December 26, 2018

पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर जीवन परिचय

पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर का जन्म दक्षिण भारत के ईरोड (तमिलनाडु) नामक स्थान पर 17 सितम्बर 1879 ई. को हुआ था। इनके पिताजी का नाम वेंकटप्पा नायकर तथा माताजी का नाम चिन्नाबाई था। वर्णव्यवस्था के अनुसार शूद्र, वेंकटप्पा नायकर एक बड़े व्यापारी थे। धार्मिक कार्यों, दान व परोपकार के कार्यों में अत्यधिक रुचि रखने के कारण उन्हें उस क्षेत्र में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। पेरियार रामास्वामी नायकर की औपचारिक शिक्षा चौथी कक्षा तक हुई थी। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने पाठशाला को सदा के लिए छोड़ दिया। पाठशाला छोड़ने के पश्चात वे अपने पिताजी के साथ व्यापार के कार्य में सहयोग करने लगे। इनका विवाह 19 वर्ष की अवस्था में नागम्मई के साथ सम्पन्न हुआ।

पेरियार रामास्वामी का परिवार धार्मिक तथा रूढ़िवादी था। लेकिन अपने परिवार की परम्पराओं के विपरीत पेरियार रामास्वामी किशोरावस्था से ही तार्किक पद्धति से चिन्तन–मनन करने लगे थे। इनके घर पर अक्सर धार्मिक अनुष्ठान एवं प्रवचन होते रहते थे। रामास्वामी अपने तार्किक प्रश्नों से अनुष्ठानकर्ताओं को अक्सर संकट में डाल देते थे। उम्र बढ़ने के साथ–साथ पेरियार अपनी वैज्ञानिक सोच पर और दृढ़ होते गये। परिणामस्वरूप परिवार की अन्धविश्वास–युक्त एवं ढकोसले वाली बातें, एक के बाद एक रामास्वामी के प्रहार का निशाना बनने लगी। जो भी कार्य उन्हें अनावश्यक लगता था, या तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता, उसे अवश्य ही बन्द करने का प्रयत्न करते। उदाहरणस्वरूप– स्त्रियों द्वारा गले में पहने जाने वाला आभूषण ‘बाली’ या ‘हंसुली’ को वे बंधन या गुलामी का प्रतीक मानते थे। अतः उन्होंने अपनी पत्नी के गले से भी ‘हंसुली’ उतरवा दिया था। अपनी पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों को वे मन्दिर भी नहीं जाने देते थे। वे अक्सर अपने अस्पृश्य मित्रों को परिवार की परम्परा के विरुद्ध अपने घर बुलाते और साथ में भोजन करते।

पेरियार रामास्वामी का धर्म–विरुद्ध आचरण उनके परिवार के लोगों को खटकने लगा। एक सफल व्यापारी होने के कारण उनके पिताजी ने जो सम्मान और श्रद्धा अर्जित की थी, वह धीरे–धीरे घटने लगी। विशेष रूप से उनके पिताजी वेंकटप्पा नायकर को अपने धर्माचरण तथा विश्वास इतने प्रिय थे, कि वे अपने पुत्र तथा व्यापार सभी को तिलांजलि दे सकते थे। मतभेदों ने शीघ्र ही छिट–पुट कहासुनी तथा विरोधों का रूप धारण कर लिया। अन्ततः रामास्वामी ने पितृगृह छोड़ने का निश्चय कर लिया। गृहत्याग के पश्चात् रामास्वामी कुछ दिनों तक इधर–उधर घूमते रहे। बहुत दिनों तक वे संन्यासियों के साथ संन्यासी बनकर रहे। इस जीवन में उन्हें अपना स्वास्थ्य बिगड़ने के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त न हो सका। अन्ततः उन्होंने संन्यास जीवन त्याग दिया और पुनः अपने घर लौट आये।

गृह त्याग कर कुछ दिनों तक संन्यास जीवन व्यतीत करने के पश्चात् न तो रामास्वामी के विचार बदले न ही समाज की परिस्थितियां व समस्यायें ही बदलीं। परन्तु परिस्थितियों व समस्याओं के प्रति रामास्वामी के दृष्टिकोण में अवश्य ही परिवर्तन हो गया। इस परिवर्तन का एक कारण यह भी था कि उनके एक बार घर से चले जाने के कारण अब घर वाले भी नम्र हो गये थे। रामास्वामी ने भी अनुभव किया कि किसी बात पर सैद्धान्तिक वाद–विवाद करने, उससे टकराने या उससे बिल्कुल मुंह मोड़ लेने की अपेक्षा, उचित यह है कि उपस्थित समस्याओं पर मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के साथ सहयोग करके उनके विचारों को बदलने का प्रयास किया जाय। इस प्रकार रामास्वामी ने अपने विचारों में परिवर्तन किये बिना, अपनी कार्यपद्धति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया। कार्य–पद्धति में परिवर्तन के कारण शीघ्र ही वे अपने क्षेत्र में एक सर्वप्रिय और निःस्वार्थ समाजसेवक के रूप में जन–जन के हृदय में स्थान पा गये। परिणामस्वरूप छोटी–छोटी विभिन्न संस्थाओं में रामास्वामी को विभिन्न पदों पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों, यथा– राजनैतिक स्वतंत्रता, सामाजिक पुनर्गठन, आर्थिक विकास आदि से प्रभावित होकर रामास्वामी कांग्रेस के सदस्य बने। सन् 1920 ई. में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का दक्षिण भारत में पेरियार रामास्वामी को नेतृत्व का दायित्व सौंपा गया। रामास्वामी ने इस दायित्व को पूरी गंभीरता से लिया। परिस्थिति की मांग को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सर्वप्रथम अपने को अन्य उत्तरदायित्वों से पूर्णतः मुक्त करना आवश्यक समझा, जिससे वे पूरी तरह आन्दोलन का कार्य कर सकें। अतः सबसे पहले उन्होंने व्यापार तथा पारिवारिक दायित्व का भार अपने भाई कृष्णा स्वामी को सौंप दिया। रामास्वामी का केवल पारिवारिक दायित्व से ही मुक्त होना पर्याप्त नहीं था, क्योंकि उनका जीवन केवल पारिवारिक दायरे तक ही सीमित नहीं था। रामास्वामी उस समय उन्तीस संस्थाओं से जुड़े थे। उन्होंने एक झटके में सभी संस्थाओं से अपना संबंध–विच्छेद कर लिया और कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन का कार्य करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हो गये।

पेरियार रामास्वामी ने कांग्रेस द्वारा चलाये गये विभिन्न आंदोलनों में बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया तथा नेतृत्व भी किया। कांग्रेस द्वारा चलाये गये नशाबंदी आंदोलन के कारण अपने बाग के एक हजार से भी अधिक ताड़ के पेड़ कटवा दिया, क्योंकि नशाबंदी आंदोलन के नेतृत्वकर्ता का ताड़ के पेड़ों का मालिक बने रहना हास्यास्पद था। इसी प्रकार ‘अदालतों का बहिष्कार’ आंदोलन में रामस्वामी ने सहर्ष भारी आर्थिक हानि उठाना पसंद किया। रामास्वामी के पास उस समय लगभग पचास हजार रूपये के प्रोनोट व दस्तावेज आदि थे, जिन्हें सरकारी अदालतों की सहायता से ही प्राप्त किया जा सकता था। उन्होंने ‘अदालतों का बहिष्कार’ आंदोलन को सार्थकता प्रदान करने के लिए प्रोनोट व दस्तावेजों को फाड़कर फेंक दिया। इस आर्थिक हानि की उन्होंने कभी चर्चा भी नहीं की। ‘वाइकोम–आंदोलन’, जो अछूतों के अधिकारों के लिए कांग्रेस ने चलाया था, का नेतृत्व भी रामास्वामी नायकर ने ही किया तथा उनके गिरफ्तार होने के पश्चात् उनकी पत्नी नागम्मई एवं एस. रामनाथन ने नेतृत्व की बागडोर संभाली। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप अछूतों के अधिकारों को स्वीकार किया गया और उनके स्वतंत्र आवागमन पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लिए गये।

जिस प्रकार रामास्वामी कांग्रेस के आंदोलनों में अपना सर्वस्व छोड़कर शामिल हो गये थे उसी प्रकार कांग्रेस से मतभेद होने पर 1925 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया। 1931 में उन्होंने रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, स्पेन, फ्रांस तथा मध्यपूर्व के अन्य देशों का भ्रमण किया। उन्होंने रूस के कल–कारखाने, कृषि–फार्म, स्कूल, अस्पताल, मजदूर संगठन, वैज्ञानिक शोध केन्द्र, उत्तम कला केन्द्र संस्थाओं का अवलोकन किया और बहुत प्रभावित हुए।

1925 में कांग्रेस के परित्याग के पश्चात् रामास्वामी ने ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ की स्थापना की। 1926 में उन्होंने अपना संबंध ‘जस्टिस पार्टी’ से जोड़ा जो वहां की एक अब्राह्मण पार्टी थी। वहां रहकर उन्होंने अस्पृश्य और पिछड़ी जातियों की उन्नति के लिए अटूट प्रयत्न किया। 1938 में उन्हें सर्वसम्मति से जस्टिस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। कुछ समय के लिए स्वाभिमान आंदोलन और जस्टिस पार्टी ने एक–दूसरे के साथ घुल–मिलकर कार्य किया। 1944 में उन्होंने स्वाभिमान आंदोलन और जस्टिस पार्टी के गठबंधन से ‘द्रविड़ कषगम’ नामक संस्था की स्थापना किया। 1951 में तमिलनाडु सरकार का साम्प्रदायिक जी.ओ. (सरकारी आदेश), सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिये जाने का रामास्वामी ने प्रबल विरोध किया। फलस्वरूप संविधान के अनुच्छेद-15 व 16 में संशोधन किया गया। 15 दिसंबर, 1973 को वेल्लोर के एक अस्पताल में पेरियार रामास्वामी ने अंतिम सांसें ली।


पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर के विचार : 


पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर के विचारों का उल्लेख करने के पूर्व उनके समय के तमिलनाडु प्रदेश की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। उस समय तमिलनाडु की सामाजिक संरचना उत्तर भारत की सामाजिक संरचना से कुछ भिन्न थी। वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शिखर पर स्थिति ब्राह्मणों के पास सभी अधिकार केन्द्रित थे। शेष लगभग 93 प्रतिशत शूद्र एवं अतिशूद्र सभी प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित थे। यहां पर यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि तमिलनाडु में क्षत्रियों की संख्या कुछ राजघरानों तथा वैश्यों की संख्या कुछ व्यापारिक परिवारों तक सीमित थी। दक्षिण भारत में अस्पृश्यता अपने वीभत्स रूप में प्रचलित थी। इन सामाजिक परिस्थितियों से पेरियार के विचार बहुत प्रभावित हैं।

पेरियार रामास्वामी का मत है कि दलित समस्या हिंदू धर्म एवं हिंदू समाज व्यवस्था की देन है। उनके अनुसार दलित एवं शूद्र इस देश के मूल निवासी हैं। आर्य बाहर से यहां आक्रमणकारी के रूप में आये तथा यहां के मूल निवासियों को युद्ध में पराजित करके अपना दास बना लिया। आर्यों ने यहां के मूल निवासियों को न केवल दास बनाया बल्कि उनकी समृद्धशाली सभ्यता और संस्कृतियों को भी नष्ट किया। आर्यों ने अपना वर्चस्व चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से वैदिक धर्म एवं वर्णव्यवस्था का निर्माण किया। ईश्वर का आविष्कार आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को मानसिक दास बनाने के लिए किया। इसलिए रामास्वामी पेरियार ने ईश्वर, धर्म, आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग–नर्क आदि सिद्धान्तों तथा इन सिद्धान्तों का प्रचार–प्रसार करने वाले धर्म–ग्रन्थों का कड़ा विरोध किया। उनके शब्दों में, ‘धर्म एवं ईश्वर मात्र मनुष्यों के लिए है और अन्य प्राणियों के लिए नहीं। यदि वास्तव में धर्म एवं ईश्वर का अस्तित्व होता, तो समाज में समानता स्थापित होती। यदि संसार में निर्धन–धनी, शोषक–शोषित, ऊँच–नीच का भेद समाप्त कर दिया जाय तो ईश्वर और धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।’ इसी प्रकार उन्होंने गहरी संवेदना के साथ कहा था कि ‘ईश्वर नहीं है, ईश्वर नहीं है, ईश्वर बिल्कुल नहीं है, जिसने ईश्वर का आविष्कार किया वह मूर्ख है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह धूर्त है, जो ईश्वर को पूजता है वह जंगली है।’ उनका कहना था कि मनुष्य के अतिरिक्त पृथ्वी के किसी अन्य प्राणी के लिए ईश्वर का कोई औचित्य नहीं है, धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती, जातियां नहीं बनी है, तो मात्र मनुष्यों के लिए ही ईश्वर, धर्म एवं जातियों का अस्तित्व क्यों है?

