October 27, 2017

असली और नकली मिशनरी में भेद.. ~ साहब कांशीराम

आज अगर वर्तमान राजनीती का विश्लेषण किया जाये तो, बहुजन समाज के लोग विभिन्न पार्टियों से जुड़े हुए है, लेकिन उन पार्टियों में वह सिर्फ अनुसूचित जाती-जनजाति मोर्चा तक ही सिमित रह जाते है.. वह लोग बहुजन समाज के लोगो द्वारा दिए गए वोट द्वारा चुने तो जाते है, लेकिन बाद में वह सिर्फ पार्टी के चाकर ही बन कर रह जाते है.. अपने समाज के लोग, उनकी समस्या और उनके प्रश्नों को वह सही तरह से प्रस्तुत करने में व् उनके निराकरण में पुर्णतः असफल दिखाई देते है.. उनकी जवाबदारी व् वफ़ादारी अपने समाज की बजाय पक्ष के प्रति दिखाई देती है.. उन लोगो का इस्तेमाल उनके ही समाज के पक्ष और सच्चे नेता को कमजोर करने के लिए होता है.. इसी बात को मान्यवर साहब कांशीराम ने अपनी किताब चमचायुग में बखूबी दर्शाया है.. 

साहब कांशीराम लिखते है की, "चमचा एक देसी शब्द है, जिसका प्रयोग उस व्यक्ति के लिए होता है जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता बल्कि उससे कुछ करवाने के लिए कसी और की जरूरत होती है.. और वः कोई और व्यक्ति, उस चमचे का इस्तेमाल हमेशा अपने निजी फायदे और भलाई के लिए अथवा अपनी जाती की भलाई के लिए करता है, जो चमचे की जाती के लिए हमेशा अहितकारक होता है." चमचो के लिए साहब कांशीराम ने दलाल, पिट्ठू, औजार जैसे और शब्द भी इस्तेमाल किये है.. 

चमचो या दलालों की वजह से बहुजन आन्दोलन को बहोत ही गहरी चोट पहुंची है.. जिस आन्दोलन को बहुजन महापुरुषों ने अपने खून पसीने से सीचा, उस आन्दोलन को चमचो ने अपने स्वार्थ के लिए बेच दिया.. और इसी लिए आज हमारे लिए यह बहोत जरुर बन जाता है की, हम सच्चे मिशनरी और चमचो के बिच का फर्क जाने, ताकि हमे चमचो को पहचानने में आसानी हो.. 

चमचा युग में साहब कांशीराम, असली और नकली मिशनरी के भेद को समजते हुए मान्यवर साहब कांशीराम लिखते है की, 

  • एक सच्चा कार्यकर्ता आज्ञाकारी होता है, वह जी-हजुरी नहीं करता..
  • एक असली कार्यकर्ता अपने नेतृत्व को मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील होता है..
  • एक सच्चा मिशनरी, लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नेतृत्वकर्ता की सहायता करता है..
  • नकली कार्यकर्ता का इस्तेमाल, असली व् सच्चे नेतृत्व को कमजोर करने के लिए होता है.. 
  • नकली कार्यकर्ता, अपने आप कार्य नही करता.. उसकी बागडोर दुसरो के हाथ में होती है.. असली मिशनरी अपने नेतृत्वकर्ता से प्रेरित होता है..
  • एक सच्चा मिशनरी खुद को बाबासाहब व् अन्य बहुजन महापुरुषों  ऋणी मानता है..
  • एक सच्चा मिशनरी बहुजन समाज को श्क्षित, जागृत करने के लिए व् उसकी भलाई के लिए कार्यरत रहता है..
  • चमचे इसलिए बनाए जाते है ताकि, वास्तविक और सच्चे नेतृत्व का विरोध किया जा शके.. 
  • एक मिशनरी जीवनपर्यंत, अपने सच्चे और वास्तविक नेतृत्व को Time, Tragedy और Talent से सहायक होता है.. 
  • एक असली मिशनरी Single Mind full Devotion से अपने मिशन व् नेतृत्वकर्ता को वफादार रहता है.. 

साहब कांशीराम की लिखी किताब "चमचायुग" हिंदी में डाऊनलोड करने व् पढने के लिए निचे की लिंक पर क्लिक करे :  

October 16, 2017

हमारे जीवन आदर्श, उनके विचार, त्याग, संघर्ष, और बलिदान

बहुजन समाज का आन्दोलन सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और आर्थिक परिवर्तन का आन्दोलन है.. परिवर्तन तभी शक्य होता है, जब जरूरियात (Need), इच्छा (Desire) और मजबूती (Strength) का सही समन्वय होता है.. 

