तब साहब कांशी राम कहते की, इसी तरह भारत की समाज व्यवस्था में भी ऐसा ही है.. जिसमे देश की 85% बहुजन जनता ही सही अर्थ में काम कर रही है इसलिए असली ताकत तो वो लोग है.. जबकि 15% जनता तो इस पैन के ढक्कन की माफक है जो सिर्फ दिखावे के लिए ही है.. अगर ढक्कन ना हो, फिर भी पैन का काम रुकेगा नही; कुछ भी काम किये बिना यह ढक्कन पुरे पैन पर अपना प्रभुत्व दिखा रही है.. भारत देश में भी इसी प्रकार, पुरे देश के संसाधनों पे 15% लोग अपना कब्ज़ा जमाकर बैठ गए है, और असल में जो मेहनतकश समाज है वह अपमानित हो रहा है..
साहब कांशी राम मानते थी की, इस खड़ी लाइन में रही पैन को टेढ़ा करने पर जो समानता स्थापित होती है जहां पैन की बोडी, लीड और ढक्कन हरेक को एक समान मान मिलता है, वेसी ही व्यवस्था भारतीय समाज में बनाना बहुजन समाज का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए.. भारत देश की अनुसुचित जाति (Schedule Catse)- जनजाति (Schedule Tribes), अन्य पिछड़ी जाति (Other Backward Classes) व् अल्पसंख्यक (Minorities) लोगो को मिलके जो बहुजन समाज बनता है, उस जनता को अपनी ताकत का कोई अनुमान नही है और यही वह कारन है जिसकी वजह से वह पछात बने रहे है.. अगर मानवीय सभ्यता को स्थापित करना है तो उसके लिए समस्त बहुजन समाज को प्रयत्न करना पड़ेगा.. एक दो लोगो के प्रयत्नों से कुछ खास प्राप्त नही होगा..
सन्दर्भ : मान्यवर (लेखक : विशाल सोनारा, अनुवादक : कुंदन मकवाना)
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