चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हो) को माता रमाबाई अंबेडकर जी पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बढ़ाये रखा और उनके हर फैसले में उनका साथ देती रही। खुद अपना जीवन घोर कष्ट में बिताया और बाबा साहेब की मदद करती रही !

प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति,महापुरुष ही नहीं बन पाता ! आई साहेब रमाबाई अंबेडकर इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी !

माता रमाबाई अंबेडकर जी का जीवन परिचय: 

साथियों माता रमाई जी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता भिकु धुत्रे (वलंगकर) व माता रुक्मिणी इनके साथ रमाबाई दाभोल के पास वंणदगांव में नदी किनारे महारपुरा बस्ती में रहती थी। उन्हे ३ बहन व एक भाई - शंकर था। रमाबाई की बडी बहन दापोली में रहती थी, रमाई के बचपन का नाम रामी था..  रामी के माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था. रामी की दो बहने और एक भाई था, भाई का नाम शंकर था.. बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ मुंबई में रहने लगे थे !

बाबा साहेब अम्बेडकर जी प्रेम से माता रमाबाई को "रमो" कहकर पुकारा करते थे, दिसंबर 1940 में बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने "थॉट्स ऑफ पाकिस्तान" पुस्तक लिखी यह पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी "रमो" को ही भेंट की !

भेंट के शब्द इस प्रकार थे, 
"मै यह पुस्तक "रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, त्याग समर्पण की भावना, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं !"
उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबा साहेब जी का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबासाहब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था ! बाबा साहेब भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे, जिन्हें रमाई जैसी बहुत ही नेक जीवन साथी मिली !

माता रमाई अपने पति के प्रयत्न से कुछ लिखना पढ़ना भी सीख गई थी. साधारणतः महापुरुषों के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे! माता रमाबाई कर्मठता की मूर्ति थीं! वह अपने पति के जनहितकारी कार्यों में यथायोग्य उनका साथ देती थी !

माता रमाई ने 5 संतानों को जन्म दिया नाम थे: यशवंतराव, गंगाधर, रमेश, इंदू और राज रत्न.. 

गरीबी किसी को ना सताए ! धन अभाव के कारण जब भोजन ही भरपेट नहीं मिलता था ! तब दवा-दारू के लिए पैसे कहाँ से आते इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यशवंतराव के अलावा सभी बच्चे अकाल ही काल कलवित हो गए !

दूसरे पुत्र गंगाधर के निधन की दर्द भरी कहानी डॉक्टर अंबेडकर ने इस प्रकार बतलाई थी, 
दूसरा लड़का गंगाधर हुआ,जो देखने में बहुत सुंदर था ! वह अचानक बीमार हो गया दवा दारू के लिए पैसा ना था ! उसकी बीमारी से तो एक बार मेरा मन भी डावांडोल हो गया कि मैं सरकारी नौकरी लूं,फिर मुझे विचार आया कि अगर मैंने नौकरी कर ली तो उन करोड़ो अछूतों का क्या होगा जो गंगाधर से ज्यादा बीमार है ठीक प्रकार से इलाज ना होने के कारण वह नन्ना सा बच्चा ढाई साल की आयु में चल बसा ! गमी में लोग आए बच्चे के मृत शरीर को ढकने के लिए नया कपड़ा लाने के लिए पैसे मांगे लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं कफन खरीद सकूँ ! अंत में मेरी प्यारी पत्नी रामू ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया उसी में ढंक कर उसे श्मशान पर लोग लेकर गए हैं और दफना आये, ऐसी थी मेरी आर्थिक स्थिति!!
पांचवा बच्चा राज रत्न बहुत प्यारा था.. रमाई ने उसकी देखरेख में कोई कमी नहीं आने दी ! अचानक जुलाई 1926 में उसे डबल निमोनिया हो गया , काफी इलाज करने पर भी 19 जुलाई 1926 को दोनों को बिलखते छोड़ वह भी चल बसा.. माता रमाबाई को इससे बहुत सदमा पहुंचा और वह बीमार रहने लगे.. धीरे-धीर पुत्र शोक कम हुआ तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर महाड सत्याग्रह में जुट गये ! महाड में विरोधियों ने षडयंत्र कर उन्हें मार डालने की योजना बनाई यह सुनकर माता रमाई ने महाड़ सत्याग्रह में अपने पति के साथ रहने की अभिलाषा व्यक्त की !

जहाँ इतनी गरीबी का जीवन जी रही थी! वहीं आत्मसम्मान भी उनमें में कूट-कूट कर भरा था ! एक दिन बाबासाहेब आंबेडकर जी कॉलेज में पढ़ाने के लिए जाते समय रमाबाई को खर्च के लिए पैसा देना भूल गए ! रात को जब वापस लौटे तो देखा कि कमरे में दिया नहीं जल रहा है कमरे में अंधेरा देख बाबासाहेब ने पूछा रामू आज दिया क्यों नहीं जलाया" जाते समय आप पैसा देना भूल गए थे, रमाबाई ने धीरे से कहा ! बाबा साहब ने पुनः कहा पड़ोस में किसी से मिट्टी का तेल और दियासलाई की तीली मांगकर कमरे में कम से कम दिया तो जला देती ! माता रमाबाई ने उत्तर दिया किसी से मांग कर गुजारा करना मैं अच्छा नहीं मानती!अगर ऐसा होता तो आप भी सरकारी नौकरी करके हम सबको सुखी बना सकते थे !

साथियों मां रमाई कहा मेरा भी दृढ़ निश्चय कुछ और है मैं पड़ोसियों से मांग कर जीने की बजाय भूखी रहना ज्यादा पसंद करती हूं ! मेरा भी स्वाभिमानपूर्ण जीवन है ! बाबासाहेब अंबेडकर जी ने अपनी लेखनी से दर्जनों ग्रंथों की रचना की ! अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से समृद्धि संपन्न महापुरूष बने !

बंबई के दादर मोहल्ले में उन्होंने राजगृह नामक विशाल भवन का निर्माण करवाया, अब माता रमाबाई परेल से राजगृह आ गई ! लेकिन चिंता और शोक से उनका जो शरीर जर्जर हो गया था वह कभी ठीक न हो सका !

27 मई 1935 को उन पर शोक और दुःख का पर्वत ही टूट पड़ा ! उस दिन नृशंस मृत्यु ने उनसे उनकी पत्नी रमाबाई को छीन लिया। बीस हजार से अधिक लोग माता रमाबाई के परिनिर्वाण में शामिल हुए थे !

जालिमों से लड़ती भीम की रमाई थी,
 मजलूमों को बढ़ के जो आँचल उढ़ाई थी;
 एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े,
 भीम साथ वैसे मेरी रमाई थी!!









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