पेरियार रामास्वामी का विचार था कि दलितों एवं शूद्र को हिन्दू धर्म की मूल्य–मान्यताओं एवं ईश्वर के संजाल से मुक्त होना आवश्यक है। उनके शब्दों में, ‘मैं कहता हूं कि हिन्दुत्व एक बड़ा धोखा है, हम मूर्खों की तरह हिन्दुत्व के साथ अब और नहीं रह सकते। यह पहले ही हमारा काफी नुकसान कर चुका है। इसने हमारी मेधा को नष्ट कर दिया है। इसने हमारे मर्म को खा लिया है। इसने हमारी सम्भावनाओं को गड़बड़ा दिया है। इसने हमें हजारों वर्गों में बांट दिया है। क्या धर्म की आवश्यकता ऊंच–नीच पैदा करने के लिए होती है? हमें ऐसा धर्म नहीं चाहिए जो हमारे बीच शत्रुता, बुराई और घृणा पैदा करे।’

पेरियार मूलरूप से एक सामाजिक क्रान्तिकारी थे। वे एक बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी एवं मानववादी थे। उनके चिंतन का मुख्य विषय समाज था, फिर भी उनके विचार और दृष्टिकोण राजनीति एवं आर्थिक क्षेत्र में परिलक्षित होते हैं, उनका अटूट विश्वास था कि सामाजिक मुक्ति ही राजनैतिक एवं आर्थिक मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनकी इच्छा थी कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने से पहले ही सामाजिक समानता स्थापित हो जानी चाहिए। अन्यथा स्वाधीनता का यह अभिप्राय होगा कि हमने विदेशी मालिक की जगह भारतीय मालिक को स्वीकार कर लिया है। उनका सोचना था कि यदि इन समस्याओं का समाधान स्वाधीनता प्राप्ति के पहले नहीं किया गया, तो जाति व्यवस्था और उनकी बुराइयां हमेशा बनी रहेंगी। उनका कहना था कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार होना चाहिए।

हिंदू वर्ण–व्यवस्था के अनुसार दलितों एवं शूद्रों का राज्य संस्था के संचालन में हस्तक्षेप वर्जित था। आधुनिक भारत में महात्मा जोतीराव फुले ने राजनैतिक क्षेत्र में दलितों एवं शूद्रों के लिए प्रतिनिधित्व की मांग की थी। पेरियार रामास्वामी ने भी दलितों एवं शूद्रों के लिए राजनैतिक क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने का विचार व्यक्त किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय पेरियार ने कांग्रेस के सम्मेलन में जनसंख्या के अनुपात में नौकरियों में प्रतिनिधित्व संबंधी प्रस्ताव स्वीकृति कराने का प्रयास किया था। 1950 में तत्कालीन मद्रास सरकार ने पेरियार की सलाह पर नौकरियों में दलितों–पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने का निर्णय लिया। मद्रास सरकार के इस निर्णय को उच्च वर्णीय व्यक्तियों द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। मद्रास उच्च न्यायालय ने मद्रास सरकार के उक्त जी.ओ. को यह कहते हुए शून्य घोषित कर दिया कि यह जी.ओ. मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया। यह याचिका मद्रास राज्य बनाम चम्पक दुरई राजन के नाम से जानी जाती है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर उस समय विधिमंत्री थे। नौकरियों में आरक्षण के लिए किया गया उनका संघर्ष निष्फल हो गया। रामास्वामी पेरियार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध विशाल आंदोलन चलाया और संविधान में संशोधन की मांग की। फलस्वरूप संविधान में प्रथम संशोधन 18 जून 1951 को हुआ जिसमें अनुच्छेद 15 व 16 को संशोधित किया गया।

रामास्वामी पेरियार का मत है कि सरकार को सामाजिक समानता एवं एकता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। वे सामाजिक परिवर्तन के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों के नियंत्रण में सरकार को संचालित करने का विचार व्यक्त करते हैं।

रामास्वामी नायकर के अनुयायियों ने उन्हें ‘थंथाई’ (पिता) ‘पेरियार’ (महान) की उपाधियों से विभूषित किया। यूनेस्को ने उन्हें ‘दक्षिण–पूर्व एशिया का सुकरात’ जैसे विशेषण से सम्मानित किया। मृत्योपरान्त यूनेस्को ने जो शील्ड प्रदान किया उस पर ,
पेरियार, अर्वाचीन विचारो के प्रणेता, दक्षिण पूर्व एशिया के सोक्रेटिस, सामाजिक क्रांति के प्रणेता और अज्ञानता, अंधविश्वास, अर्थविहीन रीतिरिवाजों के कट्टर दुश्मन..- 27/6/1970, यूनेस्को
अंकित है। इस अवार्ड द्वारा ई.वी .रामास्वामी की उपलब्धियों और प्रयासों को यूनेस्को ने मान्यता प्रदान किया है।




पेरियार के इंकलाबी बोल : जाति का उन्मूलन

  • यदि हमारे लोग जाति, धर्म, आदतों और रीति-रिवाजों में सुधार लाने को तैयार नहीं होते हैं, तो वे स्वतंत्रता, प्रगति और आत्म-सम्मान पाने की शुरूआत कैसे कर सकते हैं? 
  • एक बड़ी आबादी आज अछूतों के रूप में बनी हुई है, और इससे भी बड़ी आबादी भूदासों, कुलियों, घरेलू नौकरों और गैरकानूनी बच्चों के रूप में शूद्रों के नाम पर मौजूद है। ऐसी आज़ादी किस काम की, जो इन भेदभावों को खत्म नहीं कर सकती? ऐसा धर्म, ऐसे धर्मशास्त्र और ऐसा ईश्वर किसे चाहिए, जो परिवर्तन नहीं कर सकता? 
  • चूंकि इस देश में पार्टियां जातियों और समुदायों की चिंता से सम्बन्धित हैं, इसलिए राजनीति भी जनता के कल्याण की बजाए इन सांप्रदायिक दलों के लिए ही की जाती है। 
  • स्वतन्त्रता की जमीन पर क्या नागरिक शूद्र (वेश्या के वारिस) हो सकते हैं? क्या नागरिकों को अछूत, दास, पापी और सेवक मानने वाले धर्म, महाकाव्य और कानून (स्मृतियां) हो सकते हैं? सोचो और कुछ करो। 
  • कोई आदमी मुझसे कम नहीं है। इसी तरह, कोई भी मुझसे बेहतर नहीं है। मतलब यह कि हर व्यक्ति स्वतंत्र और समान है। इस स्थिति को पैदा करने के लिए जाति का उन्मूलन जरूरी है। 
  • डॉक्टर रोगी को ठीक करते हैं, और रोग फिर रोगी को पकड़ लेता है. जब तक रोग को खत्म करने के लिए उसके मूल कारण को नहीं खोजा जायेगा, बीमारी खत्म नहीं होगी। इसलिए बीमारी होने पर हर बार एक ही तरह की दवाएं देते रहना असर करने वाला उपाय नहीं है। इसी तरह, जातिवाद की जो बीमारी हमारे समाज को नष्ट कर रही है, उसकी जब हम मूल जड़ का पता लगाएंगे, तभी उसे समाप्त किया जा सकता है। 
  • जो जाति व्यवस्था जन्म के आधार पर ऊंच-नीच की शिक्षा देती है, उसे हर आधार पर नष्ट किया जाना चाहिए। 
  • उस आदमी की लोग न निंदा करते हैं, और न उसे जाति से बहिष्कृत करते हैं, जो चोरी करता है, या झूठ बोलता है या बिना परिश्रम किए निठल्ला बनकर जीने का प्रयास करता है। लेकिन यदि वह अपनी जाति से बाहर खाना खाता है, या अपनी जाति के बाहर शादी करता है तो वह जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है। यह है इन लोगों का चरित्र और जाति की हठधर्मिता। 
  • यदि किसी क्षेत्र में, दो कुंए हैं, एक में खारा पानी है, जो पीने योग्य नहीं है, और दूसरे में पीने योग्य मीठा पानी है, तो उस पीने योग्य पानी का उपयोग किसी विशेष वर्ग द्वारा किया जाता है, और दूसरी तरफ खारे पानी वाले कुंए का उपयोग दूसरे वर्ग द्वारा किया जाता है, यानी एक वर्ग अकेले उस मीठे पानी को पीने के लिए योग्य है और दूसरा वर्ग उसे पीने के लिए योग्य नहीं है, जरा इस पर विचार करें कि यह क्रूरता कितनी दर्दनाक है। हमारी जाति व्यवस्था इतनी हद तक दर्द पैदा करने के लिए इतनी स्थापित की गई है। हमारी जाति व्यवस्था इतनी हद तक पीड़ा पहुंचाने के लिए स्थापित की गई है। जब तक कि इस जाति व्यवस्था का, जो थोड़े से ब्राह्मणों को आराम पहुंचाने और बहुतों को पीड़ित करने के लिए स्थापित की गई है, इस देश से उन्मूलन नहीं किया जायेगा, तब तक हम निश्चित रूप से इन अत्याचारों से कभी छुटकारा नहीं पाएंगे। 
  • हमारे अतिरिक्त इन्द्रिय-ज्ञान का उपयोग क्या है? हालांकि जानवर एक अर्थ में जातिहीन हैं; पर हम जाति के कारण, अपने छठे इन्द्रिय-ज्ञान के बावजूद, अपमान का सामना करते हैं। क्या हमें इस पर विचार नहीं करना चाहिए? 
  • वर्तमान में भारत का संविधान जाति के उन्मूलन के लिए अनुकूल नहीं है। यह इसे मौलिक अधिकार के विपरीत मानता है, और साथ ही, यह सांप्रदायिक अनुपात को भी प्रतिबंधित करता है क्योंकि यह वर्ग-घृणा को मानता है। कहने के लिए कि जाति रह सकती है, लेकिन जाति के आधार पर विशेषाधिकारों का बना रहना सबसे बड़ी धोखाधड़ी है। 
  • जाति संस्कृत भाषा का शब्द है। तमिल में जाति के लिए कोई शब्द नहीं है। तमिल में किसी का ‘संप्रदाय’ या ‘वर्ग’ पूछना एक रिवाज है। पर जन्म के आधार पर किसी के साथ जातीय भेदभाव नहीं किया जाता है। मानव जाति के बीच कोई जाति नहीं हो सकती है। एक ही देश के रहने वालों में जाति और जातीय भेदभाव की बात करना बहुत बड़ी शरारत है। 

पेरियार के सुनहरे बोल : 


