November 2, 2017

मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन में साहब कांशीराम का भाषण..

जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए आपको देश का हुक्मरान बनना होगा :

मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर, मुख्या वक्त के रूप में मान्यवर कांशी राम जी ने जनता को सम्भोधित करते हुए कहा की सबसे पहले मै आपको जातिविहीन समाज के निर्माण की दिशा में इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करने के लिए हार्दिक बधाई देना चाहता हुँ.. मुझे दुःख है की पार्टी के कार्यो में अति व्यस्तता के कारण मै इस अवसर पर दिए जाने वाले अपने भाषण को लिख नहीं पाया, इसलिए मै सीधे ही आपसे मुखातिब हो रहा हुँ.

जाती का विनाश :

सन 1936 में लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल ने बाबासाहब अम्बेडकर से जाती विषय पर उनके द्वारा लिखे गए निबंध को मंडल के अधिवेशन में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया.. लेकिन उस अधिवेशन में बाबासाहब अम्बेडकर को वह निबंध प्रस्तुत नहीं करने दिया गया, वह निबंध बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया, जिसका शीर्षक था, “एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट” (Annihilation of Caste) “अर्थात जाती का विनाश”. 1962-63 में जब मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का मौका मिला, तो मुझे भी ऐसा महसूस हुआ की शायद जाती का विनाश संभव है, लेकिन बाद मै मैंने जाती व्यवस्था और जातीय आचरण का गहराई से अध्यन किया तो मेरी सोच में परिवर्तन आने लगा.. मैंने जाती का अध्यन महज किताबो से नहीं, बल्कि असल जिंदगी से किया है, जो लोग करोडो की संख्या में अपने-अपने गाँव छोड़कर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य बढे-बढे शहरो में आते है, वे अपने साथ और कुछ नहीं बल्कि अपनी जाती को लाते है.. वे अपने छोटे-छोटे झोपड़े छोटी-छोटी जमीने और मवेशी आदि सब कुछ पीछे गाँव में ही छोड़ आते है और केवल अपनी जाती को साथ लेकर ही शहर की गन्दी बस्तियों, नालो, रेल की पटरियों के किनारे बस जाते है.. अगर लोगो को अपनी जाती इतनी ही प्रिय है, तो हम जाती का विनाश कैसे कर सकते है? इसलिए मैंने जाती के विनाश की दिशा में सोचना बंद कर दिया..

आप लोगो ने जातिविहीन समाज की दिशा में बढ़ने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन किया है; मेरा उद्देश्य भी एक जाती-विहीन समाज की स्थापना करना है, लेकिन जाती कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे मात्र आपके चाहने भर से नष्ट किया जा सकता है.. जाती को नष्ट करना लगभग असंभव है, तो हमे क्या करना चाहिए ?

जाती के निर्माण के पीछे एक विशेष उद्देश्य है :

जाती का निर्माण बिना किसी उद्देश्य के नहीं किया गया है, इसके पीछे एक गहरा उद्देश्य और स्वार्थ छिपा हुआ है.. जब तक यह उद्देश्य अथवा स्वार्थ जिन्दा रहता है, जाती का विनाश नहीं किया जा सकता.. आप ब्राह्मणो अथवा सवर्ण जातियों को इस प्रकार जातीविहीन समाज की पुनरस्थापना के लिए सम्मेलन, विचार-गोष्ठी आदि आयोजित करते हुए नहीं देखेंगे.. ऐसा इसलिए है, क्योकि जाती का निर्माण इन्ही वर्गों द्वारा अपने नीच स्वार्थो की पूर्ति के लिए किया गया है, जाती के निर्माण के कारण केवल मुट्ठी भर सवर्ण जातियों को ही फायदा हुआ है और 85 प्रतिशत बहुजन समाज को पिछले हज़ारो वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी नुक्सान ही होता रहा है और वे अपमान और शोषण का शिकार बनते रहे है.. अगर जाती के निर्माण से सवर्ण वर्गों को ही फायदा होता रहा है, तो भला वे इसके विनाश के लिए पहल क्यों करेंगे ? इस तरह की कॉन्फ्रेंस(सम्मेलन) केवल हम लोग ही आयोजित कर सकते है, क्योकि हम जाती व्यवस्था के शिकार है.. इसका फायदा पाने वालो को जाती के विनाश में कोई रूचि नहीं हो सकती, बल्कि वे तो जाती व्यवस्था को और अधिक मजबूत देखना चाहते है, ताकि जाती के आधार पर उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भविष्य में भी जारी रहे..

इस सभाग्रह में जो लोग बैठे है, उनमे से अधिकांश शायद आज स्वयं परोक्ष रूप से जाती के शिकार न हो; लेकिन हम सभी का जन्म ऐसे लोगो अथवा समाज के बीच हुआ, जोकि जाती के शिकार है.. इसलिए हमे जाती के विनाश की दिशा में सोचने की जरुरत है..

लेकिन जब हम जाती के विनाश की बात करते है, तो इसके लिए भी सर्वप्रथम जाती के अस्तित्व को स्वीकारकरना होगा.. जाती की अनदेखी अथवा उपेक्षा करके हम जाती का विनाश नहीं कर सकते है..

