October 20, 2018

साहब कांशी राम - फूले-शाहू-अम्बेडकर के आंदोलन को दुबारा जीवित करने वाले युगपुरुष

महाराष्ट्र में जातीय भेदभाव के खिलाफ १८४८ में महात्मा जोतीराव फूले द्वारा शुरू की गई सामाजिक क्रांति, जिसे बाद में छत्रपति शाहू जी महाराज और बाबासाहब अम्बेडकर ने १९५६ तक चलाया; १९६५ तक लगभग खत्म हो चुकी थी। इस को दुबारा अपने पैरों पर खड़ा करने का कारनामा साहब कांशी राम ने अपनी सूझ-बुझ और ईमानदारी की बदौलत करके दिखाया।

१५ मार्च १९३४ को अपने नैनिहाल, पिरथीपुर बुंगा साहिब में जन्मे साहब कांशी राम का अपना पैतृक गाँव,खवासपुर,जिला रोपड़ था। उनके पिता का नाम, सरदार हरी सिंह और माता का नाम बिशन कौर था; वो अपने सातों बहनो-भाइयों में सबसे बड़े थे। अपनी शुरुआती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने रोपड़ से B.Sc की और पहले देहरादून और फिर बाद में पुणे, महाराष्ट्र में एक वैज्ञानिक के तौर पर नौकरी शुरू की।

यहीं से उनके जीवन में एक बहुत बड़ा मोड़ आया। बाबासाहब अम्बेडकर और महात्मा बुद्ध की जयंती की छुट्टियां को ब्राह्मणवादी अधिकारियों द्वारा ख़ारिज किये जाने के फैसले से विवाद खड़ा हो गया। इसी दौरान उन्हें बाबासाहब अम्बेदकर की किताब "जाती का विनाश" पढ़ने को मिली। खुद उनके मुताबिक उस रात वो सो न सके और कई बार उसे पढ़ा। यहीं से जाती के इस कोढ़ को खत्म करने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी कुर्बान करने का फैसला किया।

इसी दौरान उन्हें एक और बहुत ही कीमती किताब जो की अमरीका की एक छात्रा "गेल ओमवेट" द्वारा महात्मा जोतीराव फूले पर की जा रही PhD का निबंध था - भी पढ़ने को मिली, जिसका नाम "Cultural Revolt in a Colonial Society" था। इससे उन्हें महात्मा फूले और छत्रपति शाहू जी महाराज द्वारा इसी दिशा में किये जा रहे क्रांतिकारी कामों के बारे में पता चला। दक्षणी भारत में नारायणा गुरु और पेरियार रामास्वामी नायकर द्वारा चलाये जा रहे जाती-विरोधी आंदोलनों के बारे में भी उन्होंने जानकारी हासिल की।

बाबासाहब अम्बेडकर के बाद इस आंदोलन की असफलता के कारणों का पता चला और उसे एक नए क्षेत्र और एक नए ढंग से शुरू किया। १९७० के दशक में वो महाराष्ट्र से दिल्ली आये और १९७८ में समाज की गैर-राजनीतिक जड़ों को मज़बूत करने के लिए पढ़े-लिखे सरकारी कर्मचारियों का संगठन BAMCEF बनाया। उनका मानना था कि जिस समाज की गैर-राजनीतिक जड़े मज़बूत नहीं होती, उनकी राजनीति कभी कामयाब नहीं हो सकती।

१९८१ में DS-4 की नींव रखी, जिसके पीछे मकसद था की अगर सत्ता हासिल करनी है तो हमें संघर्ष करना होगा।

१४ अप्रैल १९८४ को बाबासाहब के जन्मदिन के अवसर पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। इसके पीछे उनका निशाना था कि "Those who oppose will be required to propose." जो लोग किसी व्यवस्था का विरोध करते हैं, उन्हें राजनीतिक सत्ता हासिल करके उसका सही विकल्प भी देना होगा।

सिर्फ ९ सालों के छोटे से समय में ही उत्तर प्रदेश में वो १९९३ को मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ समझौता करके अपने ऐतिहासिक नारे "मिले मुलायम कांशी राम, हवा हो गए जय श्री राम" के ज़ोर पर सत्ता में पहुँचे। अगले दो सालों में वो बसपा की अगवाई में सरकार बनाने में भी कामयाब रहे।

यह काफिला लगातार बढ़ता रहा और उन्होंने ऐलान किया कि २००४ की होने वाली लोक सभा चुनावों में बहुजन समाज को देश का हुक्मरान बनाएंगे। इस समाज की हज़ारों सालों की ग़ुलामी का हमेशा के लिए खात्मा किया जायेगा।

पर अफ़सोस कि इससे ठीक पहले सितंबर २००३ को चंद्रपुर से हैदराबाद जाते समय उनकी सेहत खराब हो गयी और उनका यह सपना अधूरा ही रह गया।

साहब कांशी राम भारत के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में एक तूफान बनके आये और देश पर हज़ारों सालों से कब्ज़ा जमा के बैठे ब्राह्मणवादी लोगों की हुकूमत को बुरी तरह झंझोड़ गए। जितने समय तक फूले-शाहू-अम्बेडकर लहर उनके मज़बूत कन्धों पर रही, उत्तर प्रदेश और देश में कोई भी पार्टी बहुमत की सरकार बनाने का सपना भी न ले सकी।

कुछ साल बीमार रहने के बाद ९ अक्टूबर २००६ को फूले-शाहू-अम्बेडकरी आंदोलन का यह सच्चा उत्तराधिकारी सबको अलविदा कह गया।

आये ९ अक्टूबर २०१८ को उनके १२वे परिनिर्वाण दिवस पर उनके अधूरे सपनों को पूरा करने की दिशा में कदम उठाये।

जय साहब कांशी राम, जय भीम

- सतविंदर मदारा

The Great Leader Kanshi Ram Full Movie :




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