October 8, 2017

बहुजन मूवमेंट के सजग प्रहरी - बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम

आज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व तथागत गौतम बुद्ध द्वारा असमानता, जातिवाद और भेदभाव से युक्त सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ शुरू किया गया सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन चक्रवर्ती सम्राट अशोक से लेकर, संत रोहिदास, कबीर, वीर मेघमाया से होते हुए छत्रपति शाहूजी महाराज, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, भारतरत्न बाबासाहब डॉ आंबेडकर तक आ पहुंचा.. इन सभी महापुरुषों और माताओं ने अपने अपने समयकाल में सेंकडो कठिनाइयों का सामना करते हुए, अथाग संघर्ष, त्याग और बलिदान इस कारवा तक पहोंचाया था.. 

अपने समय में बाबासाहब डॉ आम्बेडकर ने मनुवादियों से अकेले संघर्ष कर सदियों से दबे - कुचले, पिछड़े समाज को लिखित संवैधानिक अधिकार दिलाये.. बाबासाहब बहुजन समाज को इस देश का शासक वर्ग बनते देखना चाहते थे, और वो भारत देश को बौद्ध्मय बनाना चाहते थे, लेकिन उनके जीते-जी यह स्वप्न पुरे नहो सके.. बाबासाहब का अपने अनुयायियो को अंतिम संदेश था की, ‘‘मैं बहुत मुश्किल से इस कारवां को इस स्थिति तक लाया हूं, जहां यह आज दिखाई दे रहा है। इस कारवां को आगे बढ़ने ही देना है, चाहे कितनी ही बाधाएं, रुकावटें या परेशानियां इसके रास्ते में क्यों न आएं। यदि मेरे लोग, मेरे सेनापति इस कारवां को आगे नहीं ले जा सकें, तो उन्हें इसे यहीं, इसी दशा में छोड़ देना चाहिए, पर किसी भी हालत में कारवां को पीछे मोड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए..’’ 

बाबासाहब के महा-परिनिर्वाण के बाद उनका ये कारवां कुछ रुक सा गया था.. इस मिशन को कोई मार्गदर्शक न मिला, जो इसे आगे बढ़ा शके और मंजिल तक ले जा सके.. लगभग 10-12 साल तक बहुजन समाज में स्वाभिमानी नेतृत्व उभर कर नहीं आया, अगर कोई उभर कर आया तो, वह कोंग्रेसियो की चौखट पर उनके तलवे चाटने चला गया.. अब बहुजनो के हको की बागडोर चमचे और भडवे लोगो के हाथो चली गई, ये चमचे अपना तो पेट भरते रहे लेकिन अछूतों को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया.. 

बाबासाहब डॉ अम्बेडकर की मूवमेंट को नेतृत्व प्रदान करने के लिए, २०वीं व् २१वीं सदी की राजनीती की धुरी बनकर आने वाले व्यक्तित्व का नाम था कांशीराम, जिनको बाबासाहब के अनुयायी "मान्यवर साहब" कहकर पुकारने लगे.. १५ मार्च १९३४ को पंजाब राज्य के रोपड़ जिले के पिरथिपुर बूंगा में मान्यवर साहब का जन्म हुआ था.. बचपन से ही साहब कांशीराम पढाई में बहोत होशियार थे.. 

कांशीरामजी DRDO में अधिकारी बनने तक बाबा साहब अम्बेडकर के मिशन से अनभिज्ञ थे, लेकिन जब उनको बाबा साहब के त्याग समर्पण और जीवन दर्शन का ज्ञान हुआ तो उन्हें महसूस हुआ कि मेरा समाज तो खूंटे से भूखा ही बंधा हुआ है और मैं अधिकारी बनकर मौज उड़ा रहा हूँ एवं उस पशु की भाँति अकेला ही पेट भरने में लगा हुआ हूँ, धिक्कार है मुझे अपने आप पर.. 

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इस घटना के बाद साहब कांसीराम जी ने उसी दिन अधिकारी की नौकरी छोड़ दी एवं घर परिवार सभी छोड़ कर निकल पड़े बहुजन समाज (obc/sc/st और इन्हीं में से धर्मपरिवर्तित minority) को पशु रूपी जीवन से मुक्ति दिलाने के लिए पूरे जीवन भर जातियों में बंटे हुए समाज को संगठित कर बहुजन समाज बनाने के कार्य में लगे रहे.. 






नौकरी छोड़ने के बाद मान्यवर साहब ने एक संकल्प लिया, जिसने बहुजन मूवमेंट को एक नया मोड़ दिया.. कांशीराम साहब ने संकल्प लिया की, 
१. मै आजीवन शादी नहीं करूँगा.. 
२. आज के बाद में अपने परिवार के सुख और दुःख में घर नहीं जाऊंगा और आज के बाद मेरे परिवार से मेरा किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है.. 
३. मरते डीएम तक एक भी रूपया और एक इंच भी जमीं मेरे नाम नहीं होगी, जो भी पैसा और जमीं होगी वह बहुजन समाज की धरोहर होगी.. अगर में इसका व्यक्तिगत उपयोग करूंगा तो मै अपने आपको समाज का गुनेहगार मानूंगा..
४. समाज जैसा खाने को देगा तथा जैसा पहनने को देगा, उसे सहर्ष स्वीकार करूँगा.. 
५. मै आजीवन नौकरी नहीं करूँगा..

अपने साथियों के साथ मिलकर मान्यवर साहब ने पहले बामसेफ (BAMCHEF - The All India Backward (SC, ST, OBC) And Minority Communities Employees Federation) की रचना की, जो भारत का सबसे बड़ा सरकारी कर्मचारियों का संगठन था.. उसके बाद DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) और अंत में BSP (बहुजन समाज पार्टी) की रचना की, जो आज भारत की तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी है.. 

साहब कांशीराम का कहना था की, बहुजन समाज आर्थिक रूप से कमजोर है, आज बहुजन समाज के पास बड़े साधन उपलब्ध नहीं है.. जो साधन उपलब्ध है उपयोग और प्रयोग करना सिख जाए तो हम अपने मिशन में कामयाब हो सकते है.. इस प्रकार साहब ने १९८१ में DS4 के माध्यम से कन्याकुमारी से कारगिल और कोहिमा से पोरबंदर तक अखिल भारतीय साईकिल मार्च शुरू किया जिसे सौ दिन की यात्रा के बाद दिल्ली समाप्त किया.. इस यात्रा के समापन में तिन लाख लोगो ने भाग लिया..

साहब के लिए हमेशा एक लाईन बोली जाती है की,

मै अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर
लोग साथ जुड़ते गए और कारवां बनता गया..


अपने कठिन त्याग, संघर्ष और अथाग परिश्रम से शून्य पर खड़ी बहुजन राजनीती को मान्यवर साहब ने सत्ता के उस सर्वोच्य मुकाम तक पहोंचाया जिसके लिए बाबासाहब डॉ आम्बेडकर कहा करते थे के, "Political Power is the Master Key.." सदियों से ६००० से भी ज्यादा जातियो में बंटे समाज को जोड़कर बहुजन समाज बनाया और देश के सबसे बड़े सूबे उतरप्रदेश में चार बार बहुजनो की सरकार बनाई.. 

मान्यवर साहब कहा करते थे की, "अगर हमें कभी न बिकने वाला नेता चाहिए तो, हमें कभी न बिकने वाला समाज बनाना पड़ेगा.. क्योंकि, लोगो को वैसा ही नेता मिलता है, जैसे लोग होते है.." 

बहुजन महापुरुषों के सदीओ से चले आ रहे व्यवस्था परिवर्तन के इस सामाजिक आन्दोलन के बारे में मान्यवर साहब कहा करते थे की, 
राजनीती चले न चले, सरकार बने न बने, 
लेकिन सामाजिक परिवर्तन की गति 
किसी भी कीमत पर नहीं रुकनी चाहिए..

अपनी लिखी किताब चमचायुग में साहब कांशीराम ने पूना करार के दुश्परिणामो को दर्शाते हुए, उससे पैदा हुए चमचो के कारण बहुजन मूवमेंट को होनेवाली हानि, चमचो के प्रकार, और चमचो से कैसे लड़ा जाये उसको बखूबी निरूपा है.. 

मान्यवर साहब कांशीराम की लिखी किताब, चमचायुग (The Chamcha Age by Sahab Kanshiram) जो की वर्तमान बहुजन राजनीती का बखूबी निरूपण करती है, उसे यहाँ से पढ़े..


जिन बहुजन महापुरुषों और माताओ के त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज हम इस मुकाम पर पहुंचे है, उनके हमारे ऊपर रहे ऋण को चुकाने के बारे में मान्यवर साहब कहते है की, "हम अपने समाज को अपना मनी, माइंड, टाइम शेयर करे और समाज के ऋण से उऋण हो.."


बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद रुक से गए उनके कारवां को साहब कांशीराम ने संभाला और उसे एक मुकाम तक पहुँचाया.. बहुजन मूवमेंट के सजग प्रहरी, बाबासाहब के सच्चे वारिस, बहुजन नायक मान्यवर साहब का ९ अक्तूबर २००६ को परिनिर्वाण हुआ.. 

सच ही कहते है लोग की, "बाबासाहब का दूसरा नाम, कांशीराम कांशीराम.."

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