August 22, 2018

पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे ! - संजय पटेल बौद्ध

एक क्रांतिकारी महिला को भक्त के रूप में प्रस्तुत करके महिलाओं को गुमराह किया गया है। मीरा उस जमाने की एक क्रांतिकारी महिला थी। समाज में प्रचलित वे रिवाज, रूढ़ियां एवं परंपराएँ, जो सामाजिक उन्नति में बाधक होते है, उनके विरोध में जो विद्रोह किया जाता है वह सामाजिक क्रांति है। 

उस युग मे भी अनेक रूढ़ियां थी जो समाज को कुचलती जा रही थी, उसे पंगु बना रही थी, उनके विरुद्ध मीरा ने क्रांति की। मध्ययुग में तो पति की मृत्यु पर सती होना अनिवार्य माना जाता था परंतु मीरा ने ऐसा नही किया। यह उस युग की बहुत बड़ी सामाजिक बगावत थी। मीरा के इस विद्रोह को सर्पदंश, विष तथा अग्नि में जला देने जैसे अनेक षडयंत्रो द्वारा कुचलने का प्रयास किया जाता रहा पर मीरा झुकी नही। सभी अवरोधों और व्यवधानों को तोड़ती, रौंदती, कुचलती हुई मीरा साधु-संतों के साथ गली-गली फिरती रही। उसने न पर्दा किया न सती हुई। यह समाज के विरुद्ध क्रांति ही तो थी।

मीरा द्वारा संत रविदास को अपना गुरु बनाना भी उस समय के रूढ़िग्रस्त समाज के लिए एक चुनौती था। संत रविदास समाज के उपेक्षित वर्ग से थे परंतु मीरा तो सामाजिक भेदभाव से परे थी। वह तो समाज को एक सूत्र में बांधने की बात करती थी जहाँ कोई ऊंच-नीच नही है।

इस प्रकार मीरा ने नियमों और बंधनो को तोड़ा। मध्ययुगीन रूढ़िग्रस्त समाज की नारी होते हुए भी वह दबी नही। युग को चुनौती दी, विद्रोह किया और समाज की रूढ़-परंपराओं को तोड़ा। आज की नारी को वही निर्भीक, निडर और क्रांतिकारी मीरा की जरूरत है, नही की आपको दिखाई जानेवाली कृष्ण भक्ति में मंजीरा लेकर दिखाई गई भक्त मीरा की !

संदर्भ:
रीता सचदेव,
"पंचनाद - संतो की वाणी में क्रांति चेतना" किताब से

Facebook Post :