समानता का यह आन्दोलन आज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व महा कारुणिक तथागत गौतम बुद्ध ने शुरू किया था, जिसे संत रोहिदास, संत कबीर, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले, राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज, रामासामी पेरियार, नारायणा गुरु, विश्वरत्न राष्ट्रनिर्माता बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर, माता रमाबाई आम्बेडकर और बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम जैसे महानायकों ने अथाग परिश्रम, त्याग, बलिदान और संघर्ष से आगे बढाया.. आज इस कारवां को हम जिस जगह देख रहे है, वह सेंकडो बहुजन महापुरुषों, माताओं और युवाओ के त्याग और संघर्ष का फल है.. 

बहुजन समाज के इस व्यवस्था परिवर्तन के मिशन के साथ जुड़ा हुआ हर एक व्यक्ति, किसी ना किसी बहुजन महापुरुष को अपने आदर्श के रूप में अनुसरता है.. यह आदर्श तथागत गौतम बुद्ध, महात्मा ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर, माता रमाबाई आम्बेडकर, मान्यवर साहब कांशीराम या और कोई भी सकता है.. 

यहाँ बात है आदर्श की, अपने आदर्शो के विचारो के अनुसरण की.. "जब कोई व्यक्ति किसी को अपना आदर्श मानता है और उनके जीवन के गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयाश करता है, तब ही वह उसका अनुयायी कहलाता है.."

ऐसी ही एक किताब भंते डॉ करुणाशील राहुल जी ने लिखी है, बहुजन मिशन के सन्दर्भ में.. जिसमे बहुजन समाज में जन्मे माताओं और महापुरुषों के विचारो और उनके गुणों को कैसे अपने जीवन में उतारे और बहुजन आन्दोलन को आगे बढाने में कैसे अपना सहयोग दे, उसके बारे में समझाया गया है.. किताब को पढने के लिए, निचे दी गई लिंक पर क्लिक करे, खुद भी पढ़े और दुसरो को भी पढाये.. जय भीम.. 

October 14, 2017

तुम्हे जाना कहां था, कहां पहुँच गई? - आज की नारी के लिए बाबासाहब का आर्तनाद

तुम्हे जाना कहां था, कहां पहुँच गई? - आज की नारी का मार्ग - उनके मुक्तिदाता बाबासाहब की नजर से 

बोधिसत्व बाबासाहब डॉ आंबेडकर ने ज्ञान के शिखरों को सर कर, आजीवन संघर्ष द्वारा समग्र दबे, कुचले, शोषित व् पीड़ित समाज को सुख और शांति का कवच प्रदान किया.. समाज का महत्त्व का और अभिन्न अंग ऐसी स्त्री, जो हजारो सालो से पुरुषो की गुलामी की जंजीरों से बंधी हुई थी, उसे भी हिन्दू कोड बिल के माध्यम से मुक्त कराकर पुरुषो के समान बनाया.. लेकिन, आज ब्राह्मणवाद और ईश्वरवाद की चुंगल में फंसकर वो गुमराह हो रही है, तब बाबासाहब के आर्तनाद को वर्णन करता भंते डॉ करुणाशील राहुल जी का यह लेख स्त्रिओ को जगाने व् झंझोड़ने के लिए प्रेरणादायक साबित होगा.. 

लेख को पढने के लिए निचे दी गई लिंक पर क्लिक करे.. खुद भी पढ़े और दुसरो को भी पढाये.. 

१४ अक्टूबर १९५६ को बौद्ध धम्म दीक्षा समारोह में बाबासाहब का ऐतिहासिक भाषण

आधुनिक भारत के निर्माता, विश्वरत्न बोधिसत्व बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर ने १३ अक्टूबर १९३५ को येवला, नासिक में लाखो लोगो के समक्ष प्रतिज्ञा की थी की, "मैं हिन्दू अछूत के रूप में पैदा हुआ यह मेरे वश की बात नहीं थी, किन्तु मैं हिन्दू अछूत के रूप में मरूँगा नहीं.." और उसी महान प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए, १४ अक्टूबर १९५६ को अशोक विजयादसमी के दिन, अपने लाखो अनुयायियो के साथ असमानता, भेदभाव, ऊँचनीच और जातिवाद से ग्रस्त हिन्दू धर्म को त्याग कर प्रेम, मैत्री, दया, करुणा और बंधुता से पूर्ण मानवतावादी बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की.. जो तथागत बुद्ध के बाद सबसे बड़ी धम्मक्रांति थी.. इस अवसर पर उन्होंने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसे पुस्तक के रूप में संगृहीत किया गया है.. उसे पढने के लिए निचे दी गई लिंक पर क्लिक करे, और पूरा भाषण पढ़े..


