हमारे अंदर जातीविहीन समाज का निर्माण करने की भावना हो सकती है, लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है की निकट भविष्य में जाती के विनाश की सम्भावना लगभग न के बराबर है.. तो जब तक जाती का पूरी तरह विनाश न हो जाये, तब तक हमे क्या करना चाहिए ? मेरा यह मानना है की जब तक हम जातीविहीन समाज की स्थापना करने में सफल नहीं हो जाते, तब तक जाती का उपयोग करना होगा अगर ब्राह्मण जाती का उपयोग अपने फायदे के लिए कर सकते है, तो मै उसका इस्तेमाल अपने समाज के हित में क्यों नहीं कर सकता ?

दोधारी तलवार :

जाती एक दोधारी तलवार के समान है, जो दोनों तरफ से काटती है.. अगर आप इसे इस तरफ से चलाए(अपने हाथ को दाई तरफ ले जाते हुए), तो यह इस तरफ काटती है; अगर आप इसे दूसरी दिशा मे ले जाए(हाथ को बाई तरफ लहराते हुए),तो यह दूसरी तरफ से काटती है.. तो मैने जाती को दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया की इसका फ़ायदा बहुजन समाज को मिले और उच्च वर्ग को इसका फ़ायदा पहुँचना बंद हो जाए.. बाबासाहब अंबेडकर ने जाती के आधार पर ही अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लोगो को उनके सामाजिक और राजनैतिक अधिकार दिलाए.. जाती का सहारा लेकर ही उन्होने सन 1931/32 राउंड टेबल कान्फरेन्स मे इन वर्गो के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करवाई.. लेकिन इस मुद्दे पर गाँधीजी के आमरण अनशन के कारण, इन वर्गो को पृथक निर्वाचन का अधिकार खोना पड़ा..

पृथक निर्वाचन :

कई लोग मुझसे अक्सर पूछते है की जिस तरह बाबासाहब अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन के लिए संघर्ष किया, उसी प्रकार का संघर्ष आप भी क्यो नही शुरू करते ? आज तक मैने अपना एक भी मिनट पृथक निर्वाचन के मामले मे खराब नही किया है, अगर पृथक निर्वाचन अधिकार बाबासाहब अंबेडकर द्वारा ब्रिटिश शासन के दौरान भी संभव नही हो सका, तो आज यह मेरे लिए किस प्रकार संभव हो सकता है, जब की देश मे मनुवादी समाज के लोगो का राज है.. आज यह एकदम असंभव है..

जाती के विशेषज्ञ :

बाबासाहब अंबेडकर ने अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जनजातियो के लोगो को जाती के हथियार का इस्तेमाल करने लायक बनाया था, इसी कारण वे ब्रिटिश हुकूमत से इन वर्गो के लिए कई सुविधाए जुटाने मे सफल रहे.. लेकिन अंग्रेज़ो के भारत छोड़ने के बाद केवल तीन लोग ही ऐसे रहे है, जिन्हे जाती के हथियार को इस्तेमाल करने मे महारत हासिल है, सबसे पहले व्यक्ति जवाहर लाल नेहरू थे, दूसरी श्रीमती इंदिरा गाँधी थी और तीसरा व्यक्ति कांशी राम है.. (तालिया)

नेहरू ने जाती के हथियार को इतनी निपुणता और कामयाबी के साथ इस्तेमाल किया की बाबासाहब अंबेडकर लगभग असहाय से हो गये.. नेहरू जाती के उपयोग एवम् मनुवादी सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की कला मे पारंगत थे, उनके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भी जाती का हथियार चलाने और ब्राह्माणवादी व्यवस्था को उसका लगातार फ़ायदा पहुँचाने के खेल मे माहिर थी.. लेकिन आज अगर दिल्ली के किसी भी कांग्रेसी से आप पूछे की क्या आपको जाती के इस्तेमाल से कोई फ़ायदा मिल रहा है ? तो वो यही कहेंगे, “नही हमें जाती का कोई लाभ नही मिल रहा है, हमें नही मालूम की किस तरह जाती से फ़ायदा उठाया जा सकता है, यह तो सिर्फ़ कांशीराम को मालूम है की किस तरह जाती का इस्तेमाल अपने हित मे किया जा सकता है”.. (हँसी)

अगर आप ब्राह्मणो को जाती से फ़ायदा उठाने से रोक सकते है, तो वो जाती की इस तलवार का हमारे खिलाफ इस्तेमाल करने से पहले कई बार सोचेंगे.. मैने जाती की दोधारी तलवार का इस्तेमाल अपने समाज के हित मे करना सिख लिया है, जाती जो की अभी हमें अपने लिए एक समस्या नज़र आती है, अगर हम इसका ठीक तरह से उपयोग करना सिख जाए, तो यह हमारे लिए एक फयदेमंद चीज़ बन सकती है.. आज जो हमारी समस्या है, वो कल हमारे लिए अवसर भी बन सकती है, बशर्ते हम उसे ठीक तरह से इस्तेमाल करना सिख जाए..