राजनीति 

  • जो लोग प्रसिद्धि, पैसा, पद पसंद करते हैं, वे तपेदिक की घातक बीमारी की तरह हैं। वे समाज के हितों के विरोधी हैं। 
  • आज हमें देश के लोगों को ईमानदार और निःस्वार्थ बनाने वाली योजनाएं चाहिए। किसी से भी नफरत न करना और सभी से प्यार करना, यही आज की जरूरत है। 
  • जो लोगों को अज्ञान में रखकर राजनीति में प्रमुख स्थिति प्राप्त कर चुके हैं, उनका ज्ञान के साथ कोई संबंध नहीं माना जा सकता। 
  • हम जोर-शोर से स्वराज की बात कर रहे हैं। क्या स्वराज आप तमिलों के लिए है, या उत्तर भारतीयों के लिए है? क्या यह आपके लिए है या पूंजीवादियों के लिए है?क्या स्वराज आपके लिए है या कालाबाजारियों के लिए है? क्या यह मजदूरों के लिए है या उनका खून चूसने वालों के लिए है? 
  • स्वराज क्या है? हर एक को स्वराज में खाने, पहनने और रहने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। क्या हमारे समाज में आपको यह सब मिलता है? तब स्वराज कहाँ है? 
  • आइए विश्लेषण करें। कौन उच्च जाति के और कौन निम्न जाति के लोग हैं। जो काम नहीं करता है, और दूसरों के परिश्रम पर रहता है, वह उच्च जाति है। जो कड़ी मेहनत करके दूसरों को लाभ प्रदान करता है, और बोझ ढोने वाले जानवर के समान बिना आराम और खाए-पिए कड़ी मेहनत करता है, उसे निम्न जाति कहा जाता है। 
  • जो ईश्वर और धर्म में विश्वास रखता है, वह आजादी हासिल करने की कभी उम्मीद नहीं कर सकता। 
  • जब एक बार मनुष्य मर जाता है, तो उसका इस दुनिया या कहीं भी किसी के साथ कोई संबंध नहीं रह जाता है। 
  • धन और प्रचार ही धर्म को जिन्दा रखता है। ऐसी कोई दिव्य शक्ति नहीं है, जो धर्म की ज्योति को जलाए रखती है। 
  • धर्म का आधार अन्धविश्वास है। विज्ञान में धर्मों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए बुद्धिवाद धर्म से भिन्न है। सभी धर्मवादी कहते हैं कि किसी को भी धर्म पर संदेह या कुछ भी सवाल नहीं करना चाहिए। इसने मूर्खों को धर्म के नाम पर कुछ भी कहने की छूट दी है। धर्म और ईश्वर के नाम पर मूर्खता एक सनातन रीत है। 
  • ब्राह्मणों ने शास्त्रों और पुराणों की सहायता से शूद्रों (वेश्या या रखैल पुत्र) को बनाया है। हमने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है। हमने तालाब खोदे हैं, मंदिरों का निर्माण किया है, धन दान किया है। लेकिन कौन आनंद ले रहा है? केवल ब्राह्मण आनंद ले रहे हैं। 
  • ब्राह्मणों ने हमें हमेशा के लिए शूद्र बनाने की साजिश रची, जिसके परिणामस्वरुप हमें आर्य धर्म द्वारा दास के रूप में बनाया गया है। और अपने उच्च स्तर की सुरक्षा के लिए उन्होंने मंदिरों और देवताओं को बनाया है। 
  • धनी लोग, शिक्षित लोग, व्यापारी और पुरोहित वर्ग जातिप्रथा, धर्म, शास्त्र और ईश्वर से लाभ उठा रहे हैं। इनकी वजह से इनको कोई परेशानी नहीं होती है। इन्हीं सब चीजों से इनका उच्च स्तर बना हुआ है। 
  • इस तथ्य को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि इस भारत देश को जाति व्यवस्था द्वारा बर्बाद कर दिया गया है। 
  • हम द्रविड़ियन इस देश के मूल निवासी हैं। हम प्राचीन शासक वर्ग से आते हैं। किन्तु आज हम चौथे वर्ण के अधीन बना दिए गए हैं। क्यों? हमारी इस वर्तमान अपमानजनक स्थिति के लिए हमारे पूर्वज, पुरखे और हमारे राजा ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने शर्मनाक व्यवहार किया था। 
  • जब सभी मनुष्य जन्म से बराबर हैं, तो यह कहना कि अकेले ब्राह्मण ही उच्च हैं, और दूसरे सब नीच हैं, जैसे परिया (अछूत) या पंचम, एकदम बकवास है। ऐसा कहना शातिरपन है। यह हमारे साथ किया गया एक बड़ा धोखा है। 
  • एक धर्म को प्यार को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। वह हर एक को दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उसे हर एक को सत्य का सम्मान करना सिखाना चाहिए। दुनिया के लिए ऐसा ही धर्म आवश्यक है, जिसमें ये सारे गुण हों। एक सच्चे धर्म का इसके सिवा कोई अन्य महत्वपूर्ण काम नहीं है। 
  • हमने ईश्वर को आज़ाद नहीं छोड़ा है। आप मंदिर-गोपुरम (टावर) क्यों चाहते हैं? आप पूजा करना क्यों चाहते हैं? आप एक पत्नी; गहने क्यों चाहते हैं? आप स्वर्ण और हीरे के आभूषण क्यों चाहते हैं? आप भोजन क्यों चाहते हैं? क्या आप खाना खाते हैं? क्या आप देवदासियों का आनंद ले रहे हैं, जो आपको अपनी पत्नियों की तरह बुलाती हैं? हमने ईश्वर को आज़ाद नहीं छोड़ा है। हमने उसे प्रश्नों की बौछार के साथ परेशान किया है। अब तक कोई ईश्वर उत्तर देने के लिए आगे नहीं आया है। कोई ईश्वर विरोध करने के लिए आगे नहीं आया है। किसी भी ईश्वर ने हमला करने या दंडित करने की हिम्मत नहीं की। 
  • ये लम्बे और शंकु जैसे टावर किसने बनाए हैं? उनके शिखर पर सोने की परत किसने चढ़ाई? नटराज के लिए सोने की छत किसने बनाई? एक हजार खम्भों वाला मंडपम किसने बनाया? चॉकलेटियों (कारवाँ सराय) के लिए कड़ी मेहनत किसने की? क्या इनमें से किसी भी मंदिर, टैंक और धर्मार्थ चीजों के लिए दान के रूप में एक भी पाई ब्राह्मण ने दी है? जब यह सच है, तो ब्राह्मणों को कुछ भी योगदान किए बिना उच्च जाति बनकर क्यों रहना चाहिए? उन्हें हमें धोखा देने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? यही कारण है कि, हम साहसपूर्वक भगवान को चुनौती दे रहे हैं। ईश्वर ने लोगों का कुछ भी भला नहीं किया है। यही कारण है कि, हम भगवान से पूछते हैं कि क्या वह वास्तव में भगवान है या केवल पत्थर है? ईश्वर गूंगा और अचल रहकर हमारे आरोपों को स्वीकार कर रहा है। इसलिए कोई भी भगवान हमारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने अदालत में नहीं गया है। 
  • अगर धर्म यह कहे कि मनुष्य को मनुष्य का सम्मान करना चाहिए, तो हम कोई आपत्ति नहीं करेंगे। अगर धर्म यह कहे कि समाज में न कोई उच्च है और न नीच, तो हम उस धर्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे।अगर धर्म यह कहे कि किसी को भी उसकी पूजा करने के लिए कुछ भी खर्च करने की ज़रूरत नहीं है, तो हम उस भगवान का विरोध नहीं करेंगे। 
  • ब्राह्मण आपको ईश्वर के नाम पर मूर्ख बना रहे हैं। वह आपको अन्धविश्वासी बनाता है। वह आपको अस्पृश्य के रूप में निंदा करके बहुत ही आरामदायक जीवन जीता है। वह आपकी तरफ से भगवान को प्रार्थना करके खुश करने के लिए आपके साथ सौदा करता है। मैं इस दलाली के व्यवसाय की दृढ़ता से निंदा करता हूँ और आपको चेतावनी देता हूँ कि इस तरह के ब्राह्मणों पर विश्वास न करें। 
  • रूढ़िवादी हिंदुओं के लिए सबूत है कि कुछ देवताओं ने मुस्लिम लड़कियों को जीवन-साथी बना लिया है। ऐसे भी देवता हैं, जो अस्पृश्य समुदाय की लड़कियों से प्यार करते थे और उनसे विवाह करते थे। 
  • हालांकि ब्राह्मण जातियों के मामले में सौदा करने के लिए आगे आ सकते हैं, पर जब तक कृष्णा और उनकी गीता यहां है, जातियों का अंत होने वाला नहीं हैं। 
  • ईश्वर सद्गुणों का प्रतीक है। उसे रूप धारण करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसका भौतिक अस्तित्व ही नहीं है। 
  • इंग्लैंड में न कोई शूद्र है, और न परिया अछूत। रूस में आपको वर्णाश्रम धर्म या भाग्यवाद नहीं मिलेगा। अमरीका में, लोग ब्रह्मा के मुख से या पैरों से पैदा नहीं होते हैं। जर्मनी में भगवान भोग नहीं लगाते हैं। टर्की में देवता विवाह नहीं करते हैं। फ्रांस में देवताओं के पास 12 लाख रुपये का मुकुट नहीं है। इन देशों के लोग शिक्षित और बुद्धिमान हैं। वे अपना आत्मसम्मान खोने के लिए तैयार नहीं होते हैं। बल्कि, वे अपने हितों और अपने देश की सुरक्षा के लिए तैयार होते हैं। अकेले हमें क्यों बर्बर देवताओं और धार्मिक कट्टरवाद को मानना चाहिए। 
  • उस ईश्वर को नष्ट कर दो, जो तुम्हें शूद्र कहता है। उन पुराणों और महाकाव्यों को नष्ट कर दो, जो हिन्दू ईश्वर को सशक्त बनाते हैं। यदि कोई ईश्वर वास्तव में दयालु, हितैषी और बुद्धिमान है, तो उसकी प्रार्थना करो। 
  • प्रार्थना क्या है? क्या इससे नारियल टूट रहा है? क्या यह ब्राह्मणों को पैसे दे रही है? क्या यह त्यौहारों में है? क्या यह ब्राह्मणों के चरणों में गिर रही है? क्या यह मन्दिर बना रही है? नहीं, यह हमारे अच्छे व्यवहार में निहित है। हमें बुद्धिमान लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए। प्रार्थना का यही सार है।

