July 27, 2018

क्या है धम्म-चक्क-प्रवर्तन दिवस?

बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद तथागत ने जब कष्टो और शोक में डूबी हुई मानवता के दुःखो के बारे में सोचा तो उनका हृदय करुणा से भर गया । उन्हों ने निश्चय किया कि जिस धम्म के मार्ग का उन्होंने आविष्कार किया है उसे वो सभी मनुष्यों तक पहुंचाएंगे । इस निर्णय के साथ वे वाराणसी(सारनाथ) पहुंचे । सारनाथ के नजदीक मृगदाय वन में आषाढ़ी पूर्णिमा को अपने पुराने पांच साथी परिव्राजकों को धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र का उपदेश दीया। जिसमे चार आर्य सत्य और आर्य अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान दिया । उन्होंने पांचो को भिक्खु की दीक्षा दी ।पंचवर्गीय भिक्खुओ की दीक्षा से भिक्खु संघ का जन्म हुआ । 

आज के दिन बनी इस ऐतिहासिक घटना को धम्मचक्र प्रवर्तन दिन के रूप में मनाया जाता है । बाबा साहब लिखते है कि बुद्ध का धम्म एक क्रांति थी । तथागत विश्व के पहले समाज सुधारक थे ।  मैं मानता हूं की ईस क्रांति का आज के दिन उदय हुआ है ।



क्रांति और प्रतिक्रांति ग्रंथ में बाबा साहब लिखते है की, तीन चीजो के विरुद्ध बुद्ध ने महान अभियान छेड़ा था ।
-उन्होंने वेदों की सत्ता को अस्वीकार किया
-उन्होंने धर्म के रूप में बलि(पशु और मानव )की निंदा की
- उन्होंने जाति-प्रथा की निंदा की ।



जाति प्रथा उस समय वर्तमान रूप में विद्यमान नहीं थी। अंतरजातीय भोजन और अंतरजातीय विवाह पर निषेध नहीं था।आज कि तरह कठोरता नही थी।किंतु असमानता का सिद्धांत जो कि जातिप्रथा का आधार है, उस समय सुस्थापित हो गया था और इसी सिद्धांत के विरुद्ध बुद्ध ने एक निश्चयात्मक और कठोर संघर्ष छेड़ा।

अन्य वर्गों पर अपना वर्चस्व बनाऐ रखने के लिए ब्राह्मणों के मिथ्याभिमान के वह कितने कट्टर विरोधी थे और उनके विरोध के आधार कितने विश्वासोत्पादक थे,उसका परिचय उनके बहुत से संवादों से प्राप्त होता है.. जाति के विरोध के मामले में बुद्ध ने जो शिक्षा दी, उसी को व्यवहार में भी लाए। उन्हों ने वही किया, जिसे आर्यो के समाज ने करने से इनकार कर दिया था । आर्यो के समाज मे शुद्र अथवा नीच जाति का मनुष्य कभी ब्राह्मण नहीं बन शकता था। किंतु बुद्ध ने जाति प्रथा के विरुद्ध केवल प्रचार ही नहीं किया,अर्पितु शुद्र तथा नीच जाति के लोगो को भिक्खु का दर्जा दिलाया, जिनका बौद्धमत में वही दर्जा है, जो ब्राह्मणवाद में ब्राह्मण का है ।

जिस प्रकार बुद्ध ने शुद्रो और नीच जाति के मनुष्यों को भिक्खुओ का सर्वोच्च दर्जा दिलाकर उनकी स्थिति को उन्नत किया, उसी प्रकार उन्हों ने स्त्रीओ की स्थिति को भी ऊंचा उठाया। आर्यो के समाज मे स्त्रीओ और शुद्रो को समान स्थिति प्रदान की गई थी । दोनों को सन्यास लेने का कोई अधिकार नहीं था ,जबकि सन्यास ही निर्वाण के लिए एक मात्र मार्ग था । स्त्रियां और शुद्र निर्वाण से परे थे । बुद्ध ने स्त्रीओ के विषय मे इस नियम को वैसे ही भंग किया, जिस प्रकार उन्होंने शुद्रो के मामले में किया था । जिस प्रकार एक शुद्र भिक्खु बन शकता था, उसी प्रकार एक स्त्री सन्यासिनी बन बन शकती थी। यह आर्यों के समाज की दृष्टि में उसे सर्वोच्च दर्जा प्रदान करना था।

बुद्ध ने आर्यो के समाज के नेताओ के विरुद्ध जिस अन्य प्रश्न पर लड़ाई लड़ी, वह अध्यापक और अध्यापन के शीलाचार का प्रश्न था । आर्यो के समाज के नेताओ की यह धारणा थी कि ज्ञान और शिक्षा का विशेषाधिकार ब्राह्मणों, क्षत्रियो और वैश्यों को प्राप्त है, शुद्रो को शिक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं है। उनका आग्रह था कि अगर उन्हों ने स्त्रियों अथवा ऐसे पुरुषों को पढ़ाया जो द्विज नहीं है, तो इससे सामाजिक व्यवस्था के लिए भय उत्पन हो जाएगा। बुद्ध ने आर्यो के इस सिद्धांत की निंदा की ।

इस तरह बुद्ध की शिक्षा का आधार समानता ही है, जो समतामूलक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है।धम्मचक्रप्रवर्तन दिन की मंगलकामनाओ के साथ, जय भीम नमो बुद्धाय.. 

- अनित्य बौद्ध (अपूर्ण)