भारतीय शरणार्थी :

हमें इतिहास से सबक सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, हमें बाबासाहब अंबेडकर की मूवमेंट बढ़ाने का काम और अधिक तेज़ी से करना होगा.. 1932 मे बाबासाहब अंबेडकर ने दलितो के लोगो के लिए पृथक निर्वाचन की माँग की, दस वर्ष बाद 1942 मे उन्होने दलितो के लिए पृथक बस्तियो की माँग उठायी, क्योकि वे चाहते थे की दलित समुदाय के लोग हिंदूयो पर किसी तरह से निर्भर ना होकर, पूरी तरह स्वंतंत्रता के साथ जीवन-यापन करे.. लेकिन आज स्तिथि क्या है ? आज देश मे 45 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर खेती होती है, हमारे समाज के लोग मेहनत करके फसल पैदा करते है, लेकिन जिन खेतो पर वे काम करते है, उन ज़मीनो पर उनका मालिकाना हक़ नही होता है तथा वे मनुवादी ज़मींदारो के अन्याय और शोषण के शिकार होते रहते है.. इस स्तिथि से तंग आकर वे अपने गाँवो को छोड़कर रोज़गार और सम्मानपूर्वक ज़िंदगी की तलाश मे बढ़े-बढ़े शहरो मे आ जाते है, तथा गंदी बस्तियो, पुलो के नीचे, नालो तथा रेलपटरियो के किनारे और अन्य गंदे स्थानो पर जनवरो से भी ज़्यादा बुरी ज़िंदगी जीने को मजबूर है.. इस संकट-प्रवास के कारण लगभग दस करोड़ लोग अपने-अपने गाँवो, छोटी-छोटी ज़मीनो, घर-झोपड़ो तथा मवेशियो को पीछे छोड़कर शहरो मे आ गये है.. आज से 10 वर्ष पहले देश मे रहने वाली शहरी आबादी 5 करोड़ थी, आज यह संख्या 16 करोड़ है.. ये लोग गंदे स्लमो(झुग्गियों), सड़को आदि स्थलो पर रह रहे है, हम इन्हे भारतीय शरणार्थी कहते है.. इन लोगो की समस्याओ के बारे मे किसे सोचना चाहिए ? भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा शहरी निवास मंत्रालय को इन लोगो की समस्याओ के बारे मे हल ढूढ़ना चाहिए.. भारत की सरकार इन 10 करोड़ लोगो के अतिरिक्त, सभी के विकास के लिए कोई न कोई योजना बनाती है, लेकिन इन 10 करोड़ भारतीय शरणार्थियो की बुरी दशा पर कोई ध्यान नही देता.. हमारे सालाना बजट मे इन लोगो के लिए कोई पैसा नही रखा जाता, इतनी बढ़ी संख्या मे मौजूद लोगो के लिए कोई विशेष विभाग अथवा मंत्रालय नही है.. हमारे यहा 1947 मे पाकिस्तान से आए शरणार्थियो तथा अन्य स्थानो से आए शरणार्थियो के लिए तो अलग-अलग विभाग तथा मंत्रालय की व्यवस्था की गयी है तथा उन पर करोड़ो-अरबो रुपया खर्च किया जाता रहा है, लेकिन अपने ही देश मे शरणार्थी बने इन 10 करोड़ लोगो की ओर किसी भी सरकार का ध्यान नही जाता..

चुकी यह लोग अपनी ज़मीन, घर, मवेशी गाँवो मे ही छोड़कर केवल अपनी जाती को साथ लेकर शहरो की तरफ आए है, इससे मेरा काम बहुत आसान हो गया है.. ये दस करोड़ शरणार्थी भारत के मनुवादी शाशको के लिए एक समस्या है, लेकिन हमारे लिए ये एक बहुत बढ़ी ताक़त है जिस जाती के आधार पर इन करोड़ो लोगो को अपमानित किया गया है , पछाड़ा गया है, उसी जाती का इस्तेमाल हम इन लोगो को अन्याय-शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कर सकते है.. आगामी नवम्बर मे दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश मे होने वाले विधान सभा चुनाव के बाद हमने इन लोगो की मुक्ति के लिए “भारतीय शरणार्थी आंदोलन” चलाने की योजना बनाई है.. मै मात्र इस उम्मीद पर खाली नही बैठा रहूँगा की जाती एक दिन अपने आप समाप्त हो जाएगी, बल्कि जब तक भारतीय समाज मे जाती जिंदा है, तब तक मै इसको अपने समाज के हीत मे इस्तेमाल करता रहूँगा..

मनुवादी प्रपंच :

आईये अब मै जाती का इस्तेमाल अपने हित मे करते समय होने वाले अनुभवो के बारे मे आपको बताता हुँ, की आज मै जाती के शिकार लोगो को संघठित करके जाती को अपने हित मे इस्तेमाल करने के लिए तैयार कर रहा हुँ.. मै उन्हे बाबासाहब अंबेडकर के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा हुँ.. मै अपने समाज को अर्थात जाती का शिकार हुए लोगो को जाती की इस दोधारी तलवार को अपने हित मे इस्तेमाल करने लायक बना रहा हुँ.. आज हरेक मनुवादी पार्टी और नेता मेरे द्वारा जाती का इस्तेमाल किए जाने के कारण घबराए हुए है, इस “कांशी राम चमत्कार” को रोकने के लिए सभी मनुवादी दल कोशिश कर रहे है, पहले राजीव गाँधी ने कोशिश की, फिर वी पी सिंह, नरसिम्हा राव आदि ने कोशिश की, आज वही कोशिश भारतीय जनता पार्टी कर रही है, लेकिन ये सभी लोग अपना खेल खेल रहे है और मै अपना खेल खेल रहा हुँ.. (तालिया)