समाज 

  • एक समय था, जब हमें तमिल कहा जाता था। पर आज तमिल का प्रयोग तमिल भाषा के लिए किया जाता है। अत: आर्य संस्कृति और आर्य सभ्यता के लोग भी इसलिए अपने आप को तमिल कहते हैं, क्योंकि वे तमिल बोलते हैं। इतना ही नहीं, वे हम पर आर्य सभ्यता को भी थोपना चाहते हैं। मैं कहता हूं कि आज हमें उनके साथ सहयोग करने के कारण ही शूद्र कहा जाता है। 
  • हम रक्त के बारे में चिंतित नहीं हैं। हम संस्कृति और सभ्यता के बारे में चिंतित हैं। हम भेदभाव रहित समाज चाहते हैं। हम समाज में किसी के भी साथ प्रचलित भेदभाव के कारण अलगाव नहीं चाहते हैं। 
  • हिन्दू धर्म और जाति-व्यवस्था नौकर और मालिक का सिद्धांत स्थापित करती है। अगर भगवान हमारे पतन का मूल कारण है, तो भगवान को नष्ट कर दो। अगर यह काम मनु धर्म, गीता या कोई अन्य पुराण कर रहा है, तो उन्हें भी जलाकर राख कर दोI अगर यह काम मन्दिर, कुंड या पर्व करता है, तो उनका भी बहिष्कार करो। अंतत: यह हमारी राजनीति है, तो इसे आगे आगे बढ़कर खुलेआम घोषित करो। 
  • मनुष्य मनुष्य बराबर है। कोई शोषण नहीं होना चाहिए।हर एक को दूसरे की मदद करनी चाहिए। किसी को भी किसी का नुक्सान नहीं करना चाहिए। किसी को भी कोई कष्ट या शिकायत नहीं होनी चाहिए। हर किसी को राष्ट्रीय भावना के साथ जीना चाहिए और दूसरे को भी जीने देना चाहिए। 
  • स्वाभिमान आन्दोलन का आदर्श क्या है? इस आन्दोलन का मकसद उन संगठनों का पता लगाना है, जो हमारी प्रगति में बाधक बने हुए हैं। यह उन ताकतों का मुकाबला करेगा, जो समाजवाद के खिलाफ काम करते हैं। यह समस्त धार्मिक प्रतिक्रियावादी ताकतों का विरोध करेगा। यह उन लोगों का विरोध करता है, जो कानून-व्यवस्था भंग करते हैं। स्वाभिमान आन्दोलन शान्ति और प्रगति के लिए काम करता है। यह प्रतिक्रियावादियों को कुचल देगा। 
  • एक समाजवादी समाज को तैयार करने के लिए और आम आदमी तथा दलित वर्गों का हित करने के लिए स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया गया था। पर समाज के सभी वर्गों में शांति और संतोष स्थापित करना भी आज आंदोलन की एक और ज़िम्मेदारी है। 
  • यदि लोग और देश समृद्ध हैं, तो शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुशासन में भारी सुधार किया जाना चाहिए । 
  • द्रविड़ियन आन्दोलन ब्राह्मणवाद के खात्मे तक सक्रिय और जिन्दा रहेगा। तब तक हमारे दुश्मनों या सरकार द्वारा हमारे साथ कुछ भी अत्याचार, दमन, साजिश और विश्वासघात किया जा सकता है, पर हमें विश्वास है कि अंत में सफलता निश्चित रूप से हमारी होगी। 
  • मुझे ब्राह्मण प्रेस द्वारा ब्राह्मण-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है। किन्तु मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी ब्राह्मण का दुश्मन नहीं हूँ। एकमात्र तथ्य यह है कि मैं ब्राहमणवाद का धुर विरोधी हूँ। मैंने कभी नहीं कहा कि ब्राह्मणों को खत्म किया जाना चाहिए। मैं केवल यह कहता हूँ कि ब्राह्मणवाद को खत्म किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि कोई ब्राह्मण स्पष्ट रूप से मेरी बात समझ नहीं पाता है। 
  • जातियां नहीं होनी चाहिए। जन्म के कारण स्वयं को उच्च या निम्न नहीं बुलाया जाना चाहिए। यही वह चीज है, जो हम चाहते हैं। अगर हम यह कहते हैं, तो यह गलत कैसे है? 
  • कांग्रेस पार्टी से अकेले ब्राह्मण और धनी लोग ही लाभ उठा रहे हैं।यह आम आदमी, गरीब आदमी और श्रमिक वर्गों के लिए अच्छा काम नहीं करेगी। यह बात मैं काफी लम्बे समय से कह रहा था। आप लोगों ने मेरी बातों पर विश्वास नहीं किया। पर अब आप लोग कांग्रेस शासन में चीजों को देखने के बाद, सच्चाई को महसूस कर रहे हैं। 
  • जब मैं तमिलनाडू कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष था, तो मैंने 1925 के सम्मेलन में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। उस प्रस्ताव में मैंने जातिविहीन समाज के निर्माण का समर्थन किया था। मेरे मित्र राजगोपालाचारी ने अस्वीकृत कर दिया थाI मैंने यह भी अनुरोध किया था कि कांग्रेस के विभिन्न पक्षों और क्षेत्रों में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का पालन किया जाना चाहिए। पर यह प्रस्ताव भी विषय समिति में थिरु वि. का. (एक सम्मानित तमिल विद्वान कल्यानासुन्दरानर) के द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया थाI तब मुझे अपने प्रस्ताव के समर्थन में 30 प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए कहा गया था। श्री एस. रामानाथन ने 50 प्रतिनिधियों से हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए। तब सर्वश्री सी. राजगोपालाचारी (राजाजी), श्रीनिवास आयंगर, सत्यमूर्ति और अन्य लोगों ने अपना प्रतिरोध दर्ज करायाI उन्हें डर था कि अगर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया, तो कांग्रेस खत्म हो जाएगीI बाद में यह प्रस्ताव थिरु वि. का. और डा. पी. वरदाराजुलू के द्वारा रोक दिया गयाI ब्राह्मण बहुत खुश हुएI इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे सम्मेलन में बोलने की इजाजत भी नहीं दी, यह केवल उस दिन हुआ, जब मैंने कांग्रेस पार्टी में प्रमुख ताकतों से लड़ने की अपील की थी। मैंने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व लागू करने के लिए संघर्ष करने के लिए संकल्प किया। मैंने सम्मेलन में अपना दृढ़ निश्चय घोषित किया और मैं कांग्रेस सत्र से बाहर चला गया। उसी दिन से मैं कांग्रेस पार्टी की चाल, षड्यंत्र और धोखाधड़ी की गतिविधियों का खुलासा कर रहा हूं। 
  • जिसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है, वह चीज बहुत पहले ही गायब हो गई। जो लोग सरकार के खिलाफ वैध आरोप लगाते हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। उन पर स्वतंत्रता के दुश्मनों के रूप में झूठा आरोप लगाया जाता है। 
  • उन व्यक्तियों के विवरण जानिए, जिन्होंने पहले ही धन और लाभ अर्जित कर लिए हैं। इस बुराई को रोकने के लिए साधन क्या तैयार किये। क्या हमें किसी व्यक्ति को इस तरह धन इकट्ठा करने की अनुमति देनी चाहिए? 
  • कांग्रेस और अंग्रेजों के बीच हुए समझौते के कारण यह सरकार अस्तित्व में आई है। यह वह स्वतंत्रता नहीं है, जो सभी भारतीयों को दी गई है। इस स्वतंत्रता से गैर-कांग्रेसी लोगों को कोई लाभ नहीं हुआ है। वे कहीं भी प्रतिनिधित्त्व नहीं करते हैं। जातिवाद की बुराई भी गायब नहीं हुई है। 
  • आर्यों ने द्रविड़ों को दीपावली, राम का जन्मदिन, कृष्ण का जन्मदिन त्यौहार मनाने के लिए बनाए। इसी तरह उत्तर भारतीयों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए 15 अगस्त बनाया। इस सब के सिवा कोई अन्य लाभ या प्रशंसनीय कार्य नहीं है। 
  • प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। यह उसका अभिव्यक्ति के अपने अधिकार के प्रयोग करने का अधिकार है। इस अधिकार को अस्वीकार करना अन्यायपूर्ण है। बोलने की आजादी लोकतंत्र का आधार है।

श्रमिक 

  • अमीर लोग जो मजदूरों का शोषण करते हैं और अपनी संपत्ति की रक्षा करने की कोशिश करते हैं और जो लोग एक खुशहाल जीवन का आनंद लेना चाहते हैं और जो लोग अधिक धन के लिए भगवान से याचना करते हैं और जो मृत्यु के बाद भी नाम और प्रसिद्धि चाहते हैं और जो अपनी संपत्ति अपने बेटों और पोतों के लिए छोड़ना चाहते हैं, वे हमेशा शाश्वत चिंता में रहते हैं। किन्तु एक कठोर श्रम करने वाले श्रमिक के साथ ऐसा नहीं है। 
  • विश्व में श्रम समस्या हमेशा लोगों की समस्या है। यह श्रमिक ही है, जो विश्व में सब कुछ बनाता है। लेकिन यह श्रमिक ही चिंताओं, कठिनाइयों और दुःखों से गुजरता है। 
  • कुरल (Kural) एक दुर्लभ किताब है जो जाति, धर्म, भगवान और अंधविश्वास से ऊपर है। यह उच्च गुणों और प्रेम की प्रतीक है। 
  • तिरुवल्लुवार का कुरल अकेला ग्रन्थ है, जो हमारे देश के लोगों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त है। 

बुद्धिवाद 

  • ज्ञान का आधार सोच है। सोच का आधार तर्कवाद है। 
  • कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग को नुकसान नहीं पहुंचाता है। कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग को निम्न स्तर का नहीं बनाता है। कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग का शोषण नहीं करता है। लेकिन मनुष्य, जो एक बुद्धिमान जीवित प्राणी कहा जाता है, इन सभी बुराइयों को करता है। 
  • भेदभाव, घृणा, शत्रुता, ऊँच-नीच, गरीबी, दुराचरण इत्यादि, जो अब समाज में प्रचलित हैं, वह ज्ञान और तर्कवाद की कमी के कारण हैं। वे भगवान या समय की क्रूरता के कारण नहीं हैं। 
  • विदेशी ग्रहों को संदेश भेज रहे हैं। हम ब्राह्मणों के माध्यम से हमारे मृत पूर्व पिता को चावल और अनाज भेज रहे हैं। क्या यह बुद्धिमानी का काम है? 
  • मैं ब्राह्मणों के लिए एक शब्द कहना चाहता हूं, ‘भगवान, धर्म, शास्त्रों के नाम पर आपने हमें धोखा दिया है। हम शासक लोग थे। अब धोखा देने के इस जीवन को खत्म करो। तर्कवाद और मानवता के लिए जगह दो।’ 
  • मैंने 17 साल की उम्र में ही इन देवताओं और ब्राह्मणों का विरोध किया था। तब से आज तक, पिछले 53 सालों से मैं तर्कवाद का उपदेश दे रहा हूँI क्या मैं इसके लिए मारा गया हूँ? क्या मैं अपमानित किया गया हूँ? बिल्कुल नहीं। तो, आप डरते क्यों हैं? ज्ञान की तलाश करो।

सुधार 

  • आम आदमी सोचता है कि शादी काम करने के लिए किसी की नियुक्ति करने की तरह है। पति भी ऐसा ही सोचता है! पति का परिवार भी ऐसा ही सोचता है। हर कोई सोचता है कि एक लड़की काम करने के लिए परिवार में आ रही है। लड़की का परिवार भी लड़की को घर का काम करने के लिए प्रशिक्षित करता है। 
  • शादी का मतलब क्या है? खुशी के साथ प्राकृतिक जीवन का आनंद लेने के लिए एक पुरुष और एक स्त्री परस्पर एक होते हैं। कड़ी मेहनत के बाद उससे सन्तोष मिलता है। ज्यादातर लोगों को यह एहसास नहीं होता कि विवाहित जीवन के साझा सुख विवाह हैं। 
  • विवाह के परिणाम युगल की इच्छाओं के कारण होने चाहिए। यह उन हृदयों की बुनाई है, जो शादी का कारण बनते हैं। 
  • बाल विवाह खत्म होने चाहिए। अगर तलाक का अधिकार है, तो विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी अधिकार हो और यदि महिलाओं को अब कुछ अधिकार दिए गए हैं, तो हम देश में वेश्यावृत्ति को नहीं देखेंगे। यह धीरे-धीरे गायब हो जाएगी। 
  • एक पुरुष को आनंद के लिए, जो वह चाहता है, भटकने का अधिकार है। उसे कितनी ही लड़कियों से शादी करने का अधिकार है। इस प्रवृत्ति ने स्त्रियों को वेश्यावृत्ति की ओर अग्रसर किया है। 
  • कोई भी राजनेता और अर्थशास्त्री समाज-सुधार की उन वास्तविक योजनाओं को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिनकी समाज को जरूरत है। 
  • मुझ पर दुनिया को बर्बाद करने का आरोप लगाया जाता है। दुनिया को बर्बाद करके मैं क्या हासिल करने जा रहा हूँ? मुझे समझ में नहीं आता कि ब्राह्मण भक्त वास्तव में क्या महसूस करते हैं। क्या कोई दुनिया को बर्बाद करने के लिए प्रचार करेगा? मुझे उम्मीद है कि वे जल्द ही इस पर तर्कसंगत विचार करेंगे। 
  • यह पता लगाना बुद्धिमान लोगों का कर्तव्य है कि खादी आन्दोलन से देश को कोई लाभ हुआ है या नहीं? आज के आधुनिक औद्योगिक और राजनीतिक दौर में यह केवल एक अनाचारवाद है। 
  • गरीबी का मूल कारण समाज में पूंजीपतियों का अस्तित्व है। यदि समाज में पूंजीपति लोग नहीं रहेंगे, तो गरीबी नहीं होगी। 
  • जब तक हम शासक वर्गों को चाहते रहेंगे, यहां चिंताएं और चिंतित लोग बने रहेंगे। इसी वजह से देश में गरीबी और महामारी हमेशा बनी हुई है। 
  • यदि हम मंदिरों की संपत्ति और मंदिरों में अर्जित आय को नए उद्योग शुरू करने के लिए खर्च कर दें, तो न कोई भिखारी, न कोई अशिक्षित और न कोई निम्न स्तर वाला व्यक्ति होगा। एक समाजवादी समाज होगा, जिसमें सब समान होंगे। 
  • जब से ब्राह्मण यहां आए (तमिलनाडु), शायद ही कभी हम किसी से पूछते हैं कि ब्राह्मण क्यों? शूद्र क्यों? यहां तक कि जिन लोगों ने पूछा था, उन्हें शांत कर दिया गया। वल्लुवार और कपिलर ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि जन्म से कोई उच्च और निम्न जाति नहीं है। ब्राह्मण उनके विचारों का विरोध नहीं कर सके। उन्होंने बस उनके विचारों का प्रचार नहीं किया। 
  • मूर्तियों तथा वेदों को, जो अज्ञानता पैदा करते हैं, और उपनिषद, मनुस्मृति, बाराथम जैसे लोगों को मूर्ख बनाने वाले ग्रन्थों को हमारी तमिलनाडु की सीमाओं से बाहर निकाल दिया जायेगा। 
  • मैंने ब्राह्मणों को तुच्छ मानने के लिए कुछ भी नहीं बोला है, सिर्फ इसलिए कि वे ब्राह्मणों के रूप में पैदा हुए हैं। 
  • कांग्रेस पार्टी का नेता ब्राह्मण है। सोशलिस्टों का नेता ब्राह्मण है। कम्युनिस्टों का नेता ब्राह्मण है। हिन्दू महासभा का नेता ब्राह्मण है। आरएसएस का नेता ब्राह्मण है। ट्रेड यूनियन का नेता ब्राह्मण है। भारत का राष्ट्रपति ब्राह्मण है। वे सभी दिलों के दिल में हैं। 

Post Resources and credits:  Forward Peress

December 9, 2018

बौद्ध धम्म क्या है, ये अन्य धर्मों से कैसे अलग है ?

