Part 1 -बुद्ध का प्रथम धम्मोपदेश
इसके पश्चात बुद्ध ने उन परिव्राजकों को सील-पथ के बारे में समझाया।उन्होंने उन्हें बताया कि सील-पथ का अर्थ है इन सद्गुणों का अभ्यास करना,
(1) दान (2) सील (शील) (3) नेक्खम्म (नैष्क्रयम) (4) पज्जा (प्रज्ञा), 5) विरिय (विर्य) (6) खन्ति (क्षान्ति) (7) सच्च (सत्य) (8) अधिठान (अधिष्ठान) (७) मेत्ता (मैत्री) और (10) उपेक्खा (उपेक्षा)।
- उन परिव्राजकों ने बुद्ध से इन सद्गुणों का सही अर्थ समझाने के लिए कहा। तब बुद्ध ने उन्हें संतुष्ट करने के लिए समझाया -
- दान का अर्थ है बदले में किसी भी प्रकार की आशा किए बिना दूसरों की भलाई के निमित्त अपनी संपत्ति को ही नहीं, अपने रक्त, अपने शरीर के अंगों और यहां तक कि अपने प्राण तक को दूसरों को अर्पित कर देना ।
- “सील (शील) का अर्थ है नैतिक स्वभाव, अकुशल कर्म न करने की मनोवृत्ति और कुशल कर्म करने की मनोवृत्ति; बुराई (अकुशल कर्म) करने में लज्जा करना। दंड के भय से अकुशल कर्म से बचे रहना सील है। सील का अर्थ है अकुशल कर्म से भय खाना।
- नेक्खम (नैष्कर्म्य) का अर्थ है सांसारिक काम-भोगों का त्याग।
- ‘‘पज्जा (प्रज्ञा) का अर्थ है निर्मल बुद्धि ।
- “विरिय (वीर्य) का अर्थ है सम्यक प्रयत्न । जो कुछ एक बार करने का निश्चय कर लिया अथवा जो कुछ करने का संकल्प कर लिया, उसे अपनी पूरी सामर्थ्य से करने का प्रयास करना और बिना उसे पूरा किए पीछे मुड़कर नहीं देखना।
- खन्ति (क्षान्ति) का अर्थ है सहन सीलता। घृणा के बदले में घृणा न करना, इसका यही सार है। क्योंकि घृणा से घृणा कभी भी शांत नहीं होती। यह केवल सहन शीलता से ही शांत होती है।
- "सच्च (सत्य) का अर्थ है सत्यवादी होना। आदमी को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। उसे सत्य और केवल सत्य ही बोलना चाहिए।
- "अधिट्ठान (अधिष्ठान) का अर्थ है अपने उद्देश्य तक पहुंचने का द्रढ-संकल्प।
- “मेत्ता (मैत्री) का अर्थ है सभी प्राणियों के प्रति भ्रातृत्व-भावना रखना, न केवल मित्रों के प्रति ही, बल्कि शत्रुओं तक के प्रति भी; न केवल मनुष्यों बल्कि सभी प्राणियों के प्रति भी।
- “उपेक्खा (उपेक्षा) का अर्थ है अनासक्ति, जो उदासीनता से भिन्न है। यह चित्त की वह अवस्था है, जिसमें प्रिय-अप्रिय कुछ नहीं है। फल कुछ भी हो उससे निरपेक्ष रहना और लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना ही उपेक्खा है।
- "मनुष्य को इन सद्गुणों का अपनी पूरे सामर्थ्य के साथ अभ्यास करना चाहिए। इसीलिए उन्हें 'पारमिता' (गुणों की पराकाष्ठा) कहा गया है।
संदर्भ ः बाबासाहब डो. भीमराव आंबेड्कर लिखित "बुद्ध और उनका धम्म"
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