बहुजन समाज पार्टी को पूरे देश मे मान्यता प्राप्त करनी है : 

जाती से फ़ायदा उठाने वाले मनुवादी लोगो ने इसे बनाया, ताकि इसकी सहायता से वे दूसरो पर निरंतर राज कर सके.. उन्ही लोगो ने इसे बचाए रखा, ताकि उनके एकछत्र राज पर आँच न आने पाए.. किसी व्यवस्था का निर्माण, उसको बनाए रखने के बनिस्बत अधिक कठिन होता है, एक बार यदि आप कोई व्यवस्था बना दे तो उसको चलाना तथा कायम रखना अधिक मुश्किल काम नही है..

अगर आप जाती को नष्ट करना चाहते है, तो आपको मनुवादी समाज को इसका फ़ायदा लेने से रोकना होगा.. जब तक फ़ायदा उठाने वालो को जाती का इस्तेमाल करते रहने की छूट मिलती रहेगी, तब तक जाती के शिकार लोग इससे पीड़ित रहेंगे, इसलिए आपको जाती को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना सीखना होगा और मनुवादी व्यवस्था के अधिकारो को इसका लाभ लेने से रोकना होगा.. आपको जाती को अनदेखा नही करना चाहिए, बल्कि इसके अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए जाती का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करने के कारण ही बहुजन समाज पार्टी आज देश की चौथी सबसे बढ़ी पार्टी बन गयी है.. देश मे कुल 70 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल और हम 66 अन्य दलो से आगे है, आज केवल कॉंग्रेस, BJP, और CPI(M) ही हमसे आगे है.. 1984 मे जब हमने पार्टी बनाई थी, उस समय दूसरी पार्टिया हमसे कहती थी की BSP केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहेगी, लेकिन आज BSP केवल उत्तर प्रदेश मे ही नही, बल्कि म्ध्य प्रदेश, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा हरियाणा मे भी मान्यता प्राप्त पार्टी बन चुकी है.. यह देखकर सभी सवर्ण जातिया(मनुवादी समाज)बहुत दुखी है, और मै भी खुश नही हुँ, वे लोग इसलिए दुखी है क्योकि BSP अन्य राज्यो मे भी मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है और मै इसलिए दुखी हुँ, क्योकि BSP देश के सभी प्रदेशो मे मान्यता प्राप्त पार्टी नही बन पायी है.. मै चाहता हुँ की BSP देश के सभी राज्यो मे, यहा तक की महाराष्ट्र मे भी एक मान्यता प्राप्त पार्टी बन सके..

स्वतंत्र भारत मे बहुजन समाज निर्भर क्यो ?

वर्ष 1947 मे भारत के मनुवादी हुक्मरानो ने स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती मनाने का फ़ैसला किया, उनके लिए इस अवसर पर रंगरेलिया मनाने के कई कारण हो सकते थे.. लेकिन देश का 85 फीसदी बहुजन समाज को आज़ादी के 50 वर्ष बाद भी आज तक दूसरो पर निर्भर है, उसके पास इस तरह की रंगरेलिया मनाने का कोई कारण नही है.. आज भी हमारा समाज दूसरो के खेतो पर मज़दूरी करता है, उनके अपने खेत नही है 10 करोड़ लोग अपने-अपने गावो को छोड़कर शहरो मे इसलिए आए है क्योकि वह दूसरो पर निर्भर है.. जब हमने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की, उस समय दलित, पिछड़े वर्गो के लोग दूसरो पर निर्भर थे, टिकट लेने के लिए वे मनुवादी दलों के आगे पीछे भागा करते थे.. राजनैतिक पार्टिया कुछ और नही बल्कि टिकट छापने वाली मशीने है तो हमने सोचा की क्यो न हम भी अपनी एक ऐसी मशीन बनाए, इसलिए 14, अप्रैल,1984 को हमने BSP बनाई..

आज केवल प्लेटफार्म टिकट नही :

मार्च 1985 मे उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावो मे हमने 237 उम्मीदवारो को टिकट दिए, मैने अपने उम्मीदवारो को बोला की हमारे टिकट केवल प्लेटफार्म टिकट है और आप इन टिकटो की सहायता से लखनऊ नही पहुँच सकते है.. उस समय हमारे टिकट पाने के लिए कोई मारा-मारी नही होती थी, लेकिन आज हमारे टिकट की बेहद माँग है, आज उत्तर प्रदेश मे BSP के प्रत्येक उम्मीदवार को एक लाख से अधिक वोट पढ़ते है.. आज हमारे टिकट मात्र प्लेटफार्म टिकट नही रह गये है , बल्कि हमारा टिकट लेकर आप लखनऊ ही नही बल्कि दिल्ली मे भी पहुँच सकते है.. आज हमारे टिकट के लिए इतनी माँग आख़िर किस कारण से है ?