‘बौद्ध’ शब्द बुद्धि से बना है जिसका अर्थ है “जागृत मस्तिष्क”, जो सत्य को सत्य और असत्य को असत्य की दृष्टी से देखने में सक्षम हो।

ये वो दर्शनशास्त्र है जिसकी शुरुआत लगभग 563 BC में जन्मे महामानव सिद्धार्थ गौतम ने 35 वर्ष की उम्र में बोधिसत्व की प्राप्ति के बाद अपने अनुभव को देशना स्वरुप संसार को दिए। ये धम्म मार्ग पिछले ढाई हज़ार से भी ज्यादा सालों से मानव का कल्याण करता आ रहा है और आगे भी हमेशा करता रहेगा, क्योंकि इसका मूल ज्ञान अन्य धर्मों की तरह समय के साथ पुराना और अस्वीकार्य नहीं होता। जनसँख्या की दृष्टी से कहें तो आज पूरे संसार में बौद्ध धम्म को मानने वाले दूसरे नम्बर पर हैं, लगभग 1.6 बिलियन लोग इससे लाभान्वित हैं। पहले ये एशिया महाद्वीप में ज्यादा प्रचलित था, इसीलिए बुद्धा को लाइट ऑफ़ एशिया भी कहते थे, पर अब इसे यूरोप आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे उन्नत देश तेज़ी से अपना रहे हैं क्योंकि उनमें बौद्ध धम्म को समझने के लिए वैज्ञानिक मानसिकता का प्रचार उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध है।

बौद्ध धम्म असल में धर्म शब्द की परिभाषाओं से कहीं आगे का तत्व ज्ञान है, इसीलिए इसे हम धर्म न बोलकर धम्म बोलते हैं, जिससे की इसे अन्य धर्मों के समतुल्य न समझा जाए। बौद्ध धम्म को हम धर्म इसलिए नहीं कहते क्योकि ये अन्य धर्मों की तरह केवल आस्था, गुटबाजी, पुरोहितवाद, ईश्वरवाद और उनसे जुडी मान्यताओं पर नहीं चलता। इसका लक्ष्य मानव में ऐसे मानसिक योग्यता पैदा करना है जिससे वो असत्य को पहचान और नकार सके, सत्य, प्रमाणिकता और तर्क की क्षमता विकसित करता है। बौद्ध धम्म ऐसी कसौटी या सन्दर्भ हवाला (रेफरेंस) का काम करता है जिसकी सहायता से व्यक्ति मानव संसार में व्याप्त हर तरह के इश्वरिय सिद्धांत या पैगम्बर के सन्देश का सही आंकलन करके कर्मकांड, परंपरा, धर्मादेशो, मान्यताओं आदि को परख सके चुन सके और नकार सके।

बुद्ध ने कहा है:
“तुम किसी बात को इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये पहले कभी नहीं सुनी, इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये सदियों से चली आ रही हैं, किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे बुजुर्गो ने कही हैं, किसी चीज को इसलिए मत मानो की ये किसी धर्मग्रन्थ के अनुकूल है। किसी चीज को इस लिए मत स्वीकार करो क्योंकि कहने वाले का व्यक्तित्व आकर्षक है। किसी चीज को इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये स्वयं मैंने कही है। किसी चीज को मानने से पहले यह सोचो की क्या ये सही हैं, किसी चीज को मानने से पहले ये सोचो की क्या इससे आप का विकास संभव है, किसी चीज को मानने से पहले उसको बुद्धि की कसोटी पर कसो और स्वानुभव से हितकर जानो तो ही मानो नहीं तो मत मानो।”

हिंदी के धर्म शब्द को पाली भाषा में धम्म कहते हैं, अन्य धर्मों और बौद्ध धर्म में बहुत ज्यादा फर्क है पर सारा मीडिया बौद्ध धर्म को अन्य धर्मों के समतुल्य खड़ा करने में लगा है ऐसे में जनसाधारण के लिए बौद्ध धम्म को सही से समझना बेहद मुश्किल हो जाता है। जब लोग बौद्ध विचारधारा को धर्म के रूप में नहीं धम्म के रूप में ग्रहण करेंगे तभी लाभान्वित हो सकते है।

अगर सही में बौद्ध धम्म को जानना हो तो में एक वाक्य में बौद्ध धम्म को आपके सामने रखता हूं कि, "डॉ आंबेडकर द्वारा रचित भारत का संविधान ही असल बौद्ध धम्म है, इसी में बौद्ध धम्म की मूल भावना है जो हर किसी के लिए हितकर है, बाकि बौद्ध धम्म में युगों से चलती आयीं बातें मात्र हैं।"

हम धर्म नहीं धम्म शब्द का प्रयोग उचित मानते हैं। आप कह सकते हो की शब्द से क्या फर्क पड़ता है, इससे वही फर्क पड़ता है जैसे हिंसक यज्ञ भंग करने वाला भंगी आज अपशब्द हो गया है, बुद्धिमान व्यक्ति के लिए पंडित शब्द का प्रयोग, रक्षा करने वाले को राक्षश और राक्षश का आज मतलब है अधर्मी। शब्दों में बहुत बात होती है। कोई ऐसे ही श्रेष्ठ नहीं है वो हर मोर्चे पर काम कर रहा होता है इतने बारीक मोर्चे पर भी काम किया गया है, जिसे हम कभी ध्यान ही नहीं दे पाते। टीवी के विज्ञापनों में भी केवल कुछ ही जातिसूचक उपनाम आते हैं, क्या ये जरूरी है, इतने बड़े देश में सिर्फ यही लोग हैं ? क्या केवल नाम से काम नहीं चलेगा? खेर ये उनका संघर्ष है वो अपनी जगह सही हैं सवाल ये है की आप का संघर्ष क्या है ?

धम्म विरोधी अवसरवादियों द्वारा फैलाई गई घृणा के कारन आज आम जनता दुखी है, पर दुःख दूर करने के स्रोत तक नहीं जाना चाहती। आपसे आग्रह है की एक बार इसे जानकार तो देखो, मानना न मानना तो बाद की बात है.. 

बुद्ध ने कहा है :
“यदि मै कहता हूँ की उस भवन मे दिया जल रह है तो तुम केवल आस्था से उसे मत मानो, मेरे कहने से उसे मत मानो, तुम बस मेरा निमंत्रण स्वीकार करो और उस दिए को स्वयं देखने जाओ और तब मानो।”

बुद्ध ने कहा है :
“मोह में हम किसी की बुराइयाँ नहीं देख सकते और घृणा में हम किसी की अच्छाईयाँ नहीं देख सकते”।

आज बौध धम्म का सबसे बड़ा नुक्सान ये बात कर रही है की ये दलितों का धर्म है, दलित मतलब ऐसा वर्ग जिसका सामाजिक बहिष्कार किया हुआ है जिनके खिलाफ घृणा का माहौल बनाया हुआ है इसि वजह से लोग इस धम्म को समझने के लिए भी तैयार नहीं जब कि ये वो मत है की इसे जो भी एक बार ठीक से समझ ले उसे फिर दुनिया में किसी भी धर्म के सिद्धांत में सहि और गलत समझने लगते हैं।









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मायावती होना मुश्किल है!

अगर केवल मूर्ति बनाने के ही आर्थिक और सामाजिक पहलुओं की तुलना कर ली जाये तो समझ जायेंगे कि मायावती होना मुश्किल है. लखनऊ पार्क की लगत 100 करोड़ (आधिकारिक) और एक नया पैसा विदेश नहीं गया. देश के संसाधनों से देश की प्रतिभाओं ने अद्वतीय कारनामा कर दिखाया.

2007 में जब मायावती ने यूपी की सात संभाली तो पिछला बजट था 80 हजार करोड़ का. और जब 2012 में मायावती सत्ता छोड़ी तो बजट 2 लाख करोड़ से ऊपर था. मायावती द्वारा पेश आखिरी बजट में राजकोषीय घाटा 2.8% था और उसी वर्ष भारत सरकार का राजकोषीय घाटा 5.2% था. इसलिए आर्थिक नीतियों के मामले में भी मायावती होना मुश्किल है.

मायावती का शासन कानून का शासन होता है. मायावती को शासन चलाने के लिए किसी विशेष-सख्त कानून की जरुरत नहीं होती. इसी लिए मायावती ने अपने शासन में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण कानून से तुरंत गिरफ़्तारी का प्रावधान हटवा दिया था. मायावती के शासन में जातीय या सांप्रदायिक दंगे नहीं हो सकते. इसलिए मायावती होना मुश्किल है.

लखनऊ चमकाया, नौयडा चमकाया; एक्सप्रेसवे दिया, फार्मूला वन ट्रैक दिया; किसानों को उनकी मर्जी का मुआवजा दिया; बिजली उत्पादन 5 साल में 3500 MW से 8000MW पहुँच दिया. इसलिए मायावती बनना मुश्किल है.

मायावती ने अपने शासन में 7 मैडीकल कालेज, 5 इंजीनियरिंग कालेज, 2 होमियोपैथिक कालेज, 2 पैरा मैडीकल कालेज, 6 विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय, 100 से अधिक डिग्री कालेज, 572 हाईस्कूल, 100 से अधिक ITI खोले. कभी गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय नोएडा जा कर देखिये. इसलिए मायावती बनना मुश्किल है.

जनता की सुविधा के लिए 27 नए जिलों का गठन किया तो 27 नए जिला अस्पताल, 27 नए जिला एवं सत्र न्यायालय, 27 नए जिलाधिकारी कार्यालय, 27 नए विकास भवन भी बनाये गए. 45 नई तहसील और 40 विकास खंड बने जिसमें लाखो लोगों को रोजगार मिला. इसलिए मायावती होना मुश्किल है.

मायावती के समय में ठेकों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए ई-टेंडरिंग शुरी की गई. मायावती के शासन में हुई किसी भर्ती में पक्षपात या भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा और न ही कोई भर्ती कोर्ट में चेलेंज की गई. इसलिए मायावती होना मुश्किल है.

मायावती ने अपने 1995 में अपने मात्र 4 महीने के शासन काल में 7 लाख एकड़ खेती की जमीनों के पट्टे भूमिहीनों को दिए. उसके बाद के हर शासन में ये आंकड़ा और बढ़ा. इसलिए आयरन लेडी मायावती होना मुश्किल है..



कच्चे घड़े पर तरना, तो मरने से क्या डरना!! - साहब कांशीराम

घटना उन दिनों की है, जब साहब नागपुर की रैली के लिए आये थे. रविभवन के सरकारी कॉटेज पर रुके थे. रैली दूसरे दिन दोपहर को होनेवाली थी. अत: आज शाम का समय साहब कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत में गुजार रहे थे. उस कमरे में कुछ प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित थे. साहब कार्यकर्ताओं से उनका हालचाल पूछ रहे थे. कुछ पार्टी की बातें तो कुछ अवांतर चर्चा चल रही थी. उस समय कुछ बड़े राजनीतिक नेताओं पर जानलेवा हमले किये जाने की खबरे सुर्ख़ियों में थी. उस समय साहब पुरे देश में बगैर सेक्युरिटी से भ्रमण करते थे. इस बात पर चिंता जताते हुए एक कार्यकर्ता ने साहब से कहा,

“साहब! आपको अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए. वक्त अच्छा नहीं है. सिरफिरे मनुवादी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं”

इस पर प्रत्यक्ष जवाब न देते हुए मान्यवर कांशीरामजी ने एक कहानी सुनायी. वे बोले, “हमारे पंजाब में एक कहावत है, ‘कच्चे घड़े पर तरना तो मरने से क्या डरना’ पंजाब में जो दिवाने युवक होते थे वे अपनी नदी पार रहने वाली प्रेमिका को मिलने के लिए बेसब्र होते थे. उस समय नदी पार करने के लिए आज की तरह बोट आदि साधन नही होते थे. लकड़ी की नौका भी उस समय उपलब्ध नही होती थी. अत: दिवाने युवक नदी पार रहनेवाली अपनी प्रेमिका को मिलने के लिए कुम्हार के मटके का इस्तेमाल किया करते थे. वे कुंभार के आंगन से मटका उठाकर उसको पकड़कर नदी पार करते थे. यह मटका उन्हें डूबने से बचाता था.”

