बात सन 1979 की है, जब महाराष्ट्र के दलितों ने मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉ बाबासाहब अंबेडकर यूनिवर्सिटी करने के लिए जबरदस्त आंदोलन छेड़ दिया था। उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार थे, इस आंदोलन में हमारे 4 युवा शहीद हुए थे, बड़ी तादाद में लोग गोलियां और लाठीचार्ज का शिकार हुए थे, बड़ी संख्या में हमारे लोगों पर मुकदमे भी दर्ज हुए थे। इतने कड़े संघर्ष के बावजूद भी, इतना भारी नुकसान और अपमानित होने के बावजूद भी मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम डॉ बाबा साहब यूनिवर्सिटी नहीं किया गया। यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के लिए सिग्नेचर अभियान भी चलाया गया था, 15 लाख साइन करके शरद पवार को दिया गया था, फिर भी शरद पवार ने नाम बदलना उचित नहीं समझा था।
इस आंदोलन के 18 साल बाद 15 जनवरी 1997 में मान्यवर कांशीराम साहब की मुंबई के शिवाजी पार्क में सभा होने वाली थी, इस सभा के ठीक 2 दिन पहले ही शरद पवार को मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉ बाबा साहब यूनिवर्सिटी का नाम रखने पर मजबूर होना पड़ा।
क्यों मजबूर होना पड़ा?
मजबूर इस लिए होना पड़ा क्योंकि शरद पवार को पता चल गया था कि मान्यवर कांशीराम साहब उत्तर प्रदेश में मनुवादी पार्टियों को धूल चटाकर मुंबई आ रहे हैं, जैसे उन्होंने वी. पी सिंघ को टेढ़ा किया था, वैसे कहीं मेरी कुर्सी को भी टेढ़ी न कर दे! इस डर के कारण यूनिवर्सिटी का नाम शरद पवार को बदलना पड़ा था।
कहने का तात्पर्य जब तक आप कुर्सी हिलाने की ताकत पैदा नहीं करोगे, मनुवादी पार्टियों से कुर्सी छिनने का माहौल खड़ा नहीं करोगे, तबतक आपके साथ हो रही जुल्म ज्यादती और अन्याय अत्याचार का अंत होने वाला नहीं है। इसीलिए आप अपनी शक्ति आवेदनपत्र, धरणा प्रदर्शन, छोटी मार्च या बड़ी मार्च में खर्च करने के बजाय राजनीतिक शक्ति का निर्माण करने के लिए लगानी चाहिए। हमें मांगने वाला नहि, देने वाला बनना होगा क्योंकि हुक्मरान हमेंशा देता है, किसी से मांगता नहीं है।
जय भीम.. जय भारत.. जय कांशीराम
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