October 8, 2017

बहुजन मूवमेंट के सजग प्रहरी - बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम

आज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व तथागत गौतम बुद्ध द्वारा असमानता, जातिवाद और भेदभाव से युक्त सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ शुरू किया गया सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन चक्रवर्ती सम्राट अशोक से लेकर, संत रोहिदास, कबीर, वीर मेघमाया से होते हुए छत्रपति शाहूजी महाराज, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, भारतरत्न बाबासाहब डॉ आंबेडकर तक आ पहुंचा.. इन सभी महापुरुषों और माताओं ने अपने अपने समयकाल में सेंकडो कठिनाइयों का सामना करते हुए, अथाग संघर्ष, त्याग और बलिदान इस कारवा तक पहोंचाया था.. 

अपने समय में बाबासाहब डॉ आम्बेडकर ने मनुवादियों से अकेले संघर्ष कर सदियों से दबे - कुचले, पिछड़े समाज को लिखित संवैधानिक अधिकार दिलाये.. बाबासाहब बहुजन समाज को इस देश का शासक वर्ग बनते देखना चाहते थे, और वो भारत देश को बौद्ध्मय बनाना चाहते थे, लेकिन उनके जीते-जी यह स्वप्न पुरे नहो सके.. बाबासाहब का अपने अनुयायियो को अंतिम संदेश था की, ‘‘मैं बहुत मुश्किल से इस कारवां को इस स्थिति तक लाया हूं, जहां यह आज दिखाई दे रहा है। इस कारवां को आगे बढ़ने ही देना है, चाहे कितनी ही बाधाएं, रुकावटें या परेशानियां इसके रास्ते में क्यों न आएं। यदि मेरे लोग, मेरे सेनापति इस कारवां को आगे नहीं ले जा सकें, तो उन्हें इसे यहीं, इसी दशा में छोड़ देना चाहिए, पर किसी भी हालत में कारवां को पीछे मोड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए..’’ 

बाबासाहब के महा-परिनिर्वाण के बाद उनका ये कारवां कुछ रुक सा गया था.. इस मिशन को कोई मार्गदर्शक न मिला, जो इसे आगे बढ़ा शके और मंजिल तक ले जा सके.. लगभग 10-12 साल तक बहुजन समाज में स्वाभिमानी नेतृत्व उभर कर नहीं आया, अगर कोई उभर कर आया तो, वह कोंग्रेसियो की चौखट पर उनके तलवे चाटने चला गया.. अब बहुजनो के हको की बागडोर चमचे और भडवे लोगो के हाथो चली गई, ये चमचे अपना तो पेट भरते रहे लेकिन अछूतों को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया.. 

बाबासाहब डॉ अम्बेडकर की मूवमेंट को नेतृत्व प्रदान करने के लिए, २०वीं व् २१वीं सदी की राजनीती की धुरी बनकर आने वाले व्यक्तित्व का नाम था कांशीराम, जिनको बाबासाहब के अनुयायी "मान्यवर साहब" कहकर पुकारने लगे.. १५ मार्च १९३४ को पंजाब राज्य के रोपड़ जिले के पिरथिपुर बूंगा में मान्यवर साहब का जन्म हुआ था.. बचपन से ही साहब कांशीराम पढाई में बहोत होशियार थे.. 

कांशीरामजी DRDO में अधिकारी बनने तक बाबा साहब अम्बेडकर के मिशन से अनभिज्ञ थे, लेकिन जब उनको बाबा साहब के त्याग समर्पण और जीवन दर्शन का ज्ञान हुआ तो उन्हें महसूस हुआ कि मेरा समाज तो खूंटे से भूखा ही बंधा हुआ है और मैं अधिकारी बनकर मौज उड़ा रहा हूँ एवं उस पशु की भाँति अकेला ही पेट भरने में लगा हुआ हूँ, धिक्कार है मुझे अपने आप पर.. 

एक घटना जिसने मान्यवर साहब के जीवन को बदल दिया उसे पढने के लिए निचे की लिंक पर क्लिक करे : घटना जिसने मान्यवर साहब का जीवन बदल दिया

इस घटना के बाद साहब कांसीराम जी ने उसी दिन अधिकारी की नौकरी छोड़ दी एवं घर परिवार सभी छोड़ कर निकल पड़े बहुजन समाज (obc/sc/st और इन्हीं में से धर्मपरिवर्तित minority) को पशु रूपी जीवन से मुक्ति दिलाने के लिए पूरे जीवन भर जातियों में बंटे हुए समाज को संगठित कर बहुजन समाज बनाने के कार्य में लगे रहे.. 