“मगर कभी-कभी गलती से कच्चा मटका उनके हाथ लग जाता था. दिवानगी की धुन में वे कच्चे मटके की ओर ध्यान नही दे पाते थे. और कच्चे मटके के साथ नदी की धार में कूद जाते थे. जब वे मंझधार में पहुंचते थे तो कच्चे मटके की मिट्टी गलने लगती थी. मटके में पानी भर जाता था और प्रेमिका के मिलन को तरसाने वाला वह युवक नदी में डूब जाता था.”

“बाबासाहब के मिशन को ईमानदारी से आगे बढ़ाया है मैंने. अब अगर मौत भी आ जाए तो मरने का गम नही होगा.”

मान्यवर कांशीरामजी ने आगे कहा, “मेरी स्थिति भी कुछ इस प्रकार है! मैं जिस बहुजन समाज को साथ लेकर सम्पूर्ण परिवर्तन के मकसद की ओर तैर रहा हूं, वह समाज कच्चे मटके की तरह है. हमारा समाज आज भी गरीब, निरक्षर और नादान है. अपने अच्छे-बुरे की उसे पहचान नहीं है. कर्तव्य के प्रति वह कठोर नहीं है. जल्द ही मनुवादियों की लालच में आ जाता है. संकुचित स्वार्थ के खातिर आपस में टूट जाता है. ऐसे समाज को साथ लेकर मै तैर रहा हूं. मैंने अपना पूरा जीवन दांव पर लगाया है. मेरी हिफाजत करने की जिम्मेदारी मेरे समाज की है. मगर मेरा समाज आज इस बात के प्रति भी अनजान है. उसमें जागृति का अभाव है. ऐसे में कभी भी मेरे साथ धोखा हो सकता है. मगर मुझे अब इसकी परवाह नहीं है. क्योंकि नदियां पार करने की धुन मेरे सिर पर सवार है. अब किनारा पार करूं या मंझधार में खो जाऊ. मुझे इसकी चिंता नही है.”

सब कार्यकर्ता गम्भीरता से साहब की बात सुन रहे थे. साहब बोलते जा रहे थे… उन्होंने आगे कहा,

“साथियों, वैसे तो मैंने काफी अंतर तैर लिया है. काफी अंतर पार कर चूका हूं. जो लक्ष्य पाना चाहता था उसके करीब पहुंच चुका हूं. इस देश के बहुजन समाज को काफी आगे बढ़ाया है मैंने. उनके पैरों में चलने की ताकत पैदा कर दी है. बाबासाहब के मिशन को ईमानदारी से आगे बढ़ाया है मैंने. अब अगर मौत भी आ जाए तो मरने का गम नही होगा.”

कहते-कहते साहब अचानक भावविभोर हो गये. अनायास उनकी आंखों में आंसू तैरने लगे. उनके साथ सारे कार्यकर्ताओं की आंखे भर आयी..

October 21, 2018

माँगनेवाले समाज को देनेवाला समाज बनाना है.. - साहब कांशी राम

साहब कांशी राम की एक बहोत ही प्रसिद्द तस्वीर है, जिसमे वो हाथ में इंक पैन लेकर लोगो को संबोधित कर रहे है.. उस तस्वीर के पीछे का सन्देश भी जानना बहोत जरूरी है.. वह पैन को दोनों हाथ से सीधी खडी लाइन में पकड़कर लोगो से पूछते थे की, यह जो पैन है वह किस तरह से काम करती? लोग आसानी से कहते की, पैन श्याही और उसकी लीड से चलती है.. फिर दोबारा वह पूछते की, खासतौर पर उसमे क्या दीखता? तब लोग कहते की, उसमे तो उसका डिज़ाइन वाला ढक्कन ही खास दिख रहा है!! 
तब साहब कांशी राम कहते की, इसी तरह भारत की समाज व्यवस्था में भी ऐसा ही है.. जिसमे देश की 85% बहुजन जनता ही सही अर्थ में काम कर रही है इसलिए असली ताकत तो वो लोग है.. जबकि 15% जनता तो इस पैन के ढक्कन की माफक है जो सिर्फ दिखावे के लिए ही है.. अगर ढक्कन ना हो, फिर भी पैन का काम रुकेगा नही; कुछ भी काम किये बिना यह ढक्कन पुरे पैन पर अपना प्रभुत्व दिखा रही है.. भारत देश में भी इसी प्रकार, पुरे देश के संसाधनों पे 15% लोग अपना कब्ज़ा जमाकर बैठ गए है, और असल में जो मेहनतकश समाज है वह अपमानित हो रहा है.. 

साहब कांशी राम मानते थी की, इस खड़ी लाइन में रही पैन को टेढ़ा करने पर जो समानता स्थापित होती है जहां पैन की बोडी, लीड और ढक्कन हरेक को एक समान मान मिलता है, वेसी ही व्यवस्था भारतीय समाज में बनाना बहुजन समाज का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए.. भारत देश की अनुसुचित जाति  (Schedule Catse)- जनजाति (Schedule Tribes), अन्य पिछड़ी जाति (Other Backward Classes) व् अल्पसंख्यक (Minorities) लोगो को मिलके जो बहुजन समाज बनता है, उस जनता को अपनी ताकत का कोई अनुमान नही है और यही वह कारन है जिसकी वजह से वह पछात बने रहे है.. अगर मानवीय सभ्यता को स्थापित करना है तो उसके लिए समस्त बहुजन समाज को प्रयत्न करना पड़ेगा.. एक दो लोगो के प्रयत्नों से कुछ खास प्राप्त नही होगा..

सन्दर्भ : मान्यवर (लेखक : विशाल सोनारा, अनुवादक : कुंदन मकवाना)

Youtube Video:

October 20, 2018

बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशी राम के विचार

बुद्ध, फुले, शाहू, पेरियार, आम्बेडकर के मिशन को एक नई पहचान व् दिशा देने वाले बहुजनो के मसीहा मान्यवर साहब कांशी राम के समाज, धर्म व् राजनीती से संबधित विचार...

गुरु गोविंदसिंह ने कहा है की, धरम के बिना राज नही और राज के बिना धरम नही, अर्थात धरम के बिना राज और राज के बिना धरम आगे नही बढ़ शकता। इसलिए मुझे भी पीछे मुड़कर सोचना पड़ा कि, जब सम्राट अशोक बौद्ध बना, तब बौद्ध धम्म बड़े पैमाने पर फला-फुला, जब सम्राट कनिष्क बौद्ध बना तो बौद्ध धम्म बड़े पैमाने पर फला-फुला, जब सम्राट हर्षवर्धन बौद्ध बना तो बौद्ध धम्म बड़े पैमाने पर फला-फुला.. तो इसलिए बौद्ध धम्म को फलना फूलना है, तो जो लोग बौद्ध धम्म को फैलाने वाले लोग है, उन लोगो को हुक्मरान बनना जरूरी है। अगर वो हुक्मरान बनते है, तो बौद्ध धम्म भी फलता-फूलता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra 

मुझे ऐसा लगा कि, अगर जिंदगी में हमे किसी दिशा में आगे बढ़ना है, तो शुद्र और अतिशूद्र लोगो को हुक्मरान बनना जरूरी है। इन लोगो की हुकूमत होगी तो ये लोग अपने हिसाब से अपने कारोबार को चलाने लगेंगे, तो तब ही इनकी बात आगे बढ़ सकती है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आज हमारे महापुरुष जिंदा नही है, हम लोग जिंदा है, इसलिए हम लोगो को उनके एजेंडा को लागू करना है और लागू करने के लिए उस एजेंडा को पहले अच्छी तरह समझना है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

बाबासाहब की मूवमेंट एक शरीर है, जिसमे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ये जरूरी अंग है। जिसमे एक को भी छोड़ दिया जाए तो शरीर खराब हो जाएगा और बीमारी बढ़ जाएगी। इसलिए हमें सारी मूवमेंट को एक साथ आगे बढ़ाना है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जब आदमी ईमानदारी से काम करता है तो उसके परिणाम भी बेहतर आते है। इसलिए आप लोगो को भी मेरी राय है कि आप लोग भी अपना समय व्यर्थ न गवाए और काम करे। जब तुम ईमानदारी से काम करोगे तो कामयाबी तुम्हे सलाम करेगी। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra 

महामना ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज और बाबासाहब के बारे में मैं हमेशा सोचता रहता हूँ कि, सबसे बड़ा काम जो इन महापुरुषों ने अपनी जिंदगी में किया है, वो काम है, छुआछूत का अंत करने का, फिर उसके बाद अनपढ़ लोगो को पढ़ने-लिखने का मौका.. इसलिए खासकर जो लोग हजारो सालो तक छुआछूत का शिकार रहे उन लोगो को इन तीन चीजो के बारे में जानकारी रखना जरूरी है - छुआछूत का अंत, पढ़ने लिखने की शरुवात, पढ़ने लिखने के बाद आरक्षण। ये तीन चीजे हमारे बुजुर्गो के बारे मे, इन तीनो महापुरुषों के बारे में, खासकर अछूत कहे जाने वाले लोगो को ऋणी रहना चाहिए। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra 

मुझे ऐसा लगा कि, अगर जिंदगी में हमे किसी दिशा में आगे बढ़ना है, तो शुद्र और अतिशूद्र लोगो को हुक्मरान बनना जरूरी है। इन लोगो की हुकूमत होगी तो ये लोग अपने हिसाब से अपने कारोबार को चलाने लगेंगे, तो तब ही इनकी बात आगे बढ़ सकती है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

दावे के साथ कहता हूं कि होउ सकत जरूरत चंद ईमानदार लोगो की फक्त है!! - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार : इधर दलित राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की माँग बहुत तेजी से उठ रही है। इस बारे में आपकी क्या राय है ? साहब कांशी राम : देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी यदि दलित हो गए तो समाज का दबा-कुचला वर्ग न्याय की ओर किस तरफ देखेगा ? फिर तो देश का बंटाधार हो जायेगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार: क्या आप अपने बहुजन समाज को हिन्दू समाज की मुख्यधारा से अलग मानते हैं ? साहब कांशी राम: बहुजन समाज ही असली मुख्यधारा है, हिन्दू समाज नहीं। क्योंकि बहुजन समाज इस देश का बहुसंख्यक समाज है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

यह ठीक है कि हमारे पास धन-दौलत की कमी है, मगर हमारे पास मुक्कों की कमी नहीं है। अगर हम 85 प्रतिशत मुक्कों को इकठ्ठा करके दुश्मन की नाक पर मार दें तो दुश्मन गुण्डागर्दी अत्याचार के हथकण्डे अपनाने की कोशिश नहीं करेगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार: दलितों के हितों की रक्षा के लिए कहीं "दलितिस्तान" जैसा नारा देने की ज़रूरत तो नहीं पड़ेगी ? नहीं, बहुजन का नारा है भारत देश हमारा है, वैसे भी हम केवल दलितों की ही बात नहीं करते, हम तो बहुजन की बात करते हैं, मैं दलित शब्द का प्रयोग भी नहीं करता मैं बहुजन की बात करता हूँ। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

राजनीति सत्ता के लिए होती है और सत्ता बिना संघर्ष के नहीं मिलती। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

सिर्फ कोशिश करना ही ज़रूरी नहीं बल्कि उसमें कामयाबी भी मिलनी चाहिये। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हम लोग किसी के साथ बेइन्साफी करने या किसी का हक़ मारने के लिए नहीं बल्कि अपने साथ जो बेइन्साफी हो रही है और जो हमारा हक़ मारा जा रहा है, उसे संवैधानिक तरीके से प्राप्त करने के लिए इकठ्ठे हो रहे हैं। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आरक्षण विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिये आरक्षण समर्थक लहर बनानी होगी। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