कॉंग्रेस ने BSP को लोकप्रिय बनाया :

1984 के (लोक सभा चुनावो के आधार पर) चुनाव मे कॉंग्रेस ने उत्तर प्रदेश मे 425 मे से 410 सीटे जीती थी.. 1985 के विधान सभा चुनावो मे उन्हे केवल 265 सीटे ही मिल सकी, BSP की उपस्थिति के कारण 145 सीटो से हाथ धोना पड़ा.. इस हानि से निराश और कुंठित होकर उन्होने BSP को चमारो की पार्टी कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया, कॉंग्रेस के इस प्रचार से हमें निश्चित रूप से फ़ायदा हुआ.. हमारी पार्टी उत्तर प्रदेश मे चमारो मे बेहद लोकप्रिय हो गयी 1985 के चुनावो मे हमें केवल 2% वोट मिले थे, 1989 के चुनावो मे हमारा वोट प्रतिशत बढ़कर 9%, 1991 मे 11%, 1993 मे 20.6% हो गया 1996 के लोक सभा चुनावो मे उत्तर प्रदेश मे हमें 29% वोट मिले.. हमने यह सब जाती को अनदेखा करके हासिल नही किया, बल्कि हमने इसके अस्तित्व को स्वीकार करके और इसको अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करके ही उत्तर प्रदेश मे यह सफलता हासिल की.. आज कॉंग्रेस जाती का फ़ायदा उठाने मे असमर्थ है और हमने जाती का इस्तेमाल करके अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ाया है और आगे भी बढ़ाएँगे..

महाराष्ट्र का सबक :

आज यहा महाराष्ट्र से आए हुए कई लोग मौजूद है, मैने इन लोगो से काफ़ी कुछ सीखा है.. अंबेडकर मूवमेंट चलाने के लिए आधा सबक मैने बाबा साहब अंबेडकर से सीखा है और बाकी का आधा सबक मैने महाराष्ट्र के महारो से सीखा.. बाबा साहब से मैने यह सीखा की मूवमेंट किस प्रकार चलाया जाना चाहिए, महाराष्ट्र के महारो से मैने यह सीखा की मूवमेंट को किस तरह नही चलाना चाहिए.. किसी मूवमेंट को चलाने के लिए केवल यह जानना ज़रूरी नही है , की उसे किस तरह चलाया जाए, बल्कि यह जानना भी ज़रूरी है , की उसे किस तरह नही चलाया जानाचाहिए.. अगर आपको यह मालूम नही की कोई मूवमेंट किस तरह नही चलाया जाए तो आप यह भी नहीजान पायेंगे की उसे किस तरह चलाया जाना चाहिए..

महारो ने जाती के हथियार को ठीक तरह से इस्तेमाल नही किया, उनका कहना था की अब वे बुद्धिस्ट है और अब वे महार नही रहे, लेकिन इसके साथ-साथ वे महार की हैसियत से रिजर्वेशन के लिए लढ़ते रहे.. उन्होने महार से बौद्ध बने लोगो के लिए भी आरक्षण की माँग की, आप लोगो ने जाती की बदबू को हिंदू धर्म से लेकर बौद्ध धर्म मे भी भर दिया.. जाती हिंदू धर्म की वह सड़ी हुई दुर्गंध है, जिसने पूरे विश्व को प्रदूषित कर दिया है..

आरक्षण के 100 वर्ष : 

26 जुलाई, 1902 को कोल्हापुर के छत्रपति शाहू जी महाराज द्वारा दलितो को शिक्षा संस्थानो और सरकारी नौकरियो मे आरक्षण की सुविधा दी गयी... 26 जुलाई, 2002 को हम आरक्षण के 100 वर्ष पूरे कर लेंगे, आरक्षण लेने के लिए 100 वर्ष काफ़ी है, अब मै यह अपनी ज़िम्मेदारी समझता हुँ, की अपने लोगो को आरक्षण लेने के लिए नही, बल्कि दूसरो को आरक्षण देने के लिए तैयार करू.. हम दूसरो को आरक्षण देने लायक कैसे बन सकते है, यह बात कहना और समझना तो आसान है, लेकिन अमल ले माना मुश्किल काम है..

आरक्षण देने लायक कौन होता है ? केवल हुक्मराण ही दूसरो को आरक्षण दे सकते है यहा तक की खुद अपने समाज को लाभ पहुँचाने और उनके हितो की रक्षा के लिए आपको शाषक-जमात बनना होगा.. इसलिए हमें इस देश का शाषक बनने के लिए अपने आप को तैयार करना चाहिए, हमें शाषक बनना है, केवल यही एक उपाय है.. लेकिन प्रश्न यह है की जाती के शिकार लोग शाषक कैसे बन सकते है ?

एम.पी / एम.एल.ए बनना ज़रूरी है अथवा अंबेडकर मूवमेंट चलाना ?

