May 12, 2018

और अंत में उसने यह ही कहा की , "धन्यवाद मान्यवर साहब"..

9 मई को मैं 5 घंटे सहारनपुर के जिला अस्पताल में रहा. उस समय प्रशासनिक अधिकारी आ जा रहे थे. मेने काफी लोगो से बात की. दलित विषयों पर वार्ता हुई. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण दो व्यक्तिओ की वार्ता लगी.

जिस समय डीएम जिला अस्पताल में दलितों से वार्ता करने के लिए पहुचे उसी समय मेरे पास खड़े एक 75 साल के व्यक्ति ने अपने साथी को एकाएक कहा की, इसे परिवर्तन कहते है. मे बराबर में खड़ा था इसलिए उससे पूछा की कैसा परिवर्तन,  तो उसने बताया की आज से 25 से 30 वर्ष पूर्व तक अगर दलित व्यक्ति की जातीय हिंसा में हत्या हो जाती थी, महिलाओ के साथ बलात्कार हो जाता था तो यह बाउजी बनकर गाडी में बैठकर जो अधिकारी इन्हा घूम रहे है, यह हम लोगो से बात करना पसंद नही करते थे. यह हमारे लिए "राजा" से कम नही होता था. लेकिन आज देखिये, सभी बड़े से बड़ा अधिकारी दलितों के पास आ रहा है, उनसे आग्रह कर रहा है.  

उसने एक घटना भी बताई, जिसमे उसने बताया की आज से 40 साल पहले एक दलित युवक की हत्या कर दी गयी. जब पूरा गाँव थाने गया तो इंस्पेक्टर ठाकुर था, उसने उनसे बात तक नही की, उन्हें बाहर खड़ा रखा गया, उन्हें महत्व नही दिया. जिसके बाद वो एसएसपी के दफ्तर के बाहर हाथ जोडकर खड़े थे. एसएसपी तभी कमरे से बाहर निकला और यह कहकर की इन्हें इन्हा से भगाओ कहकर गाडी में बैठकर चला गया. उसके बाद वह लोग डीएम के कमरे के बाहर हाथ जोडकर घंटो खड़े रहे, डीएम सुबह उनके सामने ही कमरे में गया था, लेकिन 8 घंटे तक वो बाहर खड़े रहे, न तो डीएम बाहर आया और न ही उन्हें बुलाया, थककर रात होने वाली थी, उसके बाद उन्हें वापस लोटना पड़ा. उसके बाद दरोगा आया, लिखकर ले गया, आगे कोई कारवाई नही हुई. कुछ दिन बाद मामला दबा दिया गया. 

उसके बाद उसने एक और घटना बताई की, जब बसपा की पहली सरकार बनी तब हमारे गाँव मे एक दलित महिला का बलात्कार हो गया था, हम गाँव के बाहर जा रही सडक पर बैठ गये, जिससे घटना का पता प्रशासन को चल गया,  जिसके बाद हम थाने जाते उससे पहले ही दरोगा से लेकर इंस्पेक्टर जांच शरू कर चुके थे, उसके कुछ देर बाद ही एसपी, एसएसपी आकर सांत्वना देकर व कारवाई की बात कही, कुछ देर बाद ही डीएम भी गाँव में हाथ जोडकर हमारा अभिवादन कर रहा था.  करवाई का आदेश दे रहा था, और अगले ही दिन आरोपी को उनके बिलों से खींचकर लाकर जेल में डाल दिया गया. 

आगे बताते है की उस दिन हमारे गाँव वालो को अपने अधिकारों का एहसास हुआ, हमे मान्यवर कांशीराम जी के उस कथन की,


"डीएम कोई राजा नही है बल्कि तुम्हारा कर्मचारी है, इसलिए उसके चपरासी को धक्का देकर डीएम से मिलो, क्योकि मालिक कभी भी कर्मचारी से मिलने के लिए हाथ जोडकर नही खड़ा होता है" 

का एहसास हुआ. हमे अपनी सरकार के महत्व का पता लगा. और अंत में उसने यह ही कहा की "धन्यवाद मान्यवर साहब"..

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