Part 1 -बुद्ध का प्रथम धम्मोपदेश
उन पांचों परिव्राजकों ने तुरंत यह समझ लिया कि यह वास्तव में एक नया धम्म है। जीवन की समस्या के प्रति इस नए दृष्टिकोण से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि वे सभी यह कहने में एकमत थे,
''संसार के इतिहास में इससे पहले किसी भी धर्म के संस्थापक ने कभी यह शिक्षा नहीं दी कि मानवीय दुख को पहचानना और स्वीकार करना धम्म का यथार्थ आधार है।''
“संसार के इतिहास में इससे पहले कभी किसी धर्म के संस्थापक ने यह शिक्षा नहीं दी कि संसार के इस दुख को दूर करना ही धम्म का वास्तविक उद्देश्य है।''
- “संसार के इतिहास में इससे पहले कभी किसी ने मुक्ति की रूपरेखा नहीं सुज़ाई थी जो इतनी सरल हो, जो अलौकिकता और अपौरुषेय शक्तियों की अधीनता से मुक्त हो, जो इतनी स्वतंत्र ही नहीं बल्कि किसी 'आत्मा' या 'परमात्मा' में विश्वास तथा मरणांतर जीवन में विश्वास की विरोधी भी हो।
- संसार के इतिहास में इससे पहले किसी ने भी कभी ऐसे धम्म की रूप रेखा प्रस्तुत ही नहीं की, जिसका किसी रहस्य और (ईश्वरीय) प्रभुत्व से कोई सम्बंध नहीं हो, जिसके आदेश व्यक्ति की सामाजिक आवश्यकताओं के अध्ययन की देन हों और किसी ईश्वर की आज्ञाएं न हों।
- “संसार के इतिहास में इससे पहले किसी ने भी कभी मुक्ति की ऐसी परिकल्पना नहीं की कि सुख का उपहार व्यक्ति द्वारा इसी जीवन में और इस धरती पर स्वयं अपने ही धम्माचरण और प्रयास द्वारा प्राप्त किया जा सकता है!''
- नए धम्म पर बुद्ध का धम्मोपदेश सुनने के बाद उन परिव्राजकों ने उपर्युक्त उदगार व्यक्त किए।
- उन्हें लगा कि बुद्ध के रूप में उन्हें एक ऐसे जीवन-सुधारक मिल गए थे, जिनका रोम-रोम नैतिकता की भावना से ओत-प्रोत था और जो अपने युग की बौद्धिक संस्कृति से सुपरिचित थे। जिनमें ऐसी मौलिकता एवं साहस था कि विरोधी विचारों की जानकारी के साथ वह इसी जीवन में मुक्ति के एक ऐसे मार्ग का प्रतिपादन कर सकते थे, जिससे मन का आंतरिक परिवर्तन निज-सभ्यता और निज-संयम द्वारा प्राप्त किया जा सकता था।
- बुद्ध के लिए उनके मन में ऐसी असीम श्रद्धा उत्पन्न हुई कि उन्होंने उनके समक्ष तुरंत व समर्पण कर दिया और निवेदन किया कि वह उन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लें।
बुद्ध ने कोण्ड्ज्ज, अस्सजि, वप्प, महानाम तथा भदिय को 'एहि भिक्ख्वे' (भिक्खुओ आओ) कहकर भिक्खु संघ में दीक्षित कर लिया। वे 'पज्ज-वग्गिय' (पंचवर्गीय) भिक्खु नाम से प्रसिद्ध हुए।
संदर्भ ः बाबासाहब डो. भीमराव आंबेड्कर लिखित "बुद्ध और उनका धम्म"
संदर्भ ः बाबासाहब डो. भीमराव आंबेड्कर लिखित "बुद्ध और उनका धम्म"
No comments:
Post a Comment