April 11, 2019

सामाजिक क्रांति के महानायक - महामना ज्योतिराव फुले

नाम – महामना ज्योतिराव फुले
जन्म – ११ अप्रैल १८२७ पुणे 
पिता – गोविंदराव फुले
माता – विमला बाई 
पत्नी – सावित्रीबाई फुले

देश के पढे लिखे सवणँ मानसिकता वाले लेखको ने कभी भी बहुजन नायको को न्याय नही दीया। तब ऐसे माहौल में पढे-लिखे बहूजन लोगो का कतँव्य बनता है कि वे अपने महापुरुषो के सच्चे ईतिहास को अपने लोगो के सामने पेश करे। जो आज तक हमसे छीपाया गया है। आज की पोस्ट एक ऐसा ही छोटा सा प्रयास है।

आज 11 अप्रैल..। सच में वास्तविक महात्मा कहे जानेवाले ज्योतिबा फूले का आज जन्मदिन है। दोस्तो, भले ही भारत के लोग मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा के रूप में पहचानते हो परंतु मेरा मन कभी भी गांधीजी को महात्मा के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। क्योकि गांधीजी एक चतुर राजनेता से विशेष और कुछ नही थे।



भारत के वास्तविक राष्ट्रपिता कहलाने वाला एक ही ईन्सान हो सकते है और वो है 19वी सदी में भारत में वैचारीक क्रान्ति के जरीये सामाजिक क्रान्ति का बीज बोने वाले ज्योतिबा फुले पुरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले। भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता।

जब समाज में वर्गभेद और जातिवाद अपनी चरम सीमा पर था। धमँ पर खडी हूई वणँ व्यवस्था के कारण शूद्र वर्ग की दशा अच्छी नहीं थी। उनका भरपूर शोषण हो रहा था। उन पर बहोत सारे प्रतिबंध थे। शूद्र स्वतंत्रता से घूम-फिर नही सकते थे, शूद्र पढ नही सकते थे, शूद्र अपवित्र थे और उनको छूना ठीक परछाई लेना भी पाप था। धमँ में शूद्रो को किसी भी प्रकार का अधिकार नही दीया गया था। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था। तब ज्योतिबा फूले ने वैचारिक क्रान्ति से सामाजिक क्रान्ति का बिगूल फुंक कर शूद्रो की शिक्षा के लिए सामाजिक संघर्ष का बीड़ा उठाया था।

ज्योतिबा ने समाज में फैली छूआछूत, धमँ के नाम पर चल रहे पाखंड और अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया था। धमँ के आधार पर लागु की गई वणँ व्यवस्था से पीडित और शोषीत समाज के लिये "दलित"शब्द दीया था। धर्म पर टीका – टिप्पणी करके उन्होने हिन्दू धर्म में विष की तरह फैली हूई जातिगत विषमता को उजागर किया था। धमँ के आधार पर वणँ व्यवस्था से ईन्सान से ईन्सान के हो रहे शोषण को, जाति-भेद और वर्ण व्यवस्था के विरोध में अपने क्रान्तिकारी विचार रखे थे। उन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का भी गठन किया था।

ज्योतिबा यह महसूस करते थे कि जातियों और पंथो पर बंटे इस देश का सुधार तभी संभव है जब लोगो की मानसिकता में सुधार होगा। ज्योतिबा ने "गुलामगीरी" लिखकर धमँ और वणँ व्यवस्था पर बहुत ही ताकिँक सवाल खडे किये थे। "शिवाजी का पेवाडा" लिखकर शिवाजी जन्मोत्सव मनाना शुरू करके बहूजनो में वैचारीक क्रान्ति की शुरूआत की थी। आयँ बाहर से ही आनेवाले लोग थे और यहां के बहुसंख्यक लोगो को धमँ के आधार पर गुलाम बनाकर भरपुर शोषण किया था। यह सबसे पहले कहनेवाले ज्योतिबा ही थे।

उस वक्त जात-पात और ऊँच-नीच की दीवारे बहुत ही ऊँची थी। शूद्र एवं स्त्रियों की शिक्षा के रास्ते बंद थे। ज्योतिबा ने इस मनुवादी व्यवस्था को चैलेन्ज दे कर अछूत एवं स्त्रीयो को शिक्षा देने का काम शुरू कर दीया था। ज्योतिबा द्रढरूप से मानते थे कि–माताएँ जो संस्कार बच्चो पर डालती हैं, उसी में उन बच्चो के भविष्य के बीज होते है। इसलिए स्त्रीयो को शिक्षित करना आवश्यक है। इस विचार पर अमल करने के लिये उन्होंने वंचित वर्ग एवं स्त्रीयो की शिक्षा के लिए स्कूलों का प्रबंध करने का द्रढ निश्चय किया था।

स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला था जो पुरे देशभर में पहला महीला विद्यालय था। जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम किया फिर बाद में अपनी पत्नी सावित्री फूले को शिक्षा देकर ईस काम योग्य बनाया था।

11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में एक माली के घर में जन्मे ज्योतिबा फूले सच में एक ऐसे दिपक थे जिन्होने सचमूच अछूतो एवं स्त्रीयो को शिक्षा देकर रौशन किया था। भारत में अछूतो और स्त्रीयो को शिक्षा देने के लिये ज्योतिबा फूले उनकी पत्नी सावित्री फूले और उनको सहयोग करनेवाली फातीमा बीबी द्वारा कीये गये प्रयास सदा ही स्मरणीय रहेंगें।

उन्होने न सिफँ अछूतो की शिक्षा पर काम कीया बल्कि नारी-शिक्षा, विधवा – विवाह और किसानो के हित के लिए काफी उल्लेखनीय कार्य किया है।ज्योतिबा फूले ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें भी लिखीं थी। सावँजनिक सत्यधमँ, शेतकन्याचा आसूड, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी का पेवाडा, राजा भोसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत, गुलामगीरी जैसी पुस्तके लिखकर एक वैचारिक क्रान्ति का निमाँण किया था।

बाबा साहब आंबेडकर भी ज्योतिबा से काफी प्रभावित थे और आजीवन प्रभावित रहे। डॉ भीमराव आंबेडकर ने अपने महान शोध ग्रंथ "Who Were The Shudras" ज्योतिबा फूले को ही अर्पित किया था। लेकिन जातिवाद से ग्रस्त भारत के सवणँ मानसिकता वाले लेखको ने कभी भी ज्योतिबा फूले के सामाजिक सुधार के कायँ को ज्यादा तवज्जो नही दीया। ईसी के कारण सच में महात्मा की छवि चरीताथँ करनेवाले देश के वास्तविक राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले आज भी अनछूए ही रह पाये है।

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