धोखेबाज तो धोखा छिपाने की कोशिश करेंगे लेकिन धोखे के शिकार, धोखा खाये हुए लोग धोखों को याद रखेंगे। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आरक्षण कोई रोजी रोटी का मसला नही है, यह देश मे शासन प्रशासन में भागीदारी का मसला है। यदि लोकशाही में लोगो का बराबर हिस्सा नही होता है तो वह प्रजातंत्र सही ढंग से नही चल पाता है। मुल्क की बात आगे नही बढ़ती है, वह पिछड़ जाता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जब हम आम आदमी की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो उसी की भाषा का इस्तेमाल करना फायदेमंद होगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हमारे सामने सवाल यह नहीं कि हम क्या कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि हम क्यों नहीं कर सकते ? - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आज बहुत से नेताओं का यह रवैया बना गया है कि समाज को तो न बना सके खुद अपने को ही बना लें। इससे हमें नाराज़ नहीं होना चाहिए क्योंकि कुछ लोग जो स्वार्थ में लगे हैं उन्हें लगे ही रहना है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

बाबासाहब का मिशन बिना संघर्ष के पूरा न होगा, इसलिए साथियों हमें संघर्ष के लिए मैदान में उतरना होगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

चुनाव लड़ना इतना ज़रूरी नहीं है जितना की "जीतना" ज़रूरी है।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जिन लोगों ने गलतियाँ की उन्हें हमें बार-बार नहीं दोहराना है, बल्कि उन गलतियों से हमें कुछ सीख लेकर बाबा साहब के मिशन का दुबारा जीवित करके उसे मंज़िल तक पहुँचाना है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आज हमारे पास "Material" बहुत है, बस ज़रूरत है उससे बड़ी ईमारत बनाने की। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर हमें बाबासाहब अम्बेडकर की मूवमेंट(आंदोलन) को चलाना है तो हमें इसे "Dynamic"(समय के साथ बदलने वाला) बनाना होगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जब सभी लोग भारत के हर कोने से एक ही दिशा में सोचेंगे तो इस समाज(OBC, SC, ST) का भला एक-न-एक दिन ज़रूर होकर रहेगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जो लोग मिशन के लिए कुछ करने की भावना रखते हैं, उन्हें अपनी इस भावना को मिशन को देना होगा, केवल कहने से कुछ नहीं बनता है, उसके लिए तो त्याग की ज़रूरत पड़ती है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हमें अपनी रक्षा खुद करनी चाहिये, सिर्फ जान देकर ही नहीं जान लेकर भी। जब तक जान देते रहेंगे, दूसरा ख़ुशी से लेता रहेगा; लेकिन जब उसको खुद जान देनी पड़ेगी, तब वह कद्र करेगा दूसरों की जान की। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

वो कौम भटकती है अंधेरो में दर-बदर, जिसको भी कांशी राम से रहबर नही मिले.. - #KanshiRamEra

आन्दोलन में "साहित्य" का बहुत बड़ा योगदान होता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आत्मसम्मान का आन्दोलन बिना अपनी सहायता के नहीं चलाया जा सकता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अम्बेडकरवाद को दुबारा जीवित करना तभी किसी काम का है जब यह टिकाऊ रह सके। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आज ज़रूरत है दस हज़ार लीडरशिप बनाने की। ज़रूरत है उसे सामाजिक शिक्षा देने की, आवश्यकता है उसे मिशनरी भावना से कार्य करने की। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

ज़माने के हिसाब से हमें आगे बढ़ना है; मक्खी पर मक्खी मार कर हम आगे नहीं बढ़ सकते। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

बिना अपना मीडिया बनाये हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पायेंगे। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जो आंदोलन त्याग और बलिदान से बनाया गया हो, उसे आसानी से दबाया नहीं जा सकता। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मुझे ऐसा लगा कि अगर हमनें फुले-शाहू-अंबेडकर की विचारधारा को आगे नहीं बढ़ाया तो इस देश का दबा-कुचला इंसान, सदियों तक उठकर खड़ा नहीं हो सकेगा। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

बड़ी मुश्किल से तो हमें मौका मिलता है और इसलिये हमें कोई भी मौका गवाना नहीं चाहिये। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पुरे देश में मुझे ऐसे लगभग 100 महापुरुष नज़र आते हैं, जिन्होंने मानवतावादी समाज व्यवस्था का निर्माण करने के लिये संघर्ष किया। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार: हिन्दू धर्म के बारे में आपकी क्या राय है ? जिस धर्म में लोगों को छुआछूत करने की शिक्षा मिलती हो, उसे धर्म कहा जा सकता है क्या ? - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जब तक दबे कुचले लोगों में आपस में भाईचारा नहीं होगा, तब तक उन्हें अपने शोषण और दमन के लिये दूसरों को दोष देने का कोई हक़ नहीं है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

तमन्ना सच्ची हो तो रास्ते निकल आते हैं, तमन्ना झूठी हो तो बहाने निकल आते हैं । - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

भारत के लिये बहुत बड़ा खतरा बने हुये ये तीन "M"; Money, Media, Mafia. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार: क्या आप हिंसा का प्रचार कर रहे हैं? कांशी राम: मैं शक्ति का प्रचार कर रहा हूँ हिंसा को रोकने के लिये हमारे पास शक्ति होनी चाहिये। - #KanshiRamEra

मैं तो ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक ही काम कर रहा हूँ, अपने नालायक समाज को उसकी नालायकी दूर करके लायक बनाने में लगा हुआ हूँ। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

फुले-शाहू-अम्बेडकर आज हमारे बीच नहीं हैं, इसलिये अब मौक़े के हिसाब से हमें ही विचारधारा को बनाना होगा।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

कहते है की सप्रीम कोर्ट से ऊपर कोई कोर्ट नहीं है, मैं नहीं मानता हूँ; मैं समझता हूँ कि लोगों कि कचहरी इस देश में सबसे बड़ी कचहरी है।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हम ज़ुल्म करने वालों की नहीं, सहने वालों की निंदा करते हैं, हम ज़ुल्म नहीं सहेंगे और मुक़ाबला करके ज़ालिम का हौसला पस्त करेंगे।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जंग के मैदान में, चाहे वह बैलट का हो या बुलेट का, हर प्रकार से अपने आप को तैयार करना है।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जाती एक दो-धारी तलवार है, अगर आपने इसे अपने फायदे के लिये इस्तेमाल करना सिख लिया तो फिर यह इसके बनाने वालों को ही काटना शुरू कर देती है।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

पत्रकार : क्या आप एक आँख के लिये एक आँख की वकालत कर रहे है ? कांशी राम : मैं अपने मानने वालों से कहता हूँ, एक ईंट का जवाब दो पत्थरों से दो। - #KanshiRamEra

परिवर्तन लाने के लिये हमें बहुत कुछ करना है, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है की हम कितना कर पाते हैं।- मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मैं तो "Daliting"(मांगने वाले) के बहुत खिलाफ हूँ.. I am totally against "Daliting"(begging). - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हमें राज-पाट तो बैलट से लेना है लेकिन तैयारी बुलेट की भी रखनी है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मेरा लक्ष्य आरक्षण लेना नहीं, बल्कि आरक्षण देना है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जिनका स्वाभिमान मरा है वे ही ग़ुलाम है, इसलिये सिर्फ़ स्वाभिमानी लोग ही संघर्ष की परिभाषा समझते है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मैंने आंदोलन चलाना बाबासाहब आंबेडकर से सीखा और कैसे नहीं चलाना महाराष्ट्र के उनके मानने वालों से। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आंदोलन में सबसे अहम भूमिका लीडरशिप(नेतृत्व) की होती है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर आप किसी आंदोलन को कैसे नहीं चलाया जाना है नहीं जानते है, तो आप उसे कैसे चलाया जाना चाहिए नहीं जान पाएंगे। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जो विरोध करते हैं कि यह सही नहीं हैं, मौका मिलने पर उन्हें बताना होगा कि सही क्या है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

इतिहास बनाने वालों को इतिहास से सबक़ लेना बहुत ज़रूरी । - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर हमें इस देश का शासक बन कर बाबासाहब अम्बेडकर का सपना पूरा करना है तो हमें "दलित" (कमज़ोर) नहीं बल्कि बहुजन (बहुसंख्यक) बनना होगा. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

"दलितपन' एक प्रकार का भीकमँगा-पन बन गया है, जिस प्रकार कोई भिखारी कभी शासक नही बन सकता है, उसी प्रकार बिना अपना 'दलितपन' छोड़े कोई समाज शासक नही बन सकता। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

कांशी राम ने बहुजन का विचार भी फुले की ‘शुद्रादिअतिशूद्र’ (ओबीसी और एससी) की अवधारणा का विस्तार करके ही हासिल किया. कांशी राम के बहुजन का अर्थ देश की तमाम वंचित जातियां और अल्पसंख्यक हैं, जिनका आबादी में 85% का हिस्सा है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

भारतीय राजनीति के पहले शख्स हैं, जिन्होंने दलितों को शासक बनने का न सिर्फ सपना दिखाय़ा, बल्कि उसे साकार करने का रास्ता भी बताया. - #KanshiRamEra

कांशी राम ने पवित्रतावाद की जगह, अवसर को सिद्धांत में तब्दील कर दिया. बीएसपी की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय में देश का हर सोलहवां वोटर इस पार्टी के हाथी निशान पर बटन दबा रहा था.. - #KanshiRamEra

जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए आप को देश का हुक्मरान बनना होगा.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आसान नही है कांशी राम बनना।। कांशी राम बनने का मतलब है - नींव की ईट बनना।। कांशी राम का मतलब है - पुरी जिंदगी का समर्पण।। #KanshiRamEra

हमारे पूर्वजों ने क्या किया और हमारा भविष्य कैसा होना चाहिए? इन दो बातों को ध्यान में रखकर हमे अपने भविष्य के निर्माण के लिए सोचना चाहिए। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जिस काम को उत्तरभारत में गुरु रविदास जी ने किया उसी काम को फुले शाहू आम्बेडकर ने महाराष्ट्र में किया!! - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

"हमे हुकुमरान क्यों बनना है..? तब मै उनसे कहेता हु की, हुकुमरान समाज की बहेन-बेटियो की इज्जत नहीं लूटी जाती है.. हुकुमरान समाज पर कभी कोई अत्याचार नहीं कर सकता है.. हुकुमरान समाज के साथ के साथ कोई किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं कर सकता.." - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

“हुकुमरान बनो.. हुकुमरान बनो.." हुकुमरान बनोगे तब तुम लेने वाले नहीं देने वाले बनोगे.. तभी तुममे आत्म-सन्मान और स्वाभिमान की भावना पनपेगी.. तभी तुम्हारी समस्याओ का समाधान होगा.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मत सोचो की तुम्हारे पास धन नहीं है, इसलिए तुम हुकुमरान नहीं बन सकते.. तुम जरूर हुकुमरान बन सकते हो.. हुकुमरान बन्ने के लिए धन की नहीं वोट की ताकत चाहिए, जो तुम्हारे पास भारी मात्रा में पड़ी है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

"डीएम कोई राजा नही है बल्कि तुम्हारा कर्मचारी है, इसलिए उसके चपरासी को धक्का देकर डीएम से मिलो, क्योकि मालिक कभी भी कर्मचारी से मिलने के लिए हाथ जोडकर नही खड़ा होता है" - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मैं देश की व्यवस्था को बदलना चाहता हूँ और इस व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहता हूँ। इसी वजह से मैंने शादी नहीं की और नौकरी छोड़ कर घर ना जाने का फैंसला किया है!!" - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

"मैं दबे कुचले समाज को ज़िल्लत भरी जिंदगी से निकाल कर मान सम्मान वाली ज़िंदगी देकर उसको अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहता हूँ।" - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मेरा यह मानना है की जब तक हम जातीविहीन समाज की स्थापना करने में सफल नहीं हो जाते, तब तक जाती का उपयोग करना होगा अगर ब्राह्मण जाती का उपयोग अपने फायदे के लिए कर सकते है, तो मै उसका इस्तेमाल अपने समाज के हित में क्यों नहीं कर सकता ? - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जाती जो की अभी हमें अपने लिए एक समस्या नज़र आती है, अगर हम इसका ठीक तरह से उपयोग करना सिख जाए, तो यह हमारे लिए एक फयदेमंद चीज़ बन सकती है.. आज जो हमारी समस्या है, वो कल हमारे लिए अवसर भी बन सकती है, बशर्ते हम उसे ठीक तरह से इस्तेमाल करना सिख जाए.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मै मात्र इस उम्मीद पर खाली नही बैठा रहूँगा की जाती एक दिन अपने आप समाप्त हो जाएगी, बल्कि जब तक भारतीय समाज मे जाती जिंदा है, तब तक मै इसको अपने समाज के हीत मे इस्तेमाल करता रहूँगा.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर यह सभी जातिया आपस मे टूटी रहती है तो सभी अल्पजन रहती है, लेकिन अगर यह जातिया आपस मे भाईचारा पैदा करके संघटित हो जाती है, तो यह बहुजन बन जाती है.. इन लोगो की इस देश मे जनसंख्या 85% है और यह अपने आपमे देश की सबसे बड़ी शक्ति है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आप जाती का अपने हित मे इस्तेमाल करके राजनैतिक सत्ता की मास्टर चाबी को अपने हाथ मे ले सकते है और अपने समाज को आत्मसम्मान तथा तरक्की की ज़िंदगी मुहैया करा सकते है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

