Part 1 - बुद्ध का प्रथम धम्मोपदेश
परिव्राजकों ने बुद्ध से अपने धम्म की व्याख्या करने का निवेदन किया।
- बुद्ध ने इसे सहर्ष स्वीकार किया।
- उन्होंने सब से पहले उन्हें निर्मलता का पथ ही समझाया।
- उन्होंने परिव्राजकों से कहा, “निर्मलता का पथ यह सिखाता है कि जो मनुष्य अच्छा बनना चाहता है उसके लिए यह आवश्यक है कि वह जीवन के आदर्शों का कोई मापदंड स्वीकार करे ।
- “मेरे निर्मलता के पथ के अनुसार अच्छे जीवन आदर्श के पांच मान्य मापदंड हैं (i) किसी को हताहत व हिंसा न करना, (ii) चोरी न करना अर्थात दूसरे की चीज़ को अपनी न बना लेना, (iii) व्यभिचार न करना, (iv) झूठ न बोलना और (v) नशीली वस्तुओं का सेवन न करना।
- “ मेरा कहना है कि हर मनुष्य के लिए इन पांच सीलों को स्वीकार करना | परमावश्यक है क्योंकि हर मनुष्य के लिए जीवन का कोई मापदंड होना चाहिए, जिससे वह अपने कुशल-अकुशल कर्म (अच्छाई - बुराई ) को माप सके और ये सिद्धांत मेरी शिक्षाओं के अनुसार जीवन की अच्छाई - बुराई के मापदंड हैं ।
- “ संसार में हर जगह पतित ( गिरे हुए ) लोग होते हैं । लेकिन पतित दो तरह के होते हैं — एक पतित तो वे होते हैं जिनके जीवन का कोई मापदंड होता है , दूसरे पतित वे होते हैं जिनके जीवन का कोई मापदंड ही नहीं होता।
- “जिस पतित के जीवन का कोई मापदंड नहीं होता वह यह नहीं जानता कि वह ‘पतित’ है । परिणामस्वरूप वह हमेशा ‘ पतित ' ही रहता है। दूसरी ओर जिस पतित के जीवन का कोई मापदंड होता है वह अपनी पतितावस्था से ऊपर उठने का प्रयत्न करता है। ऐसा क्यों ? इसका उत्तर यही है कि वह जानता है कि वह पतित है, गिरा हुआ है ।
- “मनुष्य के जीवन को नियमित करने के लिए मापदंड के होने और न होने में यही अंतर है। मनुष्य का स्तर से नीचे गिर जाना इतनी बड़ी बात नहीं है जितनी कि किसी स्तर का अभाव होना ।
- “हे परिव्राजको! तुम पूछ सकते हो कि इन पांच सीलों (आदर्शो) का जीवन के मापदंड के रूप में स्वीकार किया जाना क्यों अच्छा है।
- “इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें स्वयं ही मिल जाएगा यदि तुम अपने से ही यह प्रश्न पूछो, “ क्या यह पांच सील (आदर्श) व्यक्ति के लिए कल्याणकारी है ?" साथ ही तुम यह भी पूछो, “ क्या ये पांच सील (आदर्श) सामाजिक कल्याण को प्रोत्साहित करते हैं ? "
- “यदि इन दोनों प्रश्नों का तुम्हारा उत्तर सकारात्मक है, तो इसका अर्थ है कि मेरे निर्मलता के पथ के ये पांच सील (आदर्श) जीवन के सच्चे मापदंड के रूप में मानने योग्य हैं । ”
संदर्भ ः बाबासाहब डो. भीमराव आंबेड्कर लिखित "बुद्ध और उनका धम्म"