मैने बाबा साहब अंबेडकर को नही देखा जब वे जिंदा थे और न ही उनको कभी सुना था.. मैने अंबेडकरवाद को महाराष्ट्र के नेताओ से ही सीखा है, श्री बाजीराव कंबले जो आज यहा नीली टोपी पहने मेरे सामने बैठे है, उनमे से एक है, जिन्होने मुझे अंबेडकरवाद की शिक्षा दी.. जब महाराष्ट्र के अंबेडकरवादी नेता टिकट के लिए कांग्रेस के पिछलग्गू बनने लगे, तो मेरी उनसे कई बार झड़प हुई.. उनका कहना था की अगर वो अम्बेडकरवाद से जुड़े रहेंगे, तो कभी MLA/MP नहीं बन सकेंगे.. मैंने उनसे पूछा की ज़्यादा जरुरी क्या है, MLA/MP बनना या बाबा साहबअंबेडकर का मूवमेंट चलाना ? मेरे विचार मे बाबा साहब अंबेडकर का मूवमेंट चलाना ज़्यादा ज़रूरी था, इसलिए मैने मूवमेंट चलाने का फ़ैसला किया.. यह ख्याल मेरे मन मे भी आया था की मूवमेंट को अच्छी तरह से चलाने के लिए, हमें भी MLA/MP बनाने चाहिए; लेकिन ज़रूरी सवाल ये था की कौन सी पार्टी हमें ऐसे MLA/MP देगी जो हमारी (बाबा साहब अंबेडकर) मूवमेंट भी चला सके ? MLA/MP केवल हमारी अपनी पार्टी के ज़रिए ही बन सकते है, इसलिए मै बंबई छोड़कर लखनऊ आ गया..

बाबासाहब का समर्थन किस किस जाती ने किया : 

मैने भारतीय समाज मे जाती की सच्चाई के विषय मे गहन सोच-विचार किया, मैने उन जातियो के बारे मे अध्यन किया, जिन्होने बाबा साहब अंबेडकर का समर्थन किया था.. उनके मूवमेंट को महाराष्ट्र मे महारो ने, परिहा लोगो ने तमिल नाडु मे, माला जाती ने आंध्र प्रदेश मे , जाटवो ने उत्तर प्रदेश मे और चण्डालो ने बंगाल मे समर्थन किया, लेकिन जब बाबा साहब 1952 और 1954 के चुनावो मे खुद ही जीत नही सके तो उनके समर्थको ने सोचा, जब बाबा साहब खुद ही नही जीत पाते है तो हम किस प्रकार चुनाव जीत कर MLA/MP बन सकते है..

उसके बाद मैने बाबा साहब की चुनावी जीत के बारे मे भी विचार किया, सन 1946 मे बाबा साहब बंगाल की जेसोर और खुलना सीट से चुनाव जीते थे, यह कैसे हो पाया ? इन दोनो क्षेत्रो मे चंडाल लोगो की संख्या 52% थी, उन्होने सोचा की संविधान सभा मे किसी और को भेजने की बजाय बाबा साहब को भेजना चाहिए.. बाबा साहब इसलिए जीत पाए क्योकि चण्डालो के पास अधिक वोट थे; महार, परिहा, जॉट्व , माला आदि जातिया चण्डालो की तरह बहुत बड़ी संख्या मे नही थी, इसलिए वे सफल नही हो सके, इसी कारण उन्होने अंबेडकर मूवमेंट को छोड़कर जाना शुरू कर दिया..

बाबा साहब अंबेडकर का संघर्ष जाती की शिकार हुई सभी जातियो के लिए था, लेकिन क्या महार, परिहा, माला आदि जातिया ही जाती का शिकार थी ? क्या मनुवादी सामाजिक व्यवस्था का शिकार केवल यही जातिया थी ? नही केवल यही जातिया शिकार नही है..

जाती का शिकार 6000 जातिया है : 

मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 1500 जातिया-अनुसूचित जाती, 1000 जातिया-अनुसूचित जनजाति और 3743 जातिया-अन्य पिछड़े वर्ग के अंतर्गत आती है.. इन जातियो की कुल संख्या 6000 से अधिक है, ये सभी ऐसी जातिया है जोकि मनुवादी सामाजिक व्यवस्था का शिकार रही है, कोई कम शिकार हुआ है तो कोई ज़्यादा लेकिन शिकार सभी 6000 जातिया हुई है.. तो क्या विषमतावादी-शोषनकारी जाती व्यवस्था का मुकाबला करने के लिए इन सभी जातियो को संघटित नही होना चाहिए ? इनमे से कुछ जातियो की संख्या बल अधिक है तो कुछ जातियो की संख्या बल कम है.. अगर यह सभी जातिया आपस मे टूटी रहती है तो सभी अल्पजन रहती है, लेकिन अगर यह जातिया आपस मे भाईचारा पैदा करके संघटित हो जाती है, तो यह बहुजन बन जाती है.. इन लोगो की इस देश मे जनसंख्या 85% है और यह अपने आपमे देश की सबसे बड़ी शक्ति है..

