June 25, 2018

भारत देश को आज़ाद करवाने में बाबासाहब डॉ. आंबेडकर का योगदान..

भारत को आझाद करवाने में महत्व का योगदान बाबासाहब डॉ. आम्बेडकर का है ।

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर पहली बार 9 दिसंबर 1946 को बंगाल से चुनकर आए. इसके तुरंत बाद भारत का विभाजन हो गया, जिसके बाद बाबासाहेब जिस संविधान परिषद की सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उसे पाकिस्तान को दे दिया गया. इस तरह बाबासाहेब का निर्वाचन रद्द हो गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि विभाजन के वक्त जिस तरह डॉ. आंबेडकर के प्रतिनिधित्व वाले हिस्से को पाकिस्तान को दे दिया गया, उसे भी तमाम जानकारों ने कांग्रेस की साजिश करार दिया है. यह इसलिए किया गया ताकि डॉ. आंबेडकर संविधान सभा में नहीं रह पाएं. हालांकि इन साजिशों को दरकिनार करते हुए बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर दुबारा 14 जुलाई 1947 को चुन कर आएं. यहां बाबासाहेब के दुबारा संविधान सभा में चुने जाने को लेकर लोगों में यह भ्रम है कि कांग्रेस ने उन्हें सपोर्ट किया. ऐसा कह कर सालों से लोगों को गुमराह किया जा रहा है जबकि हकीकत कुछ और है.

इतिहास और सच्चाई यह है कि अगर बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर संविधान सभा (Constituent Assembly) में नहीं होते तो भारत का संविधान नहीं बन पाता. मान्यवर कांशी राम साहब ने भी इस बात को कहा है. दूसरी बात, डॉ. आंबेडकर जब 14 जुलाई 1947 को दुबारा चुन कर के आएं, उसके बाद ही यह घोषणा हुई कि 15 अगस्त को अंग्रेज भारत को सत्ता का हस्तानांतरण करेंगे. असल में डॉ. आंबेडकर जब पहली बार संविधान सभा में चुन कर आएं और विभाजन के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र के पाकिस्तान में चले जाने के कारण संविधान सभा का हिस्सा नहीं रहे, उस वक्त यूनाइटेड किंगडम (यूके) की पार्लियामेंट में इंडियन कांस्टीटूएंट असेंबली का बहुत कड़ा विरोध हुआ और विरोध को दबाने के लिए नेहरू को यूके के नेताओं को समझाने के लिए ब्रिटेन जाना पड़ा था. इस विरोध की गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि कद्दावर नेता चर्चिल ने यहां तक कह दिया कि, "भारतीय लोग संविधान बनाने के लायक नहीं हैं. इन लोगों को आजादी देना ठीक नहीं होगा." दूसरी बात, ब्रिटिशर्स अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर काफी गंभीर थे. तात्कालिक स्थिति में यूके पार्लियामेंट का कहना था कि अगर भारत में कंस्टीट्यूशनल सेटेलमेंट होता है तो इसमें अल्पसंख्यकों के हितों की गारंटी नहीं होगी. क्योंकि बाबासाहेब का कहना था कि शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल ट्राइब हिन्दू नहीं हैं. खासतौर पर अछूत हिन्दू नहीं है. बाबासाहेब ने इसको साबित करते हुए अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए सेपरेट सेफगार्ड ( अलग विशेषाधिकार) की बात कही थी. बाबासाहेब की इस बात पर यूके के पार्लियामेंट में बहुत लंबी बहस हुई थी. इस बहस से यह स्थिति पैदा हो गई थी कि अगर भारत में अधिकार के आधार पर, बराबरी के अधिकार पर अल्पसंख्यकों (इसमें एससी, एसटी भी थे) के अधिकारों का सेटेलमेंट नहीं होगा तो भारत का संविधान नहीं बन पाएगा और इसे वैद्यता नहीं मिलेगी और अगर संविधान नहीं बनेगा तो फिर भारत को आजादी (तथाकथित) नहीं मिलेगी. ऐसी स्थिति में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को बाम्बे से चुनकर लाना कांग्रेस और पूरे देश की मजबूरी हो गई थी. यहां एक तथ्य यह भी कहा जाता है कि बैरिस्टर जयकर ने डॉ. आंबेडकर के लिए अपना त्यागपत्र दिया था. जबकि ऐसा नहीं है, बल्कि कांग्रेस के कुछ अगड़े नेताओं के साथ मतभेद होने के कारण जयकर ने इन सारी बातों से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया था.

यानि बाबासाहेब को दुबारा चुनकर लाना पूरे देश की मजबूरी हो गई थी. क्योंकि अगर बाबासाहेब को चुनकर नहीं लाया जाता तो देश का संविधान नहीं बन पाता और ऐसी स्थिति में भारत को आजादी मिलने में और वक्त लग सकता था. हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास संविधान लिखने वाला कोई दूसरा नहीं था. बल्कि इसमें तथ्य यह है कि अगर बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर कांस्टीट्यूशनल असेंबली में नहीं होते तो भारत के अछूतों के अधिकारों का संवैधानिक सेटेलमेंट होने की बात नहीं मानी जाती और इससे भारत के संविधान को मान्यता नहीं मिलती. भारत को बड़े लोकतंत्र के तौर पर भी दर्जा नहीं मिल पाता. क्योंकि तब यह माना जाता कि संविधान में भारत के बड़े वर्ग (एससी/एसटी) के अधिकारों और स्वतंत्रता की बात संविधान में नहीं है.



इस देश को किसी भूखे-नंगे ने आझादी नहीं दिलवाई है, यह देश बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के ज्ञान, महेनत और प्रयासों से आझाद हुआ है।

Facebook post :