ईसा मसीह ने ईसाईयत का परमेश्वर होने का दावा किया। इससे आगे उन्होंने यह भी दावा किया कि वह परमेश्वर का बेटा है।
- ईसा मसीह ने यह भी शर्त निश्चित की कि जब तक कोई मनुष्य, यह न स्वीकार करे कि ईसा मसीह परमेश्वर का बेटा है, तब तक इसकी मुक्ति हो ही नहीं सकती।
- इस प्रकार ईसा मसीह ने किसी भी ईसाई को मुक्ति के लिए अपने आप को परमेश्वर का बेटा मानने की अनिवार्य शर्त रखकर, ईसाईयत में अपने लिए एक खास स्थान बना लिया।
- इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब का दावा था कि वह खुदा द्वारा भेजे गए इस्लाम के पैगंबर थे ।
- उन्होंने आगे और दावा किया कि कोई आदमी तब तक निजात (=मुक्ति) नहीं पा सकता जब तक वह ये दो बातें और न स्वीकार करे।
- इस्लाम में रहकर निजात (=मुक्ति) की इच्छा रखने वाले के लिए यह स्वीकार करना आवश्यक है कि हज़रत मुहम्मद साहब खुदा के पैगंबर हैं।
- इस्लाम में रहकर निजात (=मुक्ति) चाहने वाले के लिए यह भी स्विकार करना आवश्यक है कि हज़रत मुहम्मद साहब खुदा के आखिरी पैगंबर हैं।
- इस प्रकार इस्लाम में निजात (= मुक्ति) केवल उन्हीं के लिए निश्चित है जो ऊपर की दो शर्ते स्वीकार करते हैं ।
- इस तरह हजरत मुहम्मद साहब ने किसी भी मुसलमान की निजात (=मुक्ति) उसके द्वारा उन्हें खुदा का पैगंबर स्वीकार करने की अनिवार्य शर्त पर निर्भर करवा कर अपने लिए इस्लाम में एक विशेष स्थान बना लिया ।
- बुद्ध ने कभी भी ऐसी कोई शर्त नहीं रखी। उन्होंने स्वयं को शद्धोदन और महामाया का स्वाभाविक पुत्र होने के अतिरिक्त कभी कोई दूसरा दावा ही नहीं किया ।
- उन्होंने ईसा मसीह और हजरत मुहम्मद साह्ब की तरह मुक्ति की शर्त लाकर अपने धम्म शासन में अपने लिए कोई खास स्थान नहीं बनाया।
- यही कारण है कि इतना प्रचुर ग्रंथसमूह रहते हुए भी हमें बुद्ध के व्यक्तिगत जीवन के बारे में इतनी कम जानकारी प्राप्त है ।
- जैसा कि ज्ञात है, बुद्ध के महापरिनिब्बान के बाद राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति थी।
- उस संगीति में महाकस्सप अध्यक्ष थे। आनंद , उपालि और अन्य दूसरे लोग कपिलवस्त के ही थे और जो जहां- जहां बुद्ध गए प्रायः हर जगह मृत्यु - पर्यंत उनके साथ रहे, वे सब वहां उपस्थित थे ।
- लेकिन संगीति के अध्यक्ष महाकस्सप ने क्या किया ?
- उन्होंने आनंद से कहा कि वह "धम्म" को दोहराएं और तब 'संगीति- कारकों' से पूछा कि “ क्या यह ठीक है?" उन्होंने ''हां'' में उत्तर। महाकस्सप ने तब उस विषय पर प्रश्न करने समाप्त कर दिये।
- तब महाकस्सप ने उपालि से कहा कि वह 'विनय' को दोहराएं और तब 'संगीति-कारकों' से पूछा कि ''क्या यह ठीक है?'' उन्होंने ''हा'' में उत्तर दिया। महाकस्सप ने तब इस विषय पर प्रश्न करने समाप्त कर दिये ।
- तब महाकस्सप को चाहिए था कि वह वहां संगीति में उपस्थित किसी को तीसरा प्रश्न करते और आज्ञा देते कि वह बुद्ध के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं को बताएं।
- लेकिन महाकस्सप ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सोचा कि ''धम्म'' और ''विनय'' ही दो ऐसे विषय हैं जिनसे संघ का सरोकार है ।
- यदि महाकस्सप ने बुद्ध के जीवन की घटनाओं का ब्यौरा तैयार करा लिया होता, तो आज हमारे पास बुद्ध का एक पूरा जीवन चरित्र होता।
- बुद्ध के जीवन की मुख्य - मुख्य घटनाओं का एक ब्योरा तैयार करा लेने की बात महाकस्सप को क्यों नहीं सूझी ?
- इसका कारण उपेक्षा नहीं हो सकती। इसका केवल एक ही उत्तर है कि बुद्ध ने अपने ''धम्म-शासन'' में अपने लिए कोई विशेष स्थान सुरक्षित नहीं रखा था।
- बुद्ध और धम्म सर्वथा अलग - अलग थे। उनका अपना स्थान था, धम्म का अपना। बद्ध द्वारा स्वयं को धम्म से पृथक रखने का एक और उदाहरण है उनके द्वारा अपना उत्तराधिकारी बनाना अस्वीकार करना। दो या तीन बार बुद्ध के अनुयायियों ने उनसे निवेदन किया कि वे किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें।
- हर बार बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया। उनका उत्तर था,
- ''धम्म ही स्वयं का उत्तराधिकारी होना चाहिए'' ।
- ''सिद्धांत को स्वतंत्र रूप से अपने पर ही निर्भर रहना चाहिए, किसी व्यक्ति के अधिकार के बल पर नहीं।''
- "यदि सिद्धांत को किसी व्यक्ति के अधिकार पर निर्भर रहने की आवश्यक्ता है तो वह सिद्धांत ही नहीं।''
- "यदि धम्म की प्रतिष्ठा के लिए हर बार इसके संस्थापक का नाम रट्ते रहने कि आवश्यकता है , तो वह धम्म नहीं है।''
- अपने धम्म को लेकर स्वयं अपने बारे में बुद्ध का यही दृष्टिकोण था।
संदर्भ ः बाबासाहब डो. भीमराव आंबेड्कर लिखित "बुद्ध और उनका धम्म"
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