नौकरी छोड़ने के बाद मान्यवर साहब ने एक संकल्प लिया, जिसने बहुजन मूवमेंट को एक नया मोड़ दिया.. कांशीराम साहब ने संकल्प लिया की, 
१. मै आजीवन शादी नहीं करूँगा.. 
२. आज के बाद में अपने परिवार के सुख और दुःख में घर नहीं जाऊंगा और आज के बाद मेरे परिवार से मेरा किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है.. 
३. मरते डीएम तक एक भी रूपया और एक इंच भी जमीं मेरे नाम नहीं होगी, जो भी पैसा और जमीं होगी वह बहुजन समाज की धरोहर होगी.. अगर में इसका व्यक्तिगत उपयोग करूंगा तो मै अपने आपको समाज का गुनेहगार मानूंगा..
४. समाज जैसा खाने को देगा तथा जैसा पहनने को देगा, उसे सहर्ष स्वीकार करूँगा.. 
५. मै आजीवन नौकरी नहीं करूँगा..

अपने साथियों के साथ मिलकर मान्यवर साहब ने पहले बामसेफ (BAMCHEF - The All India Backward (SC, ST, OBC) And Minority Communities Employees Federation) की रचना की, जो भारत का सबसे बड़ा सरकारी कर्मचारियों का संगठन था.. उसके बाद DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) और अंत में BSP (बहुजन समाज पार्टी) की रचना की, जो आज भारत की तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी है.. 

साहब कांशीराम का कहना था की, बहुजन समाज आर्थिक रूप से कमजोर है, आज बहुजन समाज के पास बड़े साधन उपलब्ध नहीं है.. जो साधन उपलब्ध है उपयोग और प्रयोग करना सिख जाए तो हम अपने मिशन में कामयाब हो सकते है.. इस प्रकार साहब ने १९८१ में DS4 के माध्यम से कन्याकुमारी से कारगिल और कोहिमा से पोरबंदर तक अखिल भारतीय साईकिल मार्च शुरू किया जिसे सौ दिन की यात्रा के बाद दिल्ली समाप्त किया.. इस यात्रा के समापन में तिन लाख लोगो ने भाग लिया..

साहब के लिए हमेशा एक लाईन बोली जाती है की,

मै अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर
लोग साथ जुड़ते गए और कारवां बनता गया..


अपने कठिन त्याग, संघर्ष और अथाग परिश्रम से शून्य पर खड़ी बहुजन राजनीती को मान्यवर साहब ने सत्ता के उस सर्वोच्य मुकाम तक पहोंचाया जिसके लिए बाबासाहब डॉ आम्बेडकर कहा करते थे के, "Political Power is the Master Key.." सदियों से ६००० से भी ज्यादा जातियो में बंटे समाज को जोड़कर बहुजन समाज बनाया और देश के सबसे बड़े सूबे उतरप्रदेश में चार बार बहुजनो की सरकार बनाई.. 

मान्यवर साहब कहा करते थे की, "अगर हमें कभी न बिकने वाला नेता चाहिए तो, हमें कभी न बिकने वाला समाज बनाना पड़ेगा.. क्योंकि, लोगो को वैसा ही नेता मिलता है, जैसे लोग होते है.." 

बहुजन महापुरुषों के सदीओ से चले आ रहे व्यवस्था परिवर्तन के इस सामाजिक आन्दोलन के बारे में मान्यवर साहब कहा करते थे की, 
राजनीती चले न चले, सरकार बने न बने, 
लेकिन सामाजिक परिवर्तन की गति 
किसी भी कीमत पर नहीं रुकनी चाहिए..

अपनी लिखी किताब चमचायुग में साहब कांशीराम ने पूना करार के दुश्परिणामो को दर्शाते हुए, उससे पैदा हुए चमचो के कारण बहुजन मूवमेंट को होनेवाली हानि, चमचो के प्रकार, और चमचो से कैसे लड़ा जाये उसको बखूबी निरूपा है.. 

मान्यवर साहब कांशीराम की लिखी किताब, चमचायुग (The Chamcha Age by Sahab Kanshiram) जो की वर्तमान बहुजन राजनीती का बखूबी निरूपण करती है, उसे यहाँ से पढ़े..


जिन बहुजन महापुरुषों और माताओ के त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज हम इस मुकाम पर पहुंचे है, उनके हमारे ऊपर रहे ऋण को चुकाने के बारे में मान्यवर साहब कहते है की, "हम अपने समाज को अपना मनी, माइंड, टाइम शेयर करे और समाज के ऋण से उऋण हो.."


बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद रुक से गए उनके कारवां को साहब कांशीराम ने संभाला और उसे एक मुकाम तक पहुँचाया.. बहुजन मूवमेंट के सजग प्रहरी, बाबासाहब के सच्चे वारिस, बहुजन नायक मान्यवर साहब का ९ अक्तूबर २००६ को परिनिर्वाण हुआ.. 

सच ही कहते है लोग की, "बाबासाहब का दूसरा नाम, कांशीराम कांशीराम.."