July 17, 2018

मै इसलिए खुश हूँ क्योंकि - साहब कांशीराम

घटना 1992 की है. साहेब चंडीगढ़ माता राम धीमान के घर रुके हुए थे. धीमान वह इंसान थे जिसे साहेब साथ लेकर सुबह के चार चार बजे तक सुखना झील के किनारे बैठकर सियासत के नक़्शे बनाते रहते थे. 

उस रात भी रात के करीब 11-12 बजे होंगे.साहेब बैठे बैठे अचानक हँस पड़े. धीमान ने पूछने की कोशिश की कि- साहेब जी अकेले अकेले क्यूँ हँस रहे हो? हंसने का कुछ कारण हमें भी बता दो. साहेब ने कहा- यदि हंसने का कारण जानना है तो चलो, सुखना झील चलते हैं. वहां झील के किनारे बैठकर बताऊँगा कि आज मुझे हंसी क्यूँ आ रही है. 

धीमान ने कहा- साहेब जी सिक्यूरिटी?
साहेब का हुक्म हुआ- सिक्यूरिटी यहीं रहेगी, सिर्फ हम दोनों ही चलेंगे. 

साहेब और धीमान सुखना झील के किनारे आ बैठे और साहेब ने मुस्कुराते हुए कहा, "आज मैं इसलिए खुश हूँ क्यूंकि मैं उत्तर प्रदेश में जो जूता मरम्मत करने का काम करता था उसे टिकट दी और वह भी जीत गया. जो मिटटी के बर्तन बनता था वह भी जीत गया. जो साइकिल को पंक्चर लगाता था वह भी एम् एल ए बन गया. मैंने चरवाहे को भी टिकट दी और वह भी जीत गया.

अब मैं यह सोचकर खुश हो रहा हूँ कि कल जब यह लोग कोट पेंट पहनकर नईं सरकारी गाड़ियों में बैठकर हाथों में डायरी पकड़ कर विधान सभा जाकर सौगंध लेंगें तब अजीब सा नज़ारा होगा... मानो जैसे यह लोग नर्कभरी ज़िन्दगी से निकलकर स्वर्ग में आ गए हों. वास्तव में यह वो मूलनिवासी लोग हैं जिनका कभी विधान सभा के सामने से गुज़रना तो दूर की बात, विधान सभा का नाम भी नहीं सुना होगा.

यह वो लोग हैं जो सदियों से मनुवादी लोगों की झिड़कीयाँ खाते आये हैं. और शायद अब वक़्त आ गया है कि ये लोग किसी मनुवादी अफसर की ऐसी की तैसी कर सकते हैं. इनमें से बहुत से लोगों ने अभी मंत्री बनना है. मेरा थोड़ा सा सपना पूरा हुआ है. लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है क्यूँकि ये तो अभी नाम मात्र का ट्रेलर भर है. फिल्म तो अभी बाकी है." इतना कहते ही साहेब की आँखों में आंसू आ गए.


जब मंत्री मंडल बनने का वक़्त आया तब जिन्हें कभी पेट भर रोटी नसीब नहीं हुई, साहेब ने उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में फ़ूड सप्लाई मंत्री बनाने की सिफारिश की. और जिसके पास कभी साइकिल भी नहीं था उसे सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री बनाने की सिफारिश की. और जिसके पास ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा भी नहीं था, खेतीबाड़ी मंत्री बना दिया. और जो झोंपड़ी में रहता था उसे आवास मंत्री बनाने की सिफारिश की. इसके साथ ही, इनके मंत्री बनते ही, साहेब ने इन सभी मंत्रियों को सख्त हिदायत भी दी कि, "अगर मुझे यह पता चला कि कोई मंत्री दो से अधिक सरकारी गाड़ियाँ अपने काफिले में साथ लिए फिरता है तो मैं उसे मंत्री के ओहदे से छुट्टी करके पैदल ही घर भेज दूंगा."

यहाँ इतिहासिक बात यह दर्ज करने वाली है कि, जितनी देर उत्तर प्रदेश में बसपा की समाजवादी पार्टी के साथ सांझी सरकार रही साहब ने कभी भी किसी लाल बत्ती वाली कार में सफ़र नहीं किया. वह जब भी उत्तर प्रदेश में किसी राजनीतिक दौरे पर या सरकारी कार्यक्रम में भाग लेने गए तब सिर्फ आम साधारण गाड़ी में ही गए.

- "मै कांशीराम बोल रहा हूँ"  किताब के अंश