माँगने वाले हाथो को (अपनी हथेली को उपर से नीचे की तरफ पलटते हुए) माँगने वाले की बजाए देने वाला बनना होगा, यानी की उन्हे शासन-करता जमात बनना होगा.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर आप शाषक नही बन पाते है, तो हमारी समस्याओ का कोई हाल नही हो सकता है, लेकिन दलित अथवा भिकारी रहते हुए आप शाषक कैसे बन सकते है ? इसलिए आपको अपना “दलितपन” छोड़ना होगा, अगर आप शाषक बन जाते है तो आपकी सभी समस्याओ का हाल आप स्वयं कर सकते है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

आप शासक बनकर ही एक जातिविहिन समाज की स्थापना कर सकतेहै क्योकि शासक ही एक नये समाज का निर्माण कर सकता है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

चमचा एक देसी शब्द है, जिसका प्रयोग उस व्यक्ति के लिए होता है जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता बल्कि उससे कुछ करवाने के लिए कसी और की जरूरत होती है.. और वः कोई और व्यक्ति, उस चमचे का इस्तेमाल हमेशा अपने निजी फायदे और भलाई के लिए अथवा अपनी जाती की भलाई के लिए करता है, जो चमचे की जाती के लिए हमेशा अहितकारक होता है." - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

नकली कार्यकर्ता का इस्तेमाल, असली व् सच्चे नेतृत्व को कमजोर करने के लिए होता है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

“आपको जो नौकरी मिली है वह प्रतिनिधित्व के कारण मिली है और प्रतिनिधित्व पुरखों द्वारा चलाये आंदोलन का प्रोडक्ट है.. अर्थात समाज का आपके ऊपर ऋण है और इसलिए आपका सामाजिक उत्तरदायित्व है कि आप अपने समाज को अपना मनी, माइंड, टाइम शेअर करें और समाज के ऋण से उऋण हो.." - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

वोट का अधिकार हमे बिकने के लिए नही, बल्कि गुलामी से मुक्ति के लिए मिला है - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

ज्ञानी चमचे / अम्बेडकरवादी चमचे : ये वो लोग है जो बड़ी- बड़ी बाते करते है बाबासाहेब को पढ़ते और क्वोट भी करते है लेकिन आचरण उसके विपरीत करते है। -चमचा युग #KanshiRamEra

महामना फुले के कारण हम लोग पढ़ लिख गए, छत्रपति शाहूजी महाराज के कारण हमे नौकरियों में जाने का मौका मिला और बाबासाहब डॉ आम्बेडकर के कारण जिंदगी के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिला है.. इन तीनो महापुरुषों से प्रेरणा लेकर हम अपने में सुधार पैदा करेंगे और मिशन को आगे बढ़ाएंगे.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जिस समाज की शासन और प्रशासन में भागीदारी नही होती, वह समाज जिंदगी के हर पहलू में पिछड़ जाता है.. क्योंकि, शासन और प्रशासन हुकूमत के दो अंग है.. जिस समाज का हुकूमत में हिस्सा नही होता, वह समाज जिंदगी भर दूसरे पहलू में भी अपना हक हासिल नही कर शकता.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मान्यवर कांशी राम जी कहते थे कि मैं बाबा साहब की केवल एक किताब पढ़ कर पागल हो गया और घर बार छोड़कर बाबा साहेब के मिशन को पूरा करने में लग गया.. पता नहीं यह कैसे अंबेडकरवादी हैं जो बाबा साहेब की इतनी किताबें पढ़कर और उनके विचारों को सुनकर भी टस से मस नहीं होते!! #KanshiRamEra

अवसरवादी लोग है हम, और अवसर का फायदा उठाना अच्छे से जानते है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

महान बनने के लिए #ज्ञान के साथ साथ #नैतिकता और सतत बहुजन समाज के हक्क अधिकारों के लिए #संघर्षशील रहने की तत्परता होनी चाहिए। #KanshiRamEra

आरक्षण कोई रोजी रोटी का मसला नही है, यह देश मे शासन प्रशासन में भागीदारी का मसला है। यदि लोकशाही में लोगो का बराबर हिस्सा नही होता है तो वह प्रजातंत्र सही ढंग से नही चल पाता है। मुल्क की बात आगे नही बढ़ती है, वह पिछड़ जाता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

इतिहास का रुख बदलने वाले साहसी लोग कठिनाइयों से कभी भी नही घबराया करते, बल्कि उनका डट कर मुकाबला करकर लक्ष्य प्राप्त करते है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

चमचे का इस्तेमाल उसकी अपनी ही जाती के खिलाफ किया जाता है जबकि कार्यकर्ता का इस्तेमाल उसकी जाति की भलाई के लिए होता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

चमचे का इस्तेमाल सच्चे और खरे नेता को कमजोर करने के लिए होता है, जबकि कार्यकर्ता का इस्तेमाल सच्चे और खरे नेता की मदद के लिए और उसके हाथ मजबूत करने के लिए होता है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जब सच्चे और खरे योद्धा होते है, चमचो की मांग तभी होती है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अल्पसंख्यको ने बहुसंख्यको में से चमचे बनाकर अल्पमत शासन को मजबूत कर लिया है। इस तरह चमचा युग ने भारत मे लोकतंत्र को निरर्थक कर दिया है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

भारत मे हमारी मूल और वास्तविक समस्या सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक है। - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

बाबासाहब के बच्चो के बगेर इस देश का शासन नही चलने दूंगा.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मैंने सम्राट अशोक के भारत का सपना देखा है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

मै कोई नेता नहीं हु.. में थोडा ज्यादा काम करता हु इसलिए कार्यकर्ता मुझे बड़ा नेता समझते है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

85 पर 15 का शासन मंजूर नही, मंजूर नही.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

हमारा लक्ष्य आर्थिक मुक्ति और सामाजिक परिवर्तन का है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

कांशी राम के संकल्पों में था कि जब तक अंबेडकर का सपना पूरा नहीं कर लेता अब वो कभी घर नही आएंगे। पूरी जिन्दगी अपना घर नहीं खरीदेंगे। उनका संकल्प था कि गरीब दलितों का घर ही अब से उनका घर होगा।.. #KanshiRamEra

वो बुद्ध और आम्बेडकर को अपना शकते है, लेकिन वो कांशी राम को नही अपना शकते!! अब हमें समझना होगा कि सिर्फ आम्बेडकरवाद ही नही, बुद्धिज़्म भी कांशी राम साहब के बिना अधूरा है!! #मान्यवर_की_असली_इच्छा #चार_करोड़_की_होगी_दीक्षा #KanshiRamEra

1956 के बाद धराशायी हुई आम्बेडकरी विचारधारा की इमारत, कांशी राम नामक मजबूत ईंट की बुनियाद पर फिर से खड़ी हुई है.. बाबासाहब का दूसरा नाम, कांशी राम कांशी राम.. #KanshiRamEra

अगर आज हम बाबासाहब को जानते है और उनकी जयंती मना रहे है तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति को जाता है, और वो है बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशी राम.. #KanshiRamEra

कांशी राम नाम का आदमी पैदा न होता तो अम्बेडकर फिर से जिंदा न होते। क्योंकि अम्बेडकर के विचारों और उनकी विचारधारा दफन होने की कगार पर थी, उसे खतम करने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। लेकिन, कांशी राम ने अम्बेडकर को फिर से जिंदा कर दिया। आज जो हम जय भीम बोलते है वो मान्यवर साहब के कारण। #KanshiRamEra

जिस समाज की शासन और प्रशासन में भागीदारी नही होती, वह समाज जिंदगी के हर पहलू में पिछड़ जाता है.. क्योंकि, शासन और प्रशासन हुकूमत के दो अंग है.. जिस समाज का हुकूमत में हिस्सा नही होता, वह समाज जिंदगी भर दूसरे पहलू में भी अपना हक हासिल नही कर शकता.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

अगर अन्याय अत्याचार को रोकना है, तो हमे देश का हुक्मरान बनना होगा. - मान्यवर साहब कांशी राम #KanshiRamEra

साहब कांशीराम ने, ऐसे ऐसे लोगो को चुनाव लड़वा दिया, और वो जीत गए, जिन्होंने ने विधानसभा देखना तो दूर उसका नाम भी नही सुना था!! कभी जुते की मरम्मत करनेवाला, तो कभी मिट्टी के बर्तन बनानेवाला.. कभी चरवाहा तो कभी साइकिल के पंक्चर बनानेवाला!! #KanshiRamEra

बाबासाहब कहते हैं कि समानता के अभाव के साथ-साथ हमारे समाज में बंधुत्व का भी अभाव है.. वे पूछते हैं कि हजारों जातियों में बंटे लोगों में बंधुत्व का भाव कैसे पैदा हो सकता है? बाबा साहेब कहते हैं कि “जातियां दरअसल राष्ट्रविरोधी हैं” क्योंकि वे सामाजिक जीवन में भेद पैदा करती हैं..

ये कांशी की बिरासत है, इसे हम को बचाना है!
ये सपना भीम बाबा का, हमे घर घर पहुंचाना है!!
दलालो की दलाली, खत्म कर के ही दम लो तुम
मुझे मालूम है हम को, संसद तक भी जाना है!!
#KanshiRamEra

हमारा अंतिम उदेश्य भारत देश पर शासन करना है.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

में बहुजन समाज में नेतृत्व की सोच पैदा कर, सच्चे व् स्वाभिमानी लीडर बनाना चाहता हूँ.. - मा. कांशी राम #KanshiRamEra

सोच रहा अपनी हस्ती लोगो को दिखा दु,
लेकिन वक़्त की मांग औकात बना लू,
न फिर खड़ा होगा मनुवादी रास्ते मे,
खुद की पहचान कांशीराम बना लू।
#KanshiramEra

Upper castes ask us why don’t we include them in the party but I tell them that you are leading all the other parties. If you join our party you will prevent change. I am scared to take upper castes in the party. They try to maintain the status quo and always try to seize leadership. This will thwart the process of changing the system. #KanshiRamEra

Till the time there is caste I’ll use it for the benefit of my community. If you have a problem, end caste system. #KanshiRamEra

Where Brahminism is a success, no other ‘ism’ can succeed, we need fundamental, structural, social changes. #KanshiRamEra


For long we’ve been knocking at the doors of the system, asking for justice & getting nothing, it’s time to break down those doors. #KanshiRamEra

We will not stop until we unite the victims of the system and overthrow the spirit of inequality in our country. #KanshiRamEra

I place Gandhi in the category of Shankaracharya & Manu (of Manu Smriti) that he cleverly managed to keep 52% OBCs at the edge. #KanshiRamEra

A community that doesn’t have representation in the political power, that community is dead. #KanshiRamEra

We don’t want social justice, we want social transformation. Social justice depends on the person in the power. Suppose at one time, some good leader comes to power and people get social justice and are happy but when a bad leader comes to power it turns into injustice again. So, we want the whole social transformation. #KanshiRamEra

Till the time we won’t be successful in politics and not able to have power in our hands, the social and economic transformation is not possible. Political power is the key to success. #KanshiRamEra

To get the power, there is a need of mass movement, converting that mass movement into votes, then converting votes into seats, further converting the seats into [power at] states, and lastly converting the [power at] states into [power at] center. This is the mission and aims for us. #KanshiRamEra

To get the power, there is a need of mass movement, converting that mass movement into votes, then converting votes into seats, further converting the seats into states, and lastly converting the states into the center. This is the mission and aims for us’ - #KanshiRamEra

Reservation is not a question of employment it is an issue of representation in the Government Administration of the country. If in a democracy people don't have their equal share then that democracy can not run properly. The country cannot develop and it goes backward. - #KanshiRamEra

I am not interested in DALIT movement. I am interested in POWER movement. #KanshiRamEra