‘बौद्ध’ शब्द बुद्धि से बना है जिसका अर्थ है “जागृत मस्तिष्क”, जो सत्य को सत्य और असत्य को असत्य की दृष्टी से देखने में सक्षम हो।
ये वो दर्शनशास्त्र है जिसकी शुरुआत लगभग 563 BC में जन्मे महामानव सिद्धार्थ गौतम ने 35 वर्ष की उम्र में बोधिसत्व की प्राप्ति के बाद अपने अनुभव को देशना स्वरुप संसार को दिए। ये धम्म मार्ग पिछले ढाई हज़ार से भी ज्यादा सालों से मानव का कल्याण करता आ रहा है और आगे भी हमेशा करता रहेगा, क्योंकि इसका मूल ज्ञान अन्य धर्मों की तरह समय के साथ पुराना और अस्वीकार्य नहीं होता। जनसँख्या की दृष्टी से कहें तो आज पूरे संसार में बौद्ध धम्म को मानने वाले दूसरे नम्बर पर हैं, लगभग 1.6 बिलियन लोग इससे लाभान्वित हैं। पहले ये एशिया महाद्वीप में ज्यादा प्रचलित था, इसीलिए बुद्धा को लाइट ऑफ़ एशिया भी कहते थे, पर अब इसे यूरोप आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे उन्नत देश तेज़ी से अपना रहे हैं क्योंकि उनमें बौद्ध धम्म को समझने के लिए वैज्ञानिक मानसिकता का प्रचार उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध है।
बौद्ध धम्म असल में धर्म शब्द की परिभाषाओं से कहीं आगे का तत्व ज्ञान है, इसीलिए इसे हम धर्म न बोलकर धम्म बोलते हैं, जिससे की इसे अन्य धर्मों के समतुल्य न समझा जाए। बौद्ध धम्म को हम धर्म इसलिए नहीं कहते क्योकि ये अन्य धर्मों की तरह केवल आस्था, गुटबाजी, पुरोहितवाद, ईश्वरवाद और उनसे जुडी मान्यताओं पर नहीं चलता। इसका लक्ष्य मानव में ऐसे मानसिक योग्यता पैदा करना है जिससे वो असत्य को पहचान और नकार सके, सत्य, प्रमाणिकता और तर्क की क्षमता विकसित करता है। बौद्ध धम्म ऐसी कसौटी या सन्दर्भ हवाला (रेफरेंस) का काम करता है जिसकी सहायता से व्यक्ति मानव संसार में व्याप्त हर तरह के इश्वरिय सिद्धांत या पैगम्बर के सन्देश का सही आंकलन करके कर्मकांड, परंपरा, धर्मादेशो, मान्यताओं आदि को परख सके चुन सके और नकार सके।
बुद्ध ने कहा है:
“तुम किसी बात को इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये पहले कभी नहीं सुनी, इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये सदियों से चली आ रही हैं, किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे बुजुर्गो ने कही हैं, किसी चीज को इसलिए मत मानो की ये किसी धर्मग्रन्थ के अनुकूल है। किसी चीज को इस लिए मत स्वीकार करो क्योंकि कहने वाले का व्यक्तित्व आकर्षक है। किसी चीज को इसलिए मत स्वीकार करो क्योंकि ये स्वयं मैंने कही है। किसी चीज को मानने से पहले यह सोचो की क्या ये सही हैं, किसी चीज को मानने से पहले ये सोचो की क्या इससे आप का विकास संभव है, किसी चीज को मानने से पहले उसको बुद्धि की कसोटी पर कसो और स्वानुभव से हितकर जानो तो ही मानो नहीं तो मत मानो।”
हिंदी के धर्म शब्द को पाली भाषा में धम्म कहते हैं, अन्य धर्मों और बौद्ध धर्म में बहुत ज्यादा फर्क है पर सारा मीडिया बौद्ध धर्म को अन्य धर्मों के समतुल्य खड़ा करने में लगा है ऐसे में जनसाधारण के लिए बौद्ध धम्म को सही से समझना बेहद मुश्किल हो जाता है। जब लोग बौद्ध विचारधारा को धर्म के रूप में नहीं धम्म के रूप में ग्रहण करेंगे तभी लाभान्वित हो सकते है।
अगर सही में बौद्ध धम्म को जानना हो तो में एक वाक्य में बौद्ध धम्म को आपके सामने रखता हूं कि, "डॉ आंबेडकर द्वारा रचित भारत का संविधान ही असल बौद्ध धम्म है, इसी में बौद्ध धम्म की मूल भावना है जो हर किसी के लिए हितकर है, बाकि बौद्ध धम्म में युगों से चलती आयीं बातें मात्र हैं।"
हम धर्म नहीं धम्म शब्द का प्रयोग उचित मानते हैं। आप कह सकते हो की शब्द से क्या फर्क पड़ता है, इससे वही फर्क पड़ता है जैसे हिंसक यज्ञ भंग करने वाला भंगी आज अपशब्द हो गया है, बुद्धिमान व्यक्ति के लिए पंडित शब्द का प्रयोग, रक्षा करने वाले को राक्षश और राक्षश का आज मतलब है अधर्मी। शब्दों में बहुत बात होती है। कोई ऐसे ही श्रेष्ठ नहीं है वो हर मोर्चे पर काम कर रहा होता है इतने बारीक मोर्चे पर भी काम किया गया है, जिसे हम कभी ध्यान ही नहीं दे पाते। टीवी के विज्ञापनों में भी केवल कुछ ही जातिसूचक उपनाम आते हैं, क्या ये जरूरी है, इतने बड़े देश में सिर्फ यही लोग हैं ? क्या केवल नाम से काम नहीं चलेगा? खेर ये उनका संघर्ष है वो अपनी जगह सही हैं सवाल ये है की आप का संघर्ष क्या है ?
धम्म विरोधी अवसरवादियों द्वारा फैलाई गई घृणा के कारन आज आम जनता दुखी है, पर दुःख दूर करने के स्रोत तक नहीं जाना चाहती। आपसे आग्रह है की एक बार इसे जानकार तो देखो, मानना न मानना तो बाद की बात है..
बुद्ध ने कहा है :
बुद्ध ने कहा है :
“यदि मै कहता हूँ की उस भवन मे दिया जल रह है तो तुम केवल आस्था से उसे मत मानो, मेरे कहने से उसे मत मानो, तुम बस मेरा निमंत्रण स्वीकार करो और उस दिए को स्वयं देखने जाओ और तब मानो।”
बुद्ध ने कहा है :
“मोह में हम किसी की बुराइयाँ नहीं देख सकते और घृणा में हम किसी की अच्छाईयाँ नहीं देख सकते”।
आज बौध धम्म का सबसे बड़ा नुक्सान ये बात कर रही है की ये दलितों का धर्म है, दलित मतलब ऐसा वर्ग जिसका सामाजिक बहिष्कार किया हुआ है जिनके खिलाफ घृणा का माहौल बनाया हुआ है इसि वजह से लोग इस धम्म को समझने के लिए भी तैयार नहीं जब कि ये वो मत है की इसे जो भी एक बार ठीक से समझ ले उसे फिर दुनिया में किसी भी धर्म के सिद्धांत में सहि और गलत समझने लगते हैं।
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