बहुजन समाज मे आपसी भाईचारा पैदा होना ज़रूरी है :

जिस समय बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की गयी थी (14,अप्रैल,1994), उस समय देश मे बहुजन समाज का निर्माण नही हुआ था.. बहुजन समाज पार्टी तभी सफल हो सकती है, जबकि बहुजन समाज बनाया जाय.. इसलिए हमने जाती का शिकार 6000 जातियो मे आपसी भाईचारा पैदा करके बहुजन समाज बनाने का काम शुरू किया.. पिछले 10 वर्षो मे उसमे से भी विशेषकर पिछले 5 वर्षो मे हम केवल 600 जातियो को ही जोड़ पाये है, जोकि जातियो की कुल संख्या का केवल 10% है.. केवल 600 जातियो को साथ जोड़ने भर से हमारी पार्टी आज देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है.. अगर हम उनमे 400 जातिया और जोड़ ले तो यह संख्या 1000 तक पहुँच जाएगी और अगर हम ऐसा कर पाते है तो बहुजन समाज पार्टी इस देश की पहले नंबर की पार्टी होगी.. मै अधिक बोलना पसंद नही करता हालाकी मुझे बार-बार बोलना पड़ता है! मै स्वय बोलना नही चाहता, बल्कि मै चाहता हुँ, की मेरे द्वारा किए जाने वाला काम तथा उसके द्वारा सामने आने वाले नतीजे खुद बोले! मै अपने उन तमाम साथियो से कहना चाहताहुँ, जो कई मुद्दो पर मुझसे सहमत नही है, की मै शायद ग़लत हो सकता हुँ, लेकिन आप मेरे द्वारा किए गयेकाम के नतीजो का आकलन करे, उनके बारे मे आप क्या कहते है?

इतनी सारी जातियो को जोड़कर एक मंच पर ला पाना एक बेहद मुश्किल काम था, इसलिए जोड़ने का प्रयास करने वाले की बहुत आलोचना भी की गयी और उसे ऐसा संभव काम न करने की सलाह भी दी गयी.. लेकिन जोड़ने वाले ने अपना काम शुरू किया तो कोई भी ताक़त उसे ऐसा करने से रोक नही पायी.. उसने जोड़ने का काम बहुत खूबी के साथ किया, अगर आज तक वो 600 जातियो को जोड़ चुका है, तो भविष्य मे और जातियो को क्यो नही जोड़ सकता है ? अवश्य जोड़ सकता है, जाती का शिकार हुई सभी जातियो को एक साथ जोड़कर हम राजनैतिक सत्ता पर कब्जा कर सकते है और देश के शासक बन सकते है..

मास्टर चाबी पर कब्जा ज़रूरी : 

बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था , “राजनैतिक सत्ता वह मास्टर चाबी है, जिससे आप अपनी तरक्की और सम्मान के सभी दरवाजे खोल सकते है”, महाराष्ट्र के हमारे साथी पिछले लगभग 25 वर्षो से महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी का नाम बदल कर बाबा साहब अंबेडकर यूनिवर्सिटी रखने के लिए आंदोलन कर रहे है.. आप लोग इसमे सफल नही हो पाए क्योकि आप महाराष्ट्र मे शाषक नही बन पाये है, आपके पास राजनीति की मास्टर चाबी नही है.. सन् 1989 मे श्री राजीव गाँधी लूखनऊ आये और उन्होने वहा “अंबेडकर यूनिवर्सिटी” की नीव रखी, महाराष्ट्र मे जहा एक ओर कॉंग्रेस पार्टी यूनिवर्सिटी का नाम बदलने से साफ मनाकर रही थी , दूसरी ओर वही कॉंग्रेस पार्टी लूखनऊ मे अंबेडकर यूनिवर्सिटी की नीव रख रही थी , ऐसा क्यो हुआ ? उत्तर प्रदेश के लोगो ने तो कभी भी अंबेडकर यूनिवर्सिटी की माँग नही उठाई थी, यह माँग तो महाराष्ट्र के लोगो की थी, यह उत्तर प्रदेश मे क्यो पूरी की जा रही थी ? कॉंग्रेस यु.पी मे अंबेडकर यूनिवर्सिटी बनाने को इतनी उत्सुक क्यो थी ? ऐसा इसलिए हुआ क्योकि उत्तर प्रदेश के लोग राजनैतिक मास्टर चाबी की तरफ अपना हाथ बढ़ा रहे थे, इसलिए शाषक वर्ग उस मास्टर चाबी को यूनिवर्सिटी की आड़ मे छिपाना चाह रहे थे.. (हँसी)

उत्तर प्रदेश मे सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करके हमने एक नही , कई यूनिवर्सिटीया बनाई, जिसके लिए महाराष्ट्र के लोग कई वर्षो से आंदोलन कर रहे थे.. सन् 1994 मे हमने कानपुर मे शाहू महाराज यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखी, 1996 मे हमने महात्मा फूले यूनिवर्सिटी और डा बाबा साहब अंबेडकर यूनिवर्सिटी बनाई, इसके अतिरिक्त दिल्ली के निकट नोएडा मे गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी के लिए 200 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण भी किया.. इसके अतिरिक्त हमने अपने महापुरुषो को सम्मान देने तथा विकास के काम को और तेज करने के लिए यू.पी. मे 17 नये जिलो की भी स्थापना की.. इससे सॉफ जाहिर होता है की आप जाती का अपने हित मे इस्तेमाल करके राजनैतिक सत्ता की मास्टर चाबी को अपने हाथ मे ले सकते है और अपने समाज को आत्मसम्मान तथा तरक्की की ज़िंदगी मुहैया करा सकते है..

