युद्ध नहीं अब बुद्ध चाहिए,
मानव का मन शुद्ध चाहिए।
सत्य, अहिंसा, विश्व बंधुता चाहिए,
करुणा और मैत्री का प्रसार चाहिए।
पंचशील अष्टांग मार्ग का,
पुनः जग में हो विस्तार।
समता, ममता और क्षमता से,
ऐसा वीर प्रबुद्ध चाहिए।
युद्ध नहीं अब बुद्ध चाहिए,
मानव का मन शुद्ध चाहिए।
कपट, कुटिलता, कामवासना घेर रही है मानव को,
कामाचार व दुराचार ने जन्म दिया है दानव को।
न्याय नियम का पालन हो अब,
सत्कर्मों की बुद्धि चाहिए।
युद्ध नहीं अब बुद्ध चाहिए,
मानव का मन शुद्ध चाहिए।
मंगलमय हो सब घर आँगन,
सब द्वार बजे शहनाइया।
शष्य श्यामल हो सब धरती,
मानवता ले अंगड़ाई।
मिटे दीनता हटे हीनता,
सारा जग समृद्ध चाहिए।
युद्ध नहीं हमको अब बुद्ध चाहिए,
मानव का मन शुद्ध चाहिए..
- अज्ञात