हमारे समाज को अपना दलितपन छोड़ना होगा : 

मैने अभी तक जाती के बारे मे विस्तार से बोला है, अब मै दलितो के बारे मे भी कुछ बोलना चाहता हुँ.. मै भारत से बाहर कम ही जाता हुँ, मेरी पार्टी के लोग तथा अन्य लोग यह सोच रहे थे की शायद मै इस सम्मेलन मे शामिल होने के लिए न जा पायु क्योकि मै भारत मे दलितो की दुर्दशा देख कर बहुत अधिक दुखी हुँ.. “दलितपन” दलितो की सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गया है, “दलितपन” एक प्रकार का भीकमँगा पन बन गया है, जिस प्रकार कोईभिकारी कभी शासक नही बन सकता है, उसी प्रकार बिना अपना दलितपन छोड़े कोई समाज शासक नहीबन सकता.. माँगने वाले हाथो को (अपनी हथेली को उपर से नीचे की तरफ पलटते हुए) माँगने वाले की बजाए देने वाला बनना होगा, यानी की उन्हे शासन-करता जमात बनना होगा.. अगर आप शाषक नही बन पाते है, तो हमारी समस्याओ का कोई हाल नही हो सकता है, लेकिन दलित अथवा भिकारी रहते हुए आप शाषक कैसे बन सकते है ? इसलिए आपको अपना “दलितपन” छोड़ना होगा, अगर आप शाषक बन जाते है तो आपकी सभी समस्याओ का हाल आप स्वयं कर सकते है..



“मनुवाद” अन्य सभी वादो को नष्ट कर देता है:

हमारे बुद्धिजीवी अक्सर ऐसा सोचते है, की हमारी सभी समस्याओ का हल मार्क्सवाद, समाजवाद, साम्यवाद मे है, मेरा मानना है की जिस देश मे मनुवाद मौजूद है, उस देश मे कोई अन्य वाद सफल नही हो सकता, क्योकि कोई भी अन्य “वाद” जाती की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नही है.. इसलिए यह बुद्धिजीवियो का फ़र्ज़ है और मेरा भी फ़र्ज़ है , की हम मनुवाद और जाती के अस्तित्व को ध्यान मे रखते हुए अपने लिए स्वयं किसी “वाद” की रचना करे.. मनुवादी समाज के लोग अक्सर बरोजगारी की बात करते है, उन्हे लगभग एक करोड़ बरोजगार उच्च वर्ग के सवर्णो के रोज़गार को लेकर बहुत चिंता रहती है.. लेकिन यह लोग उन 10 करोड़ भारतीय शरणार्थियो के रोज़गार तथा अन्य तकलीफो को लेकर कोई चिंता नही दिखाते जो की अनपढ़ और अकुशल है..

इन 10 करोड़ लोगो के बारे मे कोई भी पार्टी चिंतित दिखाई नही देती, लेकिन ये 10 करोड़ लोग हमारे समाज के लोग है, इसलिए केवल हमारी पार्टी ही उनके बारे मे सोच सकती है, केवल हमारी पार्टी ही उनकी समस्यायो को हल कर सकती है.. हम इस देश के शाषक बनकर बहुजन समाज की सभी समस्यायो का हल आसानी से कर सकते है..

600 जातियो को आपस मे जोड़कर, उनमे भाईचारा पैदा करके आज हम देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन चुके है... 1000 जातियो को आपस मे जोड़कर हम इस देश के शाषक बन सकते है, मेरा पक्का विश्वास है की अगले तीन वर्षो मे इस देश की शासन-व्यवस्था की बागडोर हमारे हाथो मे होगी और हम इस देश के हुक्मरान होंगे..

कांशीराम चमत्कार :

मै अपने विचारो को दूसरो पर ज़बरदस्ती थोपने का पक्षधर नही हुँ, मै आपको सिर्फ़ अनुभव बतारहा हुँ, इससे फ़ायदा उठाना या न उठाना आपके अपने उपर निर्भर करता है..

आप शाषक बनकर एक जातिविहिन समाज की स्थापना करने मे सक्षम हो सकते है, आपकी सभी समस्याओ का यही हल मै आपको बता सकता हुँ.. जाती का फ़ायदा उठाने वाले, आख़िर जाती को नष्ट करना क्यो चाहेंगे ? जाती के शिकार हुए लोगो को ही यह काम स्वयं करना होगा, शाषक ही जाती व्यवस्था को समाप्त कर सकने मे सक्षम हो सकते है.. आप यह कह सकते है की मै असंभव सी बात कह रहा हुँ, लेकिन अपनी जिंदगी मे मैने हमेशा ही असंभव सेलगने वाले कामो मे हाथ डाला है और साथ–ही–साथ उनमे सफलता भी हासिल की है.. इसी का नाम “कांशी राम चमत्कार” है, आज “कांशी राम चमत्कार” एक राष्ट्रीय स्वरूप अख्तियार करता जा रहा है..

इसलिए मेरा आपको यही संदेश है, की आप सही सोच रखते हुए एक जातिविहिन समाज के निर्माण की दिशा मे आगे बढ़े.. अंत मे मै आपसे यही कहूँगा की आप शासक बनकर ही एक जातिविहिन समाज की स्थापना कर सकतेहै क्योकि शासक ही एक नये समाज का निर्